Tuesday, July 20, 2010

कल......

कल कल करते हुए
निकल गए कितने आज।
और फिर एक दिन दस्तक दी मृत्यु ने
और कहा चलना है,
अभी और आज।
मैंने अपने चारों और देखा
और कहा कल आना
आज मैं व्यस्त हूँ।
वह मुस्करायी,
चारों और देखा,
दीवारों की खूंटियों पर,
घर के हर कोने में,
मेज पर, अलमारी में
कल के इंतजार में पड़े आज को
और बोली
मैं हर पल को उस पल में ही जीती हूँ,
मेरे शब्दकोस में
कल जैसा शब्द नहीं।

Thursday, July 15, 2010

यमुना



यमुने कैसे देखूँ तेरा यह  वैधव्य रूप ,
मैंने तुमको प्रिय आलिंगन मैं देखा है।


है कहाँ गया कान्हा तेरा यौवन साथी,
हो गये मौन क्यों आज मधुर बंसी के स्वर।
खो गयी कहाँ पर राधा की वह मुक्त हंसी,
लुट गये कहाँ पर सखियों के नूपुर के स्वर।


कैसे यमुने तेरे नयनों मैं जल देखूँ,
मैंने इनमें खुशियों का यौवन देखा है।


होगयी रश्मि की स्वर्णिम साडी कलुष आज,
होगये नक्षत्रों के आभूषण प्रभा हीन
ढलते सूरज ने मांग भरी जो सिंदूरी,
बढ़ता आता अँधियारा करने उसे ली


यमुने कैसे देखूँ तेरा सूना आँचल ,
मैंने इसमें खुशियों का नर्तन देखा है।


दधि और दूध की जहाँ बहा करती नदियाँ,
अब वहां अभावों का मुख पर पीलापन है।
क्या साथ ले गये बचपन की क्रीड़ायें तुम,
या राधा की कान्हा से अब कुछ अनबन है।


आजाओ कान्हा एक बार फिर से तट पर,
मैं भी देखूँ वह जो ग्वालों ने देखा है।


इस चीरघाट पर अब भी चीर टंगे तरु पर,
पर नहीं कृष्ण जो सखियों का फिर तन ढक दे।
सूनी आँखों से दूषित यमुना राह तके ,
विष मुक्त किया था, जिसने कलिका वध करके।


कैसे निष्ठुर हो सकते हो तुम कृष्ण आज ,
जब राधा को मनुहारें करते देखा है .

Tuesday, July 13, 2010

आयेगा कहाँ से गाँधी


हिन्दू भी यहाँ है , मुस्लिम भी यहाँ है,
हर धर्म के अनुयायी की पहचान यहाँ है.
मंदिर मैं मिले हिन्दू,मस्जिद मैं मुसल्मन थे,
वह घर मिला मुझको, इन्सान जहाँ है.


बच्चा जो हुआ पैदा, हिन्दू था मुस्लिम था,
संयोग है बस इतना,घर हिन्दू था या मुस्लिम था.
एक रंग था माटी का, बचपन था जहाँ बीता,
यह भेद हुआ फिर कब, यह हिन्दू था वह मुस्लिम था.


तलवार या खंजर का, कोई धर्म नहीं होता,
बहता है जो सडकों पर वह सिर्फ लहू होता.
हिन्दू का या मुस्लिम का,जलता है जो घर,घर है,
उठती हुई लपटों, मैं कुछ फर्क नहीं होता.


नफरत की इस आंधी को अब कौन सुलायेगा,
कट्टरता की यह होली कब प्रह्लाद बुझाएगा,
क्या मज़हबी दानव को गाँधी का लहू कम था,
आयेगा कहाँ से गाँधी, जब भी वह लहू मांगेगा.