Wednesday, November 23, 2011

ज़ंजीरें

झूले की छोटी छोटी कड़ियाँ 
एक दूसरे से जुड़कर
संभाले हुए हैं मेरा बोझ,
और उन कड़ियों की परछाई
पडती है मेरे पैरों पर
और देती है अहसास 
ज़कडे होने का
ज़ंजीरों में,
मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व.


नहीं होती हैं बंधन 
सिर्फ़ जंजीरें लोहे की,
हमारी यादों की परछाईं भी
कभी बन जाती हैं 
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
और नहीं मुक्त हो पाते
उस बंधन से
उम्र भर.

53 comments:

  1. यही छोटी छोटी लड़ियाँ तो पूरे अस्तित्व को बाँधे है।

    ReplyDelete
  2. हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें....

    अत्यंत उम्दा चिंतन सर....
    सार्थक रचना...
    सादर बधाई...

    ReplyDelete
  3. हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की

    बहुत सही कहा सर!

    सादर

    ReplyDelete
  4. नहीं होती हैं बंधन
    सिर्फ़ जंजीरें लोहे की,
    हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
    और नहीं मुक्त हो पाते...usse mukt hona jatil hai

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुंदर भाव की रचना................

    ReplyDelete
  6. हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
    और नहीं मुक्त हो पाते
    उस बंधन से
    उम्र भर.
    Kya baat kahee hai aapne! Badee gaharee sachhayee hai!

    ReplyDelete
  7. हम जन्मते हैं मुक्त मगर बन्धनों में बंधते जाते हैं ... बंधे रहते हैं... उम्र भर!
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  8. हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की..
    सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

    ReplyDelete
  9. अनुसरण करता रहा हूँ ||

    खूब भाया ||

    आभार ||

    ReplyDelete
  10. हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
    और नहीं मुक्त हो पाते
    उस बंधन से
    उम्र भर.बहुत ही सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति।धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  11. sach kaha yade bahut moti zanzeere hain lekin ye hamare hi banaye hue bandhan hain.

    ReplyDelete
  12. सटीक और गहन बात कहती हुई अच्छी रचना

    ReplyDelete
  13. "नही मुक्त हो पाते उस बंधन से" इसी तरह के बंधन से ही तो जीने की चाह जुड़ी होती है | ये बंधन न हों तो बड़ी बेमानी से लगती है ये जिंदगी |

    टिप्स हिंदी में
    शादी.काम

    ReplyDelete
  14. बेहतरीन काव्य धारा बहाई है आपने कैलाश जी बधाई

    ReplyDelete
  15. हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की

    सच स्मृतियाँ भी हमें जकड़ लेती हैं कभी कभी ....सुंदर रचना

    ReplyDelete
  16. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 24-- 11 - 2011 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज ..बिहारी समझ बैठा है क्या ?

    ReplyDelete
  17. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  18. और उन कड़ियों की परछाई
    पडती है मेरे पैरों पर
    और देती है अहसास
    ज़कडे होने का
    ज़ंजीरों में,
    मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व.
    सच्चा चित्र

    ReplyDelete
  19. सही कह रहे हैं ये यादे हमारी जंजीरे ही हैं।

    ReplyDelete
  20. bandh kar hi to khushi bhi milti hai .

    ReplyDelete
  21. यादों की जंजीरों से मुक्त होना बहुत मुश्किल है, कभी-कभी जीने का सहारा भी होती हैं ये जंजीरें... सुन्दर अभिव्यक्ति... आभार

    ReplyDelete
  22. जंजीरों का बंधन हर इंसान को आपस में
    बांधे रखता है | सुन्दर अभिव्यक्ति |
    बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  23. हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की.....बहुत ही अच्छी और दिल को छुने वाली रचना.....बधाई स्वीकार करें ....

    ReplyDelete
  24. इन लड़ियों से रिश्तों की तार जुडी होती है ..

    ReplyDelete
  25. यादो की परछाइयो से मुक्त होना ही तो मुश्किल होता है।

    ReplyDelete
  26. बहुत गहराई से निकले भाव... यादें कभी सुख का अहसास भी तो कराती हैं...तभी संत कहते हैं दुःख के बंधन से मुक्त होना है तो सुख की लालसा भी त्यागनी होगी. सुंदर कविता!

    ReplyDelete
  27. बहुत खूबसूरत ज़ंजीर है |

    ReplyDelete
  28. मन को छूती सुंदर रचना । बधाई ।

    ReplyDelete
  29. गहन भाव...बहुत ही सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  30. नहीं होती हैं बंधन
    सिर्फ़ जंजीरें लोहे की,
    हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
    और नहीं मुक्त हो पाते
    उस बंधन से
    उम्र भर.
    बहुत सुन्दर कविता सर

    ReplyDelete
  31. आपकी सुन्दर भावों से सजी रचना
    पढकर बहुत अच्छी लगी.

    प्रस्तुति के लिए आभार आपका.

    ReplyDelete
  32. बहुत खुबसूरत भावो से रची सुन्दर रचना.....

    ReplyDelete
  33. yadon ki janjeeron se mukt hona itana aasan bhi nahi....sundar rachna.

    ReplyDelete
  34. हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की

    गहरी कल्पना....

    ReplyDelete
  35. बंधन कोई भी हो ...मन का आत्मा ....यादो का ,बातो का...वो तकलीफ ही देता है ......खूबसूरत शब्दों में आपकी ये प्रस्तुति ...आभार

    ReplyDelete
  36. नहीं होती हैं बंधन
    सिर्फ़ जंजीरें लोहे की,
    हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
    और नहीं मुक्त हो पाते
    उस बंधन से
    उम्र भर.
    वाह ...बहुत ही गहन भाव समेटे बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete
  37. बहुत सुन्दर कविता..अच्छी बात.

    ReplyDelete
  38. हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
    और नहीं मुक्त हो पाते
    उस बंधन से
    उम्र भर. Bahut khoob. Sundar kavita.

    ReplyDelete
  39. बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  40. लयात्मक या अलयात्मक आप हर विधा में चौंका देने की क्षमता रखते हैं। सुंदर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  41. गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!

    ReplyDelete
  42. यादों की जंजीरें हमें बांधे रखती है ज़िंदगी के साथ ... बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  43. खूबसूरत शब्दों से सजी आपकी ये प्रस्तुति पढ़कर बहुत अच्छा लगा .... एक बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ......बहुत खूब ...कैलाश जी

    ReplyDelete
  44. सही कहा आपने ....
    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  45. नहीं होती हैं बंधन
    सिर्फ़ जंजीरें लोहे की,
    हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    जंजीरें हमारी ज़िंदगी की

    जि़ंदगी की एक बड़ी सच्चाई है यह ।

    ReplyDelete
  46. हमारी यादों की परछाईं भी
    कभी बन जाती हैं
    ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की

    सच कहा आपने ....
    यादें ही बंधन हो जाती हैं
    और कुछ भली भी लगने लगती है जिंदगी....

    ReplyDelete
  47. जिन्दगी की सच्चाई को खोल कर रख दिया..बहुत खूब.. सुन्दर अभिव्‍यक्ति आभार....

    ReplyDelete