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Saturday, May 14, 2011

नहीं चाहिए मन्दिर मस्ज़िद

नहीं चाहिये मंदिर मस्ज़िद,
न  गिरिजाघर , गुरुद्वारा.
मेरा  ईश्वर  मेरे  अन्दर,
क्यों मैं फिरूं मारा मारा ?

धर्म यहाँ व्यापार हो गया,
भुना रहे हैं नाम राम का.
सीता कैदमुक्त न अब तक,
जोह रही है बाट राम का.

पका  रहे  सब  अपनी  रोटी,
मज़हब की दीवार खडी कर. 
ईश्वर अल्लाह नहीं अलग हैं,
थोड़ी  अपनी सोच बड़ी कर.

भूखे  पेट  सो  रहे  बच्चे,
पूछो उनसे मज़हब उनका.
शायद कल रोटी मिलजाये,
इतना ही है मज़हब उनका.

गर प्यारा  है जो ऱब तुमको,
चल दुखियों को गले लगालो.
जो अनाथ लाचार हैं जग में,
उनको उँगली पकड़ उठा लो. 

53 comments:

  1. नहीं चाहिये मंदिर मस्ज़िद,
    न गिरिजाघर , गुरुद्वारा.
    मेरा ईश्वर मेरे अन्दर,
    क्यों मैं फिरूं मारा मारा ?
    आपकी कविता में व्यापक संदेश निहित है। पाठक के चिंतन को झकझोरने वाली रचना के लिए साधुवाद!
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ! शुभकामनायें

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  2. बहुत अच्छे विचार रखे हैं सर!

    सादर

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  3. सीधे सादे शब्दों में बहुत पते की बात । बहुत सार्थक और सुंदर रचना । धन्यवाद ।

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  4. गर प्यारा है जो ऱब तुमको,
    चल दुखियों को गले लगालो.
    जो अनाथ लाचार हैं जग में,
    उनको उँगली पकड़ उठा लो.

    बहुत ही सुन्दर आह्वान्…………शानदार प्रस्तुति।

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  5. बहुत सुन्दर रचना..सबको समझना चाहिए इसका भावार्थ..सभी पक्षों को ...

    मेरे विचार थोडा भिन्न हैं क्युकी आप की कविता की पंक्तियों का एकतरफा कार्यान्वयन संभव नहीं लगता...
    ..........................
    "मेरे कुछ पल (अयोध्या) मुझको दे दो.
    बाकि सारे दिन(ताज से मथुरा,कशी से काबा) लोगों,
    तुम जैसा जैसा कहते हो...सब वैसा वैसा होगा...

    बहुत सुन्दर रचना ...

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  6. वाह! कैलाश जी आपने 'सत्यम शिवम सुन्दरम' को अपनी सुन्दर प्रस्तुति में अभिव्यक्त किया है.
    बहुत बहुत आभार.

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  7. आदरणीय कैलाश शर्मा जी

    भूखे पेट सो रहे बच्चे,
    पूछो उनसे मज़हब उनका.
    शायद कल रोटी मिलजाये,
    इतना ही है मज़हब उनका.

    बहुत सुन्दर रचना

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  8. अच्छी पोस्ट है…

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  9. भूखे पेट सो रहे बच्चे,
    पूछो उनसे मज़हब उनका.
    शायद कल रोटी मिलजाये,
    इतना ही है मज़हब उनका.

    सुन्दर प्रस्तुति

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  10. भूखे पेट सो रहे बच्चे,
    पूछो उनसे मज़हब उनका।
    शायद कल रोटी मिल जाये,
    इतना ही है मज़हब उनका।

    भूखे बच्चों के लिए रोटी ही मजहब है।
    सामयिक और सार्थक संदेश देती सुंदर रचना।

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  11. भूखे पेट सो रहे बच्चे,
    पूछो उनसे मज़हब उनका.

    बहुत सुन्दर ... लाजवाब

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  12. गर प्यारा है जो ऱब तुमको,
    चल दुखियों को गले लगालो.
    जो अनाथ लाचार हैं जग में,
    उनको उँगली पकड़ उठा लो.
    बहुत सुन्दर, लाजवाब........

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  13. bahut sunder sadhi hui rachna...गर प्यारा है जो ऱब तुमको,
    चल दुखियों को गले लगालो.
    जो अनाथ लाचार हैं जग में,
    उनको उँगली पकड़ उठा लो.

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  14. सही सोच से लिखी गई विचारोत्तेजक कविता।

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  15. आदरणीय कैलाश जी
    नमस्कार !
    ................सार्थक संदेश देती सुंदर रचना।

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  16. बस यही समझ लें कि जो घर में है, उसे हम बाहर ढूढ़ते फिरते हैं। सुन्दर कविता।

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  17. बिल्कुल सही कहा है आपने। एक एक लाईन सटीक है। धर्म के नाम पर हम लाखों रूप्ये खर्च कर सकते है लेकिन किसी गरीब की भलाई नही कर सकते। सुन्दर रचना।

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  18. yatharth ko prastut karti sateek rachna

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  19. पका रहे सब अपनी रोटी,
    मज़हब की दीवार खडी कर.
    ईश्वर अल्लाह नहीं अलग हैं,
    थोड़ी अपनी सोच बड़ी कर.

    एकदम सही कहा है...बहुत अच्छी रचना...

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  20. ऐसी सोच अगर सबकी हो जाये तो कोई मतभेद ही न रह जाये ....
    बेहद सूकून देते विचार .......आभार !

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  21. पका रहे सब अपनी रोटी,
    मज़हब की दीवार खडी कर.
    ईश्वर अल्लाह नहीं अलग हैं,
    थोड़ी अपनी सोच बड़ी कर.
    कुछ सही कहा आपने ...थोड़ी सोच बड़ी करने की ही ज़रुरत है..... सुंदर भाव लिए रचना

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  22. भूखे पेट सो रहे बच्चे,
    पूछो उनसे मज़हब उनका.
    शायद कल रोटी मिलजाये,
    इतना ही है मज़हब उनका... isse badaa koi dharm nahin

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  23. गर प्यारा है जो ऱब तुमको,
    चल दुखियों को गले लगालो.
    जो अनाथ लाचार हैं जग में,
    उनको उँगली पकड़ उठा लो.

    कविता का climax बहुत प्यारा है.वाह.

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  24. आदरणीय भाईजी कैलाश जी
    प्रणाम !
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    नहीं चाहिये मंदिर मस्ज़िद,
    न गिरिजाघर , गुरुद्वारा.
    मेरा ईश्वर मेरे अन्दर,
    क्यों मैं फिरूं मारा मारा ?


    समझदारी की तो यही बात है …
    घट घट में सांई डोलता …

    बहुत अच्छी रचना के लिएहार्दिक बधाई और आभार !


    शुभकामनाएं
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  25. भूखे पेट सो रहे बच्चे,
    पूछो उनसे मज़हब उनका.
    शायद कल रोटी मिलजाये,
    इतना ही है मज़हब उनका.

    सन्देश देती अच्छी रचना

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  26. ईश्वर अल्लाह नहीं अलग हैं,
    थोड़ी अपनी सोच बड़ी कर.

    वाह शर्मा जी वाह, बहुत ही असरदार अभिव्यक्ति है| बधाई|

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  27. सही कहा आपने। वहाँ पर बार बनवा दिया जाये तो आटोमैटिक झगड़ा खत्म हो जाये। व्हाट्स युअर ओपीनियन ? सर

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  28. सार्थक संदेश देती सुंदर कविता, सच है सेवा से ही ईश्वर मिलता है, संतो ने भी यही संदेश दिया है !

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  29. काश ये सन्देश हम आत्मसात कर पाते . आभार इस कविता के लिए .

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  30. बहुत सुंदर कविता मजहब पर दमदार कटाक्ष सर बधाई और शुभकामनाएं

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  31. उत्तम संदेश देती रचना:

    गर प्यारा है जो ऱब तुमको,
    चल दुखियों को गले लगालो.
    जो अनाथ लाचार हैं जग में,
    उनको उँगली पकड़ उठा लो.

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  32. शर्मा जी ! ज़मीन से जुडी हुयी रचना है.
    क्षमा करेंगे ....एक विनम्र अनुरोध है ....

    "नहीं चाहिये मंदिर मस्ज़िद,
    न गिरिजाघर , गुरुद्वारा.
    मेरा ईश्वर मेरे अन्दर,
    क्यों मैं फिरूं मारा मारा ?"

    क्या इसे इस तरह लिखा जाय -

    नहीं चाहिए मंदिर मस्जिद
    और न गिरजाघर, गुरुद्वारा.
    मेरा ईश्वर मेरे अन्दर ,
    फिरूं कहाँ मैं मारा-मारा ?

    और "सीता कैदमुक्त न अब तक," के स्थान पर

    सीता कैद, मुक्त न अब तक

    कृपया अन्यथा नहीं लेंगे .....यह मेरा मात्र विनम्र मत भर है.....

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  33. गर प्यारा है जो ऱब तुमको,
    चल दुखियों को गले लगालो.
    जो अनाथ लाचार हैं जग में,
    उनको उँगली पकड़ उठा लो.

    सार्थक संदेश देती सुंदर गीत. बहुत ही असरदार अभिव्यक्ति. बधाई.

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  34. जीवन के सत्य की सुन्दर अभिव्यक्ति है

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  35. सटीक और प्रभावशाली शब्दावली में
    दिया गया बहुत ही असरदार सन्देश ..
    आपकी सोच की पावनता
    सभी तक पहुंचे
    यही कामना है .

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  36. गर प्यारा है जो ऱब तुमको,
    चल दुखियों को गले लगालो.
    जो अनाथ लाचार हैं जग में,
    उनको उँगली पकड़ उठा लो.

    बहुत ही सुन्दर संदेश देती पंक्तियाँ हैं....बढ़िया रचना

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  37. पका रहे सब अपनी रोटी,
    मज़हब की दीवार खडी कर.
    ईश्वर अल्लाह नहीं अलग हैं,
    थोड़ी अपनी सोच बड़ी कर...

    ये बाद बहुत अच्छी है अगर सभी ऐसा सोचें तब .... नही तो ये कभी कभी नुकसान देती है लंबे दौर में ....

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  38. गर प्यारा है जो ऱब तुमको,
    चल दुखियों को गले लगालो.
    जो अनाथ लाचार हैं जग में,
    उनको उँगली पकड़ उठा लो.

    एक प्रेरक संदेश है इन पंक्तियों में ..सार्थक लेखन ।

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  39. बहुत सार्थक और सुंदर रचना । धन्यवाद ।

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  40. vishaal hriday se likhi gai rachna....

    wasudha-ev-kutumbkam.....

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  41. भूखे पेट सो रहे बच्चे,
    पूछो उनसे मज़हब उनका.
    शायद कल रोटी मिलजाये,
    इतना ही है मज़हब उनका..
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! सच्चाई को आपने बड़े खूबसूरती से प्रस्तुत किया है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

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  42. sunder vicharon ke sath sunder prastuti...........

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  43. सत्य वचन शर्मा जी !
    सार्थक और सुन्दर रचना ..
    रचना के अंतिम दो बन्दों में ईश्वर की सच्ची भक्ति निहित है |

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  44. सही कहा आपने
    नहीं चाहिये मंदिर मस्ज़िद,
    न गिरिजाघर , गुरुद्वारा

    जीवन का सत्य है -
    मेरा ईश्वर मेरे अन्दर,
    क्यों मैं फिरूं मारा मारा
    उम्दा रचना.. शुभकामनाएं

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  45. पका रहे सब अपनी रोटी,
    मज़हब की दीवार खडी कर.
    ईश्वर अल्लाह नहीं अलग हैं,
    थोड़ी अपनी सोच बड़ी कर....

    Very motivating lines Kailash ji .

    .

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  46. "भूखे पेट सो रहे बच्चे,
    पूछो उनसे मज़हब उनका.
    शायद कल रोटी मिलजाये,
    इतना ही है मज़हब उनका"

    झकझोर देने वाली कविता के लिये आभार ।

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  47. गर प्यारा है जो ऱब तुमको,
    चल दुखियों को गले लगालो.
    जो अनाथ लाचार हैं जग में,
    उनको उँगली पकड़ उठा लो.

    बहुत ही अच्छा सन्देश दिया है आपने.
    बहुत ही खूब.

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  48. समाज के लिये एक प्रश्न भी ,
    और एक संदेश भी ।
    बहुत खूब ।

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  49. पका रहे सब अपनी रोटी,
    मज़हब की दीवार खडी कर.
    ईश्वर अल्लाह नहीं अलग हैं,
    थोड़ी अपनी सोच बड़ी कर

    सही कहा है भाई जी ...शुभकामनायें !!

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  50. सुन्दर भाव भरी रचना और धर्मान्धों के लिये एक सशक्त संदेश.


    एक शेर याद आ गया आपकी रचना पढ कर

    मस्जिदें हैं नमाजियों के लिये
    अपने घर में कहीं खुदा रखना
    जब किसी से कोई गिला रखना
    सामने अपने आईना रखना

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  51. बहुत सार्थक और सुंदर रचना ।

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