Friday, April 12, 2013

जीवन और मृत्यु


आ जाए जब  
जीना और मरना
जीवन के प्रत्येक पल में,
हर आती जाती श्वास
दे अहसास
मृत्यु और पुनर्जन्म का,
पहचान लें अपनी कमियाँ
निरपेक्ष भाव से
जो मिटा दे कलुष अंतर्मन का,
देखें केवल द्रष्टा भाव से
सभी अच्छे और बुरे कर्मों को,
बिना किसी पूर्वाग्रह के
झांकें दूसरों के अंतर्मन में
और कर पायें तादात्म्य आत्मा से,
लगती है सहज तब मृत्यु भी
जीवन में घटित घटनाओं की तरह,
नहीं होता अनुभूत कोई अंतर
तब जीवन और मृत्यु में.

...कैलाश शर्मा 

26 comments:

  1. सुंदर एवं सार्थक अभिव्यक्ति ....

    ReplyDelete
  2. बहुत ही दर्शनपरक कविता। जीवन-मृत्‍यु के सर्वोपरि पहलुओं के साथ मानुसिक वेदना के तादात्‍म्‍य की अनोखी रचना।

    ReplyDelete
  3. गहन दर्शन को समेटे सुन्दर पंक्तियाँ......बहुत खूब ।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर ....सही कहा आपने

    ReplyDelete
  5. वाह जीवन और मृत्यु के मर्म को आपने बखूबी उकेर दिया । प्रभावित करने वाली पंक्तियां

    ReplyDelete
  6. बेहद गहन अभिव्यक्ति.....
    बहुत सुन्दर दर्शन.............

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  7. वाह!!! बहुत बढ़िया | आनंदमय | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete
  8. gahan jeevan darshan piroya hai aapne sundar shaj shabdon me..saadar..

    ReplyDelete
  9. बहुत उम्दा गहन भाव अभिव्यक्ति,,,,आभार कैलाश जी,,,

    Recent Post : अमन के लिए.

    ReplyDelete
  10. देखें केवल द्रष्टा भाव से.... bahut badi baat kahi hai kailash ji .. par bahut kathin hota hai matr drishta bhav se dekhna

    ReplyDelete
  11. एक पल उसका, शेष जीवन मेरा..

    ReplyDelete
  12. बहुत गहरे विचार. शायद जब ऐसे ही समभाव से हर्ष और विषाद को देखने की शक्ति आ जाती है तब जा के जीवन का असल आनंद मिल पाता है.

    ReplyDelete
  13. गहन चिन्तन से उपजी सात्विक रचना कैलाश जी ! जीवन में यदि सभी इस मार्ग का अनुसरण करें तो सांसारिक मोह के बंधनों से मुक्ति पा सकेंगे और मन निर्मल हो जाएगा ! बहुत ही सुंदर रचना ! आभार आपका !

    ReplyDelete
  14. जीवन-मृत्यु के के सार्थक मर्म को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  15. जीवन के अर्थों को समझने का प्रयास है यह कविता.

    नवसंवत्सर की शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  16. सार्थक रचना

    ReplyDelete
  17. गहरा दर्शन लिए ...
    शायद गहन योग की स्थिति यही होती है ... हर पल को जीना ओर इसी में मरना ...
    कमाल का लिखा है ...

    ReplyDelete
  18. जेहि मरने से जग दुखी,सो मेरो आनन्द,
    कब मरिहौं कब पाइहौं पूरन परमानन्द.
    -कबीर.

    ReplyDelete
  19. बहुत उम्दा .अर्थपूर्ण,सार्थक‍ अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
  20. कहाँ मुमकिन होता है द्रष्टा भाव जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के लिए. पर किसी भी क्षणों में अगर ऐसे भाव आ जाएँ तो निः संदेह मृत्यु से डर और जीवन के प्रति मोह ख़त्म हो जाए. चिंतनशील रचना के लिए बधाई.

    ReplyDelete
  21. और रहता है सिर्फ मोक्ष

    ReplyDelete
  22. गहन अनुभूति
    सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. soch bahut accha rakhte ho,
      isi tarah likhte jao.
      gyan prasar karo jag me,
      nav sutradhar bante jao.
      - shyam bihari "saral"
      (krishan ganj pohri)

      Delete