Sunday, May 13, 2012

माँ

नहीं महसूस  हुआ  तुम्हारा भार 
जब भी उठाया गोदी में,
पकड़े रही उंगलियां 
कहीं भटक न जाओ,
जब भी आये रोते 
लगा लिया कंधे से.

आज उम्र ने कर दिया अशक्त
अपना भी बोझ ढोने में,
पर बन नहीं पाये तुम
लकड़ी इन हाथों की. 
सूख गये आंसू 
इंतज़ार में
कभी तो समझोगे
माँ कुछ नहीं चाहती
सिवाय प्यार के.

वक़्त की मज़बूरी ने 
सिखा दिया 
लडखडाते  पैरों को चलना.
नहीं ढूंढती अब कंधा 
जिस पर सिर रख कर
कुछ पल रो सकूँ.
नहीं चाहिए  अब 
कोई नाम या पहचान,
मैंने इतिहास के पन्नों पर 
ज़मी धूल बनकर
जीना सीख लिया है.

कैलाश शर्मा 

35 comments:

  1. बस यही है माँ …………जी ही लेती है किसी ना किसी तरह ………माँ को शत- शत नमन ……सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. एक सहारा,
    सबसे प्यारा।

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  3. बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  4. गहन भाव लिये सुंदर ,मार्मिक रचना.....

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  5. वक़्त की मज़बूरी ने
    सिखा दिया
    लडखडाते पैरों को चलना.
    नहीं ढूंढती अब कंधा
    जिस पर सिर रख कर
    कुछ पल रो सकूँ.
    नहीं चाहिए अब
    कोई नाम या पहचान,
    मैंने इतिहास के पन्नों पर
    ज़मी धूल बनकर
    जीना सीख लिया है... क्रमिक इतिहास और अपना आप खोखला नज़र आता है !

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  6. बहुत ही सुन्दर लिखा है, सुन्दर रचना!

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  7. वेदना का मानवीकरण करती पोस्ट .बधाई स्वीकार करें .

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  8. नहीं चाहिए अब
    कोई नाम या पहचान,
    मैंने इतिहास के पन्नों पर
    ज़मी धूल बनकर
    जीना सीख लिया है...

    अति सुंदर भाव पुर्ण मार्मिक अभिव्यक्ति ,...

    MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...

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  9. मनभावन पोस्ट.... हे माँ तुझे प्रणाम ...

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  10. माँ को नमन .... !!
    और आपकी लेखनी को नमन .... !

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  11. नहीं चाहिए अब
    कोई नाम या पहचान,
    मैंने इतिहास के पन्नों पर
    ज़मी धूल बनकर
    जीना सीख लिया है.

    इससे बड़ी ममता की मिसाल दूजी नहीं दुनिया में, सब कुछ देकर भी जो बदले में कुछ नहीं चाहती...धन्य है माँ... नमन आपकी लेखनी और भावों को...

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  12. मां की ममता अनमोल है । बहुत सही कहा है आपने । मरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  13. बहुत सुन्दर, माँ ऐसी ही होती है

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  14. माँ तो बस माँ होती है..माँ शब्द में सारा संसार समाया हुआ है...माँ को नमन..सुन्दर पोस्ट..आभार..

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  15. दिल को छूती एक सुन्दर रचना...

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  16. माँ तो सिर्फ माँ होती है...... .माँ तुझे सलाम...

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  17. नहीं चाहिए अब
    कोई नाम या पहचान,
    मैंने इतिहास के पन्नों पर
    ज़मी धूल बनकर
    जीना सीख लिया है.

    बहुत ही सुन्दर लिखा है, माँ तुझे सलाम.

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  18. बहुत सुंदर सर................
    बहुत ही सुंदर..........................

    माँ कुछ नहीं चाहती
    सिवाय प्यार के.

    प्यारी रचना.

    अनु

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  19. "नहीं चाहिए अब
    कोई नाम या पहचान,
    मैंने इतिहास के पन्नों पर
    ज़मी धूल बनकर
    जीना सीख लिया है."
    अत्यंत भावपूर्ण और सुंदर अभिव्यक्‍ति !

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  20. भावपूर्ण रचना...माँ को नमन.

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  21. माँ अविस्मरनीय है , प्रातः स्मरणीय है ,
    दूर है किसी मंदिर मस्जिद के घरौंदे से
    उसके आँचल में पनाह पाते हैं युग युगांतर
    चर और चराचर .......

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  22. मैंने इतिहास के पन्नों पर
    ज़मी धूल बनकर
    जीना सीख लिया है.
    करुण!

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  23. nishbd kiya aap ki rachna ne,bdhai sweekaaren....

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  24. सुन्दर लिखा है भावपूर्ण रचना...माँ को नमन.

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  25. मन को छूते शब्‍दों का संगम ... आभार

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  26. नहीं ढूंढती अब कंधा
    जिस पर सिर रख कर
    कुछ पल रो सकूँ

    मां के हृदय की विराटता अन्यत्र अलभ्य है।
    मार्मिक कविता।

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  27. माँ शब्द के साथ ...खुद भी अनमोल हैं ..

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  28. सुन्दर मनोहारी रचना...बहुत बहुत बधाई...

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  29. .

    मां कुछ नहीं चाहती
    सिवाय प्यार के…

    भाव विह्वल कर देने वाली रचना लिखी है भाईजी !
    यह भी सच है कि
    मां के लिए कितना भी विस्तार से लिख लें , कम ही होगा …

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    नमन है मां को !
    नमन है मेरी मां को !
    नमन है आपकी मां को !
    नमन है संसार की प्रत्येक मां को !

    मां तुझे प्रणाम !
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    इस सुंदर प्रेरक रचना के लिए आभार आपका !

    मंगलकामनाओं सहित…
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  30. मार्मिक प्रस्तुति. माँ का स्नेह अतुलनीय है, माँ की सेवा स्वर्ग... काश बस इतनी सी बात समझ आ जाए हमें..
    सादर

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  31. mera maa de hattahn diyaan pakkiya rotiyaan khaan ne bada hee dil kardaa hai!!

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  32. अत्यंत मार्मिक कविता..माँ के उपकारों को भुलाया नहीं जा सकता !

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  33. माँ बस ऐसी ही होती है ... उफ्फ्फ नहीं करती .... दुआएं ही देती है ...
    मार्मिक रचना ...

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