Friday, December 06, 2013

ख़्वाहिशें

रश्मि प्रभा जी और किशोर खोरेन्द्र जी द्वारा संपादित काव्य-संग्रह 'बालार्क' में सामिल मेरी रचनाओं में से एक रचना
                                                                  *****
डोर से कटी पतंग
बढ़ती स्वच्छंद
अनंत गगन में
अनभिज्ञ अपनी नियति से
कहाँ गिरेगी जाकर,
जीने दो कुछ पल
बिना डोर के बंधन के.
*****
भागते साथ भीड़ के
आता है याद
वो बरगद का पेड़,
संतुष्टि की घनी पगडंडियों
चेहरों पर,
ताकती उदास आँखों से
शहर को जाती सड़क.
*****
कितना खोया
कुछ पाने की चाहत में,
ताकता हसरत से
खुशियों से भरी सड़क
जाती गाँव को,
जो बन गयी
आज अज़नबी.
*****
कल की तलाश में
निकल जाता आज,
मुट्ठी से
रेत की तरह.


....कैलाश शर्मा 

(हिन्द-युग्म द्वारा प्रकाशित 'बालार्क' अधिकांश ई-स्टोर्स पर उपलब्ध)

35 comments:

  1. जाने क्या पाना चाहते हैं हम जो हमेशा कल की चाहत में आज खो देते हैं और जब तक बात समझ में आती है वक्त निकल चुका होता है ...बहुत बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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    1. bahut sundar rachna kailash ji , behad sanjidagi hai abhivyakti me , hardik badhai aapkko

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  2. जीवन मुट्ठी से गिरती रेत का विचित्र ताना-बाना है। बधाई। शुभकामनाएं।

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  3. बढ़िया है आदरणीय -
    आभार-

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  4. बहुत सुन्दर रचना.
    नई पोस्ट : आंसुओं के मोल

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  5. कल की तलाश में
    निकल जाता आज,
    मुट्ठी से
    रेत की तरह.बढ़िया......

    बेहतरीन अभिव्यक्ति...!
    ----------------------------------
    Recent post -: वोट से पहले .

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  6. बहुत सुन्दर रचनाएं....
    बालार्क के सभी रचनाकारों को बधाई....

    सादर
    अनु

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  7. छन्द-मुक्त भाव-प्रधानता के लिये साधुवाद !

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  8. बहुत सुंदर रचना बधाई .....!!.

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  9. एहसासों में डूबी पंक्तियाँ होती है आपकी पंक्तियाँ. अति सुन्दर. 'बालार्क' के लिए बहुत बहुत बधाई.

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  10. डोर से कटी पतंग
    बढ़ती स्वच्छंद
    अनंत गगन में
    अनभिज्ञ अपनी नियति से
    कहाँ गिरेगी जाकर,
    जीने दो कुछ पल
    बिना डोर के बंधन के
    बहुत सुन्दर !
    नई पोस्ट नेता चरित्रं
    नई पोस्ट अनुभूति

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  11. कल की तलाश में आज निकल जाता है।
    सच्ची हैं रचनाएं !

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  12. सच की बानगी लिए भाव ..... बहुत उम्दा

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  13. मानवीय संवेदनाओं को जगातीं बहुत ही सुन्दर रचनायें ! शुभकामनायें कैलाश जी !

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  14. मृगतृष्णा है ये जीवन .......गहरे अहसास !

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  15. बहुत सुन्दर रचना महोदय.. बधाई आपको..

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  16. जीवन की सचाइयों को कुछ ही शब्दों में लिखा है आपने ... गहरा जीवन दर्शन ...

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  17. बहुत सुन्दर रचना ,बधाई ...!

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  18. कल की तलाश में
    निकल जाता आज,
    मुट्ठी से
    रेत की तरह.
    बहुत गहरे भाव !

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  19. बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ

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  20. बहुत-बहुत बधाई आपको..
    बहुत ही सुन्दर रचनाएं है...
    :-)

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  21. सुन्दर रचनाएं है...बहुत-बहुत बधाई आपको.

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  22. बधाई हो। ……। सुन्दर रचना |

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  23. कल की तलाश में
    निकल जाता आज,
    मुट्ठी से
    रेत की तरह.
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  24. antartam gaharai se nikalti hui panktiyan

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  25. वाह...उत्तम...इस प्रस्तुति के लिये आप को बहुत बहुत धन्यवाद...

    नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

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  26. अच्छी प्रगतिवादी रच्क्ना !

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  27. बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन है यह।

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  28. बहुत-बहुत बधाई आपको......

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