Wednesday, March 23, 2011

बचपन ?

पैरों पर 
चलना सीखते ही
बढ़ गये पैर,
माँगने को भीख
या बेचने को   
गुलाब के फूल
और गज़रा 
प्रेमियों को
चौराहे पर,
बरतन साफ़ करने 
और चाय देने
बस्ती के ढाबे पर,
गलत पाना देने पर
उस्ताद जी से
थप्पड़ खाने को 
ऑटो मैकेनिक की
दुकान पर.

हसरत भरी नज़रों से
देखते हैं,
स्कूल जाते,
पार्क में खेलते
हंसते हुए बच्चों को,
और झटक कर सर
फिर लग जाते हैं
अपने धन्धे पर.

गोदी से उतरते ही,
भूल कर
बीच के अंतराल को,
फँस जाते हैं
रोटी कपड़े के जाल में,
शायद झुग्गियों में
बचपन नहीं होता. 

Thursday, March 17, 2011

कैसे कहूँ मनायें होली

रंग खिले चहुँ और प्रकृति में
सब कहते  आया  वसंत है.
बोझ सिरों पर जब जीवन का,
उनको कैसा, क्या वसंत है.

मन में हो अल्हाद नहीं जब, कैसे कहूँ मनायें होली.


एक तरफ़ दौलत की लाली,

इधर है चहरों पर पीलापन.
उधर गूँजते  गीत फाग के,
इधर  झोंपड़ी में  सूनापन.

घोर निराशा जब आँखों में, कैसे कहूँ मनायें होली.

चुरा लिया है  जब  फूलों से
भ्रष्ट राजनेताओं ने रंग सारा.
स्वप्न बंद हैं स्विस बैंकों में,
बचा नयन में बस जल खारा.

रंग नहीं जीवन में हो जब, कैसे कहूँ मनायें होली.

Monday, March 14, 2011

यदि चाहो सदैव को प्रिय मैं रुक जाऊं

                          यदि चाहो सदैव को प्रिय मैं रुक जाऊं,
                          तो पहले समय पखेरू को बंदी कर लो.


होता आया है वर्तमान बंदी सदैव,
     शोभित करता वह भूतकाल की कारा है.
               कब तक उठने से रोकोगी इस पर्दे को,
                     जिसने भविष्य का कलुषित रूप निखारा है.

                         यदि चाहो भविष्य का रूप सदां आकर्षक हो,
                         जाती  संध्या  को रुकने  को सहमत कर लो.

है दिवास्वप्न शास्वत बंधन उर का,
     पूर्णत्व मिलन का आस अधूरी रहने में
            कैसे अधरों की मुस्कानें शास्वत मानूं,
                   जीवन आधी सृष्टि का आंसू ढलने में.

                       यदि नेह तुम्हें खिलते गुलाब की डाली से,
                       तो काँटों से बिंधने को कर सक्षम कर लो.

यह प्रेम न परिणित हो अपना कुंठाओं में,
          इसलिए इसे इतना ही सीमित रहने दो.
             वह मंज़िल जो निश्छल उर को शंकित कर दे,
                        उससे अच्छा अविराम डगर पर चलने  दो.

                      नयनों के काजल से कपोल न कलुषित हों,
                      इस लिये अश्रु को रुकने को सहमत कर लो.
             

Friday, March 11, 2011

होली के रंग

कुछ रंग होली के 
कितनी भी कोशिश करने पर
धुल नहीं पाते 
उम्र भर.


कितनी होली आयीं,
कितने रंग लगे,
पर कोई भी 
छुपा नहीं पाया 
उस रंग को,
और सभी धुल गए
होली के जाते ही.
कोई भी रंग
छू नहीं पाया
अंतस  को.


अब तो हर होली पर,
देख कर आइने में
वही पुराना रंग,
मना लेता हूँ
अपनी होली.

Sunday, March 06, 2011

जीने दो सिर्फ़ एक नारी बन कर

कभी देवी बनाकर
मन्दिर में 
सिंहासन पर बैठाया.
समझ कर ज़ागीर
कभी जूए में
दांव पर लगाया.
और कभी बनाकर सती
जिंदा चिता में जलाया.
कुचल कर अरमानों को
बनाया कभी नगरवधू
तो कभी देवदासी.
परिवार की इज्ज़त के नाम पर
अपनों ने ही
लटका के पेड से 
कभी दी फांसी.


बेटी, पत्नी और माँ बनकर
जी रही हूँ सदियों से,
पर नहीं जी पायी
एक दिन के लिए भी
सिर्फ़ अपने लिये
केवल
एक नारी बनकर.


क्यों थमा दी
प्रेम, ममता और त्याग
की वैसाखियाँ
मेरे हाथों में,
होने दो मुझे भी खड़ा
अपने पैरों पर.


मुक्त कर दो मुझे
कुछ क्षण को
इन सभी बंधनों से,
और अहसास करने दो
क्या होता है 
जीना
सिर्फ़ एक नारी बनकर.



Saturday, March 05, 2011

जन्मदिन की शुभकामनायें

               
      अभ्युदय के जन्मदिन  पर नाना और नानी की हार्दिक
                          शुभ कामनायें और आशीर्वाद 
                
                               रात अमावस की अंधियारी,
                         एक अचानक चाँद उगा.
                         उसकी शुभ्र चांदनी से फिर
                         बचपन  मेरा जाग उठा.

                         सूरज बन कर चमको जग में,
                         चंदा बन कर दो  शीतलता.
                         खुश्बू बन कर करो सुवासित,
                         स्मित में फूलों की शुचिता.

                         साथ रहें  जीवन में खुशियाँ,
                         प्यार भरा जीवन  सागर हो.
                         विस्तृत हो वटवृक्ष तरह तुम,
                         अपनों को शीतल आश्रय हो.
                                  

                   Happy Birthday