Monday, June 11, 2012

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (१४वीं-कड़ी)


तृतीय अध्याय
(कर्म-योग - ३.८-१५)


नियत कर्म है उसे करो तुम,
कर्म श्रेष्ठ, अकर्म से अर्जुन.
बिना कर्म तो नहीं है संभव
इस शरीर का पालन पोषण.


बांधे वह कर्मों से जन को
कर्म नहीं जो यज्ञ निमित्त.
हो आसक्ति मुक्त कौन्तेय,
कर्म करो तुम यज्ञ निमित्त.


यज्ञ सहित प्राणी रच करके
प्रजापति यह वचन उचारे.
हो वृद्धि इस यज्ञ के द्वारा,
इष्ट काम हों पूर्ण तुम्हारे.


करो तृप्त देवों को यज्ञ से, 
देव तुम्हें भी तृप्त करेंगे.
एक दूसरे के संवर्धन से,
स्व अभीष्ट को प्राप्त करेंगे.


होकर तृप्त यज्ञ से देवा,
मनचाहे सुख को हैं देते.
चोर कहाते जग में वे जन, 
बिना यज्ञ के भोग हैं करते.


यज्ञ शेष अन्न खाकर के
सज्जन पाप मुक्त हो जाते.
दुष्ट पकायें खुद खाने को,
वे हैं केवल पाप ही खाते.


अन्न से होते हैं सब प्राणी,
वर्षा से है अन्न उपजता.
होती वृष्टि यज्ञ करने से,
यज्ञ कर्म से पैदा होता.


यज्ञ कर्म ब्रह्म से पैदा,
अक्षर ब्रह्म जनक वेदों का.
अक्षर ब्रह्म सर्व व्यापी है,
सदा यज्ञ में वास है उसका.


              .......क्रमशः


कैलाश शर्मा 

18 comments:

  1. गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट लेखन ... आभार ।

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  2. बहुत ही सुन्दर .....शानदार प्रस्तुति....

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  3. बेहतरीन गहन अभिव्यक्ति की उत्‍कृष्‍ट रचना,,,,, ,

    MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,

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  4. नियत कर्म है उसे करो तुम,
    कर्म श्रेष्ठ, अकर्म से अर्जुन.
    बिना कर्म तो नहीं है संभव
    इस शरीर का पालन पोषण.
    दिल हर दम लुब डुब करता है भरे ,फेफड़े सांस हवा की....
    कर्म गति है इस जीवन की ,कर्म नियति है ,इस जीवन की ..

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  5. sir
    bahut hi gahanta ke saath rach gai aapki ye prerak prastuti bahut bahut hi achhi lagi
    hardik badhai

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  6. यज्ञ कर्म ब्रह्म से पैदा,
    अक्षर ब्रह्म जनक वेदों का.
    अक्षर ब्रह्म सर्व व्यापी है,
    सदा यज्ञ में वास है उसका.....बहुत ही अनुपम कृति आभार

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  7. बहुत सुन्दर है

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  8. कर्म-महिमा बताई है अर्जुन को !

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  9. दुष्ट पकायें खुद खाने को,
    वे हैं केवल पाप ही खाते.
    ....bilkul satya kaha hai ji

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  10. "करो तृप्त देवों को यज्ञ से,
    देव तुम्हें भी तृप्त करेंगे.
    एक दूसरे के संवर्धन से,
    स्व अभीष्ट को प्राप्त करेंगे."

    सुंदर संदेश देती श्रेष्ठ पंक्तियाँ। बधाई !

    मेरे ब्लॉग का link - www.sushilashivran.blogspot.in

    आपका इंतज़ार है मेरे ब्लॉग पर !

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  11. बहुत ही सुन्दर बात कही है आपने...
    कर्म से ही आदमी महान बनता है....
    प्रेरनादायी बेहतरीन रचना...

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  12. सुंदर गीता ज्ञान...बहुत बहुत आभार !

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  13. बहुत सारगर्भित श्रृंखला चल रही है...कर्म की प्रधानता...उत्कृष्ट लेखन !!

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  14. बहुत सुंदर, धन्यवाद!

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  15. बहोत सुंदर और शब्दों की रचना कमाल की है

    हिन्दी दुनिया ब्लॉग (नया ब्लॉग)

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