Monday, July 08, 2013

अहम् ब्रह्मास्मि

‘अहम् ब्रह्मास्मि’
नहीं है सन्निहित
कोई अहंकार इस सूत्र में,
केवल अक्षुण विश्वास
अपनी असीमित क्षमता पर.
 
‘मैं’ ही व्याप्त समस्त प्राणी में
‘मैं’ ही व्याप्त सूक्ष्मतम कण में
क्यों मैं त्यक्त करूँ इस ‘मैं’ को,
करें तादात्म जब अपने इस ‘मैं’ का
अन्य प्राणियों में स्थित ‘मैं' से
होती एक अद्भुत अनुभूति
अपने अहम् की,
नहीं होता अहंकार या ग्लानि
अपने ‘मैं’ पर.

असंभव है आगे बढ़ना
अपने ‘मैं’ का परित्याग कर के,
यही ‘मैं’ तो है एक आधार
चढ़ने का अगली सीढ़ी ‘हम’ की,
अगर नहीं होगा ‘मैं’
तो कैसे होगा अस्तित्व ‘हम’ का,
सब बिखरने लगेंगे
उद्देश्यहीन, आधारहीन दिवास्वप्न से.

‘मैं’ केवल जब ‘मैं’ न हो
समाहित हो जाये उसमें ‘हम’ भी
तब नहीं होता कोई कलुष या अहंकार,
दृष्टिगत होता रूप
केवल उस ‘मैं’ का
जो है सर्वव्यापी, संप्रभु,
और हो जाता उसका ‘मैं’
एकाकार मेरे ‘मैं’ से.

असंभव है यह सोचना भी
कि नहीं कोई अस्तित्व ‘मैं’ का,
यदि नहीं है ‘मैं’
तो नहीं कोई अस्तित्व मेरा भी,
‘मैं’ है नहीं मेरा अहंकार
‘मैं’ है मेरा विश्वास
मेरी संभावनाओं पर
मेरी क्षमता पर,
जो हैं सन्निहित सभी प्राणियों में
जब तक है उनको आभास
अपने ‘मैं’ का.


...कैलाश शर्मा 

46 comments:

  1. वाकई आज सब जगह मैं हावी है। इसे कुतरना जरुरी हो गया है। अन्‍यथा स्‍वाभाविक जीवन खो जाएगा। गहराई में जाकर लिखी गई कविता, सुन्‍दर।

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  2. अंतर्मन को झंकृत करती हुई बहुत ही खूबसूरत रचना.

    रामराम.

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  3. "मैं" के व्याप्त रूप पर लिखी शानदार पोस्ट।

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  4. बढ़िया प्रस्तुति है श्रीमन -
    शुभकामनायें-

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  5. असंभव है आगे बढ़ना
    अपने ‘मैं’ का परित्याग कर के,
    यही ‘मैं’ तो है एक आधार
    चढ़ने का अगली सीढ़ी ‘हम’ की,
    अगर नहीं होगा ‘मैं’
    तो कैसे होगा अस्तित्व ‘हम’ का,
    सब बिखरने लगेंगे
    उद्देश्यहीन, आधारहीन दिवास्वप्न से.
    very right expression .

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  6. बहुत सुन्दर कृति !

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  7. बहुत ही गहन विचारों को व्यक्त करती कविता .. कितना तथ्य पूर्ण है यह कहना कि
    अगर नहीं होगा ‘मैं’
    तो कैसे होगा अस्तित्व ‘हम’ का,
    वाह .. बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए

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  8. आपकी यह रचना कल मंगलवार (09-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  9. वाह .. बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए

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  10. अगर नहीं होगा ‘मैं’
    तो कैसे होगा अस्तित्व ‘हम’ का,
    वाह !!! बहुत उम्दा भावपूर्ण लाजबाब प्रस्तुति के लिए बधाई ,,,

    RECENT POST: गुजारिश,

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  11. gambhir aur chkshu ko kholti prastuti

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  12. Yahee jeevanka saty hai...begad sukoon mila in bhashntar padhke...

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  13. बहुत सटीक लेखन
    किसी भी हाल में अहंकार ना आए यह जरुरी है ना कि मैं या हम

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  14. चुनने में बिफल रही कि कौन सी पंक्तियाँ ज्यादा अच्छी लगी
    दिल को छु गई रचना
    सादर

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  15. वाह बहुत ही सुंदर,अभिमान नही, आत्मविश्वास होना चाहिए,

    यहाँ भी पधारे ,
    रिश्तों का खोखलापन
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html

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  16. बहुत खूब | उम्दा अभिव्यक्ति लाजवाब | मैं मैं करते करते अधिकाँश लोगों की गाडी आज छूटती जा रही है |

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  17. इसी मैं के मय ने मन को हमेशा नचाया है और गिराया ही है. बहुत गहरी रचना.

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  18. sunder abhivyakti .aapne to bhism sahani ki yaad dila di.

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  19. This comment has been removed by the author.

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  20. बहुत कुछ सीखने को मिलता है आपके पोस्ट से ... 'मैं' अहंकार नहीं, 'मैं' विश्वास है!

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  21. बहुत बढ़िया विश्लेषण

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  22. असंभव है आगे बढ़ना
    अपने ‘मैं’ का परित्याग कर के,
    यही ‘मैं’ तो है एक आधार
    चढ़ने का अगली सीढ़ी ‘हम’ की,

    एक ध्रुव सत्य

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  23. मैं जब हम में समाहित हो जाए तो अहम् की गुंजाईश कहाँ !

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  24. ‘मैं’ केवल जब ‘मैं’ न हो
    समाहित हो जाये उसमें ‘हम’ भी
    तब नहीं होता कोई कलुष या अहंकार......गहन भाव ....

    इस सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बधाई

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  25. बहुत खूब, खूबशूरत अहसाह ,बहुत सुन्दर रचना

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  26. वाकई आज सब जगह मैं हावी है,बहुत सुन्दर रचना कैलाश जी।

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  27. ''मैं '' का हम में परिवर्तित होना सच में आसान नहीं है
    सार्थक लेखनी

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  28. मैं के अभिमान को न दर्शा कर मै का आभास कराती एक सुंदर रचना

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  29. This comment has been removed by the author.

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  30. अहम् ब्रह्मास्मि.... मैं ही ब्रह्म हूँ... की अच्छी व्याख्या आभार !!

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  31. यही तो तथ्य है..व सत्य है...इस मैं को जो खोज-समझ पाया वही जीवन्मुक्त, मुक्त, कैवल्यप्राप्त व ईश्वर प्राप्ति है...यदि मैं को हम में समाहित करेंगे तो संसार-कुचक्र में फंस जायेंगे...मैं अर्थात आत्म को ब्रह्म-स्वरुप ब्रह्म में लय करें....वही सत्य मार्ग है...

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  32. दृष्टिगत होता रूप
    केवल उस ‘मैं’ का
    जो है सर्वव्यापी, संप्रभु,
    और हो जाता उसका ‘मैं’
    एकाकार मेरे ‘मैं’ से.
    - अपने अस्तित्व के व्यापक बोध अहसास यही है!

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  33. अहम् ब्रह्मास्मि.... मैं ही ब्रह्म हूँ..सार्थक अभिव्यक्ति.बहुत सुन्दर..

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  34. वाह ! बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति , लाजवाब

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  35. ‘मैं’ है नहीं मेरा अहंकार
    ‘मैं’ है मेरा विश्वास
    मेरी संभावनाओं पर
    मेरी क्षमता पर,..

    बहुत खूब ... मैं को भी परिभाषित कर दिया आपने ...
    लाजवाब अभिव्यक्ति है ...

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  36. यही वह तत्व है जो सकल जगत को जोड़े हुये है..उत्कृष्ट रचना।

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  37. बहुत सुंदर, आभार

    यहाँ भी पधारे ,
    राज चौहान
    क्योंकि सपना है अभी भी
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

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  38. वाह ! 'मैं' की इतनी सुंदर व्याख्या..मैं जब अहम से मुक्त हो जाता है, तब ब्रह्म ही हो जाता है..

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  39. मैं क्या हूँ और मैं का क्या महत्व है-----गहन अर्थों की
    दार्शनिक रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    सादर

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  40. बहुत गहन दर्शन

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  41. गहरी सोच से भरी रचना

    नई पोस्ट
    तेरी ज़रूरत है !!

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