Tuesday, November 04, 2014

सूनापन

सूना सूना मन लगता है,
कहीं न अपनापन लगता है।
घर के जिस कोने में झाँकूं,
वहां अज़ानापन लगता है।
 
क्यूँ खुशियों  के चहरे पर भी
अनजानी सी झिझक देखता।
हाथ बढाता जिधर प्यार से,
उधर ही खालीपन लगता है।
 
मायूसी बिखरी हर पथ पर,
मंज़िल है बेजान सी लगती।
क़दम नहीं इक पग भी बढ़ते,
थका थका सा मन लगता है।
 
बिस्तर तरसे है सलवट को,
नींद खडी है अंखियन द्वारे।
कसक रहे सपने पलकों में,
जीवन सिर्फ़ घुटन लगता है।
 
उजड़ा उजड़ा लगे है उपवन,
फूलों का रंग लगे है फीका।
 गुज़रा जीवन संघर्षों में,
अब सोने को मन करता है।
 
...कैलाश शर्मा

26 comments:

  1. सूनेपन और अकेलेपन से सिमटी बहुत ही भावपूर्ण रचना...

    ReplyDelete
  2. बहुतत खूब, शर्माजी एकाककीपन का आपने बसूबी चित्रण किया है, सादर बधाई

    ReplyDelete
  3. अकेलापन फीका जहर है जो मारता जरुर है लेकिन बड़ी अदब से धीरे धीरे.

    खुबसुरत रचना

    ReplyDelete
  4. अकेलेपन की व्यथा यूँ व्यक्त हुई मानो खुद भोगी गयी

    ReplyDelete
  5. रचनाकार के अकेलेपन की ...रचना ??

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  7. भावपूर्ण रचना..मन की तो यही कहानी है..मन यानि अभाव..और आत्मा यानि आनन्द..मन यानि मनुष्य ..आत्मा यानि परमात्मा...

    ReplyDelete
  8. सूनापन जीवन में कभी न कभी आता है ! सुन्दर प्रस्तुति !
    तुझे मना लूँ प्यार से !

    ReplyDelete
  9. सुंदर भावपूर्ण रचना....

    ReplyDelete
  10. अकेलेपन में अकसर सूनापन आ घेरता है ... फिर कुछ भी अच्छा नहीं लगता ....
    भावपूर्ण रचना है ...

    ReplyDelete
  11. अद्भुत रचना , मंगलकामनाएं आपको भाई जी !!

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर ! एक तरह की थकन और वीतराग की खनक सी ध्वनित हो रही है आपकी कविता में ! उत्कृष्ट अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  13. loneliness..your words portray it well sir :)

    ReplyDelete
  14. मायूसी बिखरी हर पथ पर,
    मंज़िल है बेजान सी लगती।
    क़दम नहीं इक पग भी बढ़ते,
    थका थका सा मन लगता है।
    सुंदर भावपूर्ण रचना.श्री शर्मा जी

    ReplyDelete
  15. एकाकीपन से उत्पन्न अवसादपूर्ण मनस्थिति का सुन्दर चित्रण ..

    ReplyDelete
  16. बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति है ...सर

    ReplyDelete
  17. मन के एकाकीपन का बखूबी चित्रण किया है आपने ...

    ReplyDelete
  18. सुंदर भावपूर्ण

    ReplyDelete
  19. मन अकेला क्या क्या न सोचे।

    ReplyDelete
  20. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति.... आभार।

    ReplyDelete
  21. उचाट मन मेरा तेरा या आपाधापी जीवन की क्या कहूँ तू ही बता -अब लौटने को मन करता है। साँझ हुई घर दुआरे -बहुत सुन्दर रचना है जीवन में पसरी अन्यमनस्कता का सुन्दर लेखा।

    ReplyDelete
  22. भावमय करते शब्‍द व प्रस्‍तुति

    ReplyDelete