Monday, June 04, 2012

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (१२वीं-कड़ी)


द्वितीय अध्याय
(सांख्य योग - २.६४-७२)


राग द्वेष से जो विमुक्त हो
संसारिक विषयों को भोगता.
कर लेता वश में जो इन्द्रिय,
वह ज्ञानी आनन्द भोगता.


पाता परम शान्ति साधक,
सब दुखों का नाश है होता.
बुद्धि प्रतिष्ठित होती उसकी 
प्रसन्नचित साधक जो होता.


जिसकी इन्द्रिय नहीं संयमित,  
बुद्धि, भावना हीन है वह होता.
शान्ति नहीं मिल पाती उसको, 
कैसे अशांत सुख भागी होगा?


इन्द्रिय सुख के पीछे भागे
उसकी बुद्धि हरण हो जाती.
जैसे तेज हवा नौका को 
जल में खींच दूर ले जाती.


पार्थ! इन्द्रियां हैं जिसकी
निगृहीत विषयों से होती.
ऐसे सन्यासी की बुद्धि
पूर्णमेव प्रतिष्ठित होती.


होती निशा सर्व जन को जब, 
आत्म संयमी तब जगता है.
होती रात्रि सर्वग्य मुनि को,
जब जग में प्राणी जगता है.


नदियाँ हैं जल भरती रहतीं,
पर सागर कब मर्यादा तजता.
स्थिर मन ही शान्ति है पाता,
कामी जन न शान्ति है लभता.


सभी कामनाओं को तज कर,
भोगों के प्रति जो निस्पृह होता.
अहंकार, मोह विहीन वह ज्ञानी 
परम शान्ति अधिकारी होता.


ब्रह्मनिष्ठ मन की यह स्थिति,
इसे प्राप्त कर मोह न होता.
मृत्यु पूर्व कुछ क्षण स्थित हो 
ब्रह्म लीन वह जन है होता.


..... द्वितीय अध्याय समाप्त 
                   
                 .......क्रमशः


कैलाश शर्मा 

22 comments:

  1. सभी कामनाओं को तज कर,
    भोगों के प्रति जो निस्पृह होता.
    अहंकार, मोह विहीन वह ज्ञानी
    परम शान्ति अधिकारी होता.
    बहुत ही बढिया... प्रस्‍तुति।

    ReplyDelete
  2. ब्रह्मनिष्ठ मन की यह स्थिति,
    इसे प्राप्त कर मोह न होता.
    मृत्यु पूर्व कुछ क्षण स्थित हो
    ब्रह्म लीन वह जन है होता.....वाह: बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आभार..कैलाश जी..

    ReplyDelete
  3. अद्दभुत प्रस्तुति कैलाश जी

    ReplyDelete
  4. सभी कामनाओं को तज कर,
    भोगों के प्रति जो निस्पृह होता.
    अहंकार, मोह विहीन वह ज्ञानी
    परम शान्ति अधिकारी होता.
    बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति...
    अति सुन्दर:-)

    ReplyDelete
  5. ब्रह्मनिष्ठ मन की यह स्थिति,
    इसे प्राप्त कर मोह न होता.
    मृत्यु पूर्व कुछ क्षण स्थित हो
    ब्रह्म लीन वह जन है होता.

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति... आभार

    ReplyDelete
  6. ब्रह्मनिष्ठ मन की यह स्थिति,
    इसे प्राप्त कर मोह न होता.
    मृत्यु पूर्व कुछ क्षण स्थित हो
    ब्रह्म लीन वह जन है होता……………अद्भुत चित्रण

    ReplyDelete
  7. राग द्वेष से जो विमुक्त हो
    संसारिक विषयों को भोगता.
    कर लेता वश में जो इन्द्रिय,
    वह ज्ञानी आनन्द भोगता.


    पाता परम शान्ति साधक,
    सब दुखों का नाश है होता.
    बुद्धि प्रतिष्ठित होती उसकी
    प्रसन्नचित साधक जो होता.

    बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति…


    Rajpurohit Samaj
    पर पधारेँ.... मुझे खुशी होगी .

    ReplyDelete
  8. संग्रहणीय श्रंखला..

    ReplyDelete
  9. sari srakhlaye sangrah karne wali hai .........kailash ji

    ReplyDelete
  10. पठनीय,,संग्रहणीय,,सुंदर श्रंखला. प्रस्तुति,,,,कैलाश जी ,,,,,

    RECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,

    ReplyDelete
  11. paramshanti or sansarik vyavhar ko abhivyakt karti post.

    ReplyDelete
  12. पार्थ! इन्द्रियां हैं जिसकी
    निगृहीत विषयों से होती.
    ऐसे सन्यासी की बुद्धि
    पूर्णमेव प्रतिष्ठित होती

    मूल अर्थ को रख कर की गई सुंदर पद्य रचना ।

    ReplyDelete
  13. पुस्तक के रूप में प्रकाशित होने की प्रतीक्षा..

    ReplyDelete
    Replies
    1. सब प्रभु की इच्छा पर निर्भर है....आभार

      Delete
  14. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    इंडिया दर्पण
    पर भी पधारेँ।

    ReplyDelete
  15. अहंकार, मोह विहीन वह ज्ञानी
    परम शान्ति अधिकारी होता.

    ज्ञानवर्धक ...शांतिप्रदायक ...बहुत सफल ...उत्तम प्रयास ...!!
    बहुत आभार ...!!

    ReplyDelete
  16. राग द्वेष से जो विमुक्त हो
    संसारिक विषयों को भोगता.
    कर लेता वश में जो इन्द्रिय,
    वह ज्ञानी आनन्द भोगता.

    इन्द्रिय सुखों से निरत रहने वाला ही ज्ञानी होता है और वही शाश्वत सुख भोगता है।

    निरामिष: शाकाहार संकल्प और पर्यावरण संरक्षण (पर्यावरण दिवस पर विशेष)

    ReplyDelete
  17. बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  18. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    इंडिया दर्पण
    पर भी पधारेँ।

    ReplyDelete
  19. नदियाँ हैं जल भरती रहतीं,
    पर सागर कब मर्यादा तजता.
    स्थिर मन ही शान्ति है पाता,
    कामी जन न शान्ति है लभता.

    सुन्दरम मनोहरं ,बढ़िया तरीके से संपन्न हुआ दूसरा अध्याय .बधाई .
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    फिरंगी संस्कृति का रोग है यह
    प्रजनन अंगों को लगने वाला एक संक्रामक यौन रोग होता है सूजाक .इस यौन रोग गान' रिया(Gonorrhoea) से संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क स्थापित करने वाले व्यक्ति को भी यह रोग लग जाता है .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

    ram ram bhai
    शुक्रवार, 8 जून 2012
    जादू समुद्री खरपतवार क़ा
    बृहस्पतिवार, 7 जून 2012
    कल का ग्रीन फ्यूल होगी समुद्री शैवाल
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

    ReplyDelete
  20. सुन्दरम मनोहरं ,बढ़िया तरीके से संपन्न हुआ दूसरा अध्याय .बधाई .
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    फिरंगी संस्कृति का रोग है यह
    प्रजनन अंगों को लगने वाला एक संक्रामक यौन रोग होता है सूजाक .इस यौन रोग गान' रिया(Gonorrhoea) से संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क स्थापित करने वाले व्यक्ति को भी यह रोग लग जाता है .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

    ram ram bhai
    शुक्रवार, 8 जून 2012
    जादू समुद्री खरपतवार क़ा
    बृहस्पतिवार, 7 जून 2012
    कल का ग्रीन फ्यूल होगी समुद्री शैवाल
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

    ReplyDelete