Wednesday, January 19, 2011

मेरा क्या गुनाह है ?

क्यों समझते हो
गुनहगार
हमें उस गुनाह का,
जिसमें धकेला था 
तुमने ही.


हमारा तो 
एक साधारण सपना था
छोटा सा घर,
छोटा सा परिवार
और दो वक्त की रोटी.
लेकिन कहाँ सच होते हैं
छोटे लोगों के 
छोटे सपने,
जब सामने हों
बूढ़े बीमार पिता
और भूखे भाई बहन अपने.


मैंने तो चाही थी 
सिर्फ़ मेहनत की दो रोटी,
लेकिन तुमको नज़र आयी
सिर्फ़ मेरी बोटी.
तुम्हारे बनाए दलदल में
मैं फंसती गयी,
बूढ़े बाप को दवा
भाई बहन को रोटी मिल गयी,
पर मेरी आत्मा उसी दिन मर गयी.


तुम्ही ने तो बताये थे 
गुर व्यापार के
कि बिना पूंजी के 
व्यापार नहीं होता,
और लगवा दी व्यापार में पूंज़ी
न केवल मेरे शरीर की
बल्कि आत्मा 
और सम्पूर्ण अस्तित्व की.


निरीहों का शोषण कर,
छीन कर निवाला 
उनके मुख से,
कालाबाजारी और रिश्वत 
के व्यापारी
जीते हैं इज्ज़त से.
लेकिन मैं 
फंसने पर भी तुम्हारे बनाए दलदल में
नहीं देती धोका किसी को
छीनती नहीं हक किसी गरीब का,
करती हूँ व्यापार,
ईमानदारी से,
अपने शरीर का.


अँधेरे कमरे में अप्सरा दिखती तुमको
रोशनी में मगर बदनुमा दाग,
कैसे भूल सकती मैं 
लगायी थी तुमने 
जो मेरे स्वप्नों में आग.
लेकिन तुम केवल तुम नहीं,
'तुम' में सामिल है
तुम्हारा पूरा समाज.


मुझे हिक़ारत से देखकर
डालना चाहते हो पर्दा
अपने गुनाहों पर,
लेकिन कभी सोचा है
कितना दर्द सहा है
मैंने हर दिन
अपने शरीर, आत्मा और सपनों को
सलीब पर लटके देख कर.

38 comments:

  1. हमारा तो
    एक साधारण सपना था
    छोटा सा घर,
    छोटा सा परिवार
    और दो वक्त की रोटी.
    लेकिन कहाँ सच होते हैं
    छोटे लोगों के
    छोटे सपने,
    जब सामने हों
    बूढ़े बीमार पिता
    और भूके भाई बहन अपने.
    andar me jane kaisi ghutan si hui, shayad dard ka gubaar utha hai, per shabd udaas hain.......
    anurodh hai, ise vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per parichay, tasweer, blog link ke saath

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  2. अँधेरे कमरे में अप्सरा दिखती तुमको
    रोशनी में मगर बदनुमा दाग,
    कैसे भूल सकती मैं
    लगायी थी तुमने
    जो मेरे स्वप्नों में आग.
    लेकिन तुम केवल तुम नहीं,
    'तुम' में सामिल है
    तुम्हारा पूरा समाज.

    सच है स्त्री को इस खाई में धकेलने वाले हाथ
    कहीं न कहीं पुरुष के ही होते हैं ....
    कविता दिल को बेंधती है ...

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  3. jeevan ki vastvikta ka khaka keecha hai apne

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  4. एक स्त्री की व्यथा का मार्मिक चित्रण!!

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  5. Sadiyon puraane ghaw ki sachchi kahani hai yah kavita.
    Shabd shabd yatharth ke aaine men ubhre hue hain.
    Prabhawshali abhivyakti ke liye aabhar.
    -Gyanchand marmagya

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  6. अँधेरे कमरे में अप्सरा दिखती तुमको
    रोशनी में मगर बदनुमा दाग,
    कैसे भूल सकती मैं
    लगायी थी तुमने
    जो मेरे स्वप्नों में आग.
    लेकिन तुम केवल तुम नहीं,
    'तुम' में सामिल है
    तुम्हारा पूरा समाज

    हमारे समाज की नंगी सच्चाई बयान की है आपने। बिल्कुल सच मगर उतना ही कड़वा। आभार।

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  7. बहुत ही मार्मिक रचना ।

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  8. धन पाने के लिये यदि मन खोना पड़े तो क्या कहा जाये।

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  9. stri ki vyatha ko shi likha hai

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  10. बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति..

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  11. बहुत सशक्त -मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति
    शुभकामनाएं

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  12. बार बार पठनीय.
    सोचने पर विवश करने वाली कविता.

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  13. अँधेरे कमरे में अप्सरा दिखती तुमको
    रोशनी में मगर बदनुमा दाग,
    कैसे भूल सकती मैं
    लगायी थी तुमने
    जो मेरे स्वप्नों में आग.
    लेकिन तुम केवल तुम नहीं,
    'तुम' में सामिल है
    तुम्हारा पूरा समाज.

    very thought provoking.

    हृदयस्पर्शी चित्रण .आप की कलम को सलाम

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  14. अँधेरे कमरे में अप्सरा दिखती तुमको
    रोशनी में मगर बदनुमा दाग,
    कैसे भूल सकती मैं
    लगायी थी तुमने
    जो मेरे स्वप्नों में आग.
    लेकिन तुम केवल तुम नहीं,
    'तुम' में सामिल है
    तुम्हारा पूरा समाज.
    बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति!

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  15. बहुत उत्तम प्रस्तुति...

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  16. bahut khubsurat rachna
    ...
    mere blog par
    "jharna"

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  17. अँधेरे कमरे में अप्सरा दिखती तुमको
    रोशनी में मगर बदनुमा दाग,
    कैसे भूल सकती मैं
    लगायी थी तुमने
    जो मेरे स्वप्नों में आग.
    लेकिन तुम केवल तुम नहीं,
    'तुम' में सामिल है
    तुम्हारा पूरा समाज.

    wah! Being a man you have been able to empathize with a woman's pain so well. Brilliant poem, sir!

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  18. मर्मस्पर्शी कविता....
    कुछ सोचने के लिए विवश करती हुई।

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  19. उफ़, ये लाचारी.
    बहुत मार्मिक.

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  20. सच का आईना दिखाती एक बेहतरीन कविता.

    सादर

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  21. बहुत सशक्त -मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति.......
    सच का आईना दिखाती एक बेहतरीन कविता....

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  22. ....मार्मिक, हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं।

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  23. स्त्री-मन की व्यथा की बहतरीन प्रस्तुति।

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  24. शायद इस मंथन का अंत नही ....

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  25. sachchai ka bahut hi marmik chitran.
    antas ki peeda ko shabdon me uker diya ...

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  26. ... bahut sundar ... prasanshaneey rachanaa !!

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  27. priya sharma ji,

    bahut mamsparshi rachna,hriday ko udvelit
    karti huyi,samaj ke domuhen chritra ko ujagar karti hai .prashansniy ----/

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  28. बहुत मर्मस्पर्शी रचना ...नारी की त्रासदी है ...जिसे अपनों की ज़रूरत के लिए इस दलदल में धकेल दिया जाता है ...

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  29. zindagi waakai mein ek kadwaa sach hai...
    shukriyaa prerak prasang saajha karne ke liye

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  30. मुझे हिक़ारत से देखकर
    डालना चाहते हो पर्दा
    अपने गुनाहों पर,
    लेकिन कभी सोचा है
    कितना दर्द सहा है
    मैंने हर दिन
    अपने शरीर, आत्मा और सपनों को
    सलीब पर लटके देख कर.

    bahut hi betareen.

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  31. शर्मा जी !!!!बहुत ही मर्मस्पर्शी ...सत्य का आयना दिखाती अति सुन्दर रचना ..
    कोटि कोटि सादर अभिनन्दन

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  32. दिल को छूती हुयी रचना ।

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  33. बहुत ही मार्मिक अन्तःस्थल को स्पर्श करती रचना...आपका कोटि कोटि अभिनन्दन....

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  34. भ्रष्टाचार का एक पहलू ये भी है...
    सच, कुछ लोग तो न चाहकर भी, मजबूरियों के कारण corrupt होते हैं...

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