Friday, May 20, 2011

इतना दर्द मिला अपनों से

इतना दर्द मिला अपनों से,
दुश्मन से ही प्यार हो गया.
मुस्कानों ने छला है इतना,
आँसू  से  इक़रार  हो  गया.

दुनियां की इस भीड़ भाड़ में,
कितना आज अकेला पाता.
रात  बिताता  इंतज़ार  में,
सूरज  मगर  अँधेरा लाता.

घिरा हुआ  हूँ  कोलाहल से,
एक शब्द को कान तरसते,
नज़र उठाता जिस चहरे पर,
वह   चहरे अनजाने  लगते.

कब तक बात करूँ मैं खुद से,
मेरा स्वर तुम  साथ ले गयी.
जिंदा  हूँ मैं सिर्फ़  इस लिये,
चित्रगुप्त   की बही  खो गयी.

46 comments:

  1. कब तक बात करूँ मैं खुद से,
    मेरा स्वर तुम साथ ले गयी.
    जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी.
    Aah! Gazab kee rachana hai!

    ReplyDelete
  2. अकेलेपन का दर्द बयां करती है आपकी भावमयी सुंदर रचना। धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. कब तक बात करूँ मैं खुद से,
    मेरा स्वर तुम साथ ले गयी.
    जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी.
    kuch kahun to kya , akelepan ko mahsoos ker rahi hun

    ReplyDelete
  4. उफ़ ! इतना एकाकीपन ! पर बही खोने की बात क्यों ? क्यों न हर सांस को अच्छे से जिया जाय .

    ReplyDelete
  5. इतना अकेला क्यों हो जाता है इन्सान ......
    ’चित्रगुप्त की बही’....इसके आगे तो कुछ हो ही नहीं सकता ....सादर !

    ReplyDelete
  6. दुनियां की इस भीड़ भाड़ में,
    कितना आज अकेला पाता.
    रात बिताता इंतज़ार में,
    सूरज मगर अँधेरा लाता.

    आपकी कविता की रवानगी देखकर वाह कर उठा , शब्दों का संचयन बेहद प्रभावशाली है कैलाश जी, सहितियक भूख मिटाने के लिए बधाई

    ReplyDelete
  7. ओह ...बहुत भावुक कर देने वाली रचना ...

    ReplyDelete
  8. जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी.
    ज़िन्दा रहने का एक कारण यह भी हो सकता , बहुत खूब वाह वाह .....

    ReplyDelete
  9. dard ka sampoorn khaka kich diya hai aapki rachna ne+

    ReplyDelete
  10. कब तक बात करूँ मैं खुद से,
    मेरा स्वर तुम साथ ले गयी.
    जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी.

    बहुत सुंदर .....अंतर्मन के भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  11. घिरा हुआ हूँ कोलाहल से,
    एक शब्द को कान तरसते,
    बेहद खूबसूरत रचना

    ReplyDelete
  12. जिन्‍दगी की तड़फ, ....... चित्रगुप्त की बही खो गयी.
    लाजवाब.

    ReplyDelete
  13. भावपूर्ण रचना

    ReplyDelete
  14. कब तक बात करूँ मैं खुद से,
    मेरा स्वर तुम साथ ले गयी.
    जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी
    एक - एक शब्द प्यार के अहसासों से सराबोर कर देने वाला ......सच में यह अहसास ऐसा है जिसे कभी भी खुद से जुदा नहीं किया जा सकता ..
    और आपकी रचना इसकी सार्थकता को दर्शाती है
    हम इन्तजार करेंगे क़यामत तक खुदा करे तू आ जाये
    .....आपका आभार

    ReplyDelete
  15. नि:शब्‍द करने वाली रचना। बधाई।

    ReplyDelete
  16. जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी.

    बहुत अच्छी और भावुकता प्रधान कविता.

    सादर

    ReplyDelete
  17. इतना दर्द मिला अपनों से,
    दुश्मन से ही प्यार हो गया.
    मुस्कानों ने छला है इतना,
    आँसू से इक़रार हो गया.

    बहुत गहरी पंक्तियाँ।

    ReplyDelete
  18. इतना दर्द मिला अपनों से,
    दुश्मन से ही प्यार हो गया.
    मुस्कानों ने छला है इतना,
    आँसू से इक़रार हो गया.

    सारगर्भित तथा सार्थक रचना ..धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  19. जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी.

    क्या बात ..कितनी सुन्दर कवितायेँ..रोज कई कविताये पढता हूँ पर कुछ अंकित हो जाती हैं मन में उनमे से एक कविता..
    आभार

    ReplyDelete
  20. apani -si lagti panktiya................

    ReplyDelete
  21. कैलाश जी बहुत दिनों बाद .......आपके ब्लॉग पर आया हूँ .........आपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी ....

    ReplyDelete
  22. इतना दर्द मिला अपनों से,
    दुश्मन से ही प्यार हो गया.
    मुस्कानों ने छला है इतना,
    आँसू से इक़रार हो गया.

    शानदार रचना के लिये बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  23. कब तक बात करूँ मैं खुद से,
    मेरा स्वर तुम साथ ले गयी.
    जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी.

    अकेलेपन का दर्द बयां करती, भावपूर्ण रचना.......

    ReplyDelete
  24. जब दर्द की इन्तहा हो जाती है तब ऐसा स्वर उमड़ता है, मार्मिक कविता !

    ReplyDelete
  25. दर्द बयां करती खूबसूरत रचना, आपकी लेखनी बहुत बड़ी बात कह जाती है|

    ReplyDelete
  26. कब तक बात करूँ मैं खुद से,
    मेरा स्वर तुम साथ ले गयी,
    जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी।

    ओह, अकेलेपन की व्यथा इस गीत में मुखरित हो गई है।
    यह गीत अनेक हृदयों के साथ तादात्म्य स्थापित करने में सक्षम है।

    ReplyDelete
  27. इतना दर्द मिला अपनों से,
    दुश्मन से ही प्यार हो गया.
    मुस्कानों ने छला है इतना,
    आँसू से इक़रार हो गया.

    दर्द यदि दर्द बन कर रहे तो ही ठीक है , मिठास की सम्भावनाये बनी रहती है परन्तु यदि वह जीवन लेने पर तुल जाय तो उस दर्द को क्या कहा जाय? अपनों को तो हत्यारा भी नहीं कह सकते. चुपके चुपके सहने और घुट -घुट कर मरने, तिल -तिल कर जलने, उद्देश्यहीन जीवन का चित्रण दर्द की स्याही में लेखनी डुबो डुबो कर लिखा गया है. अपनत्व से भटक कर पराया घर में आश्रय मिलता है तो थोड़ी राहत है मगर वहाँ भी दर्द मिले तो अच्छा है, कम से कम घर वापसी की सम्भावन्नाये तो रहेंगी. बहुत ही गहरी रचना. याद आ रहा है पंकज उधास की गजल - जिन्दगी और गम दोनों हैरान हैं.., दम निकलने न पाए तो मैं क्या करूँ? चित्रगुप्त की बही खो जाने का बहाना एक नया बिम्ब प्रयोग भी है जो साहित्य को समृद्ध करेगा.....इसे कॉपी कर के रख लिया है मैंने.

    ReplyDelete
  28. जीवन तो नित संग्राम है
    कहीं दृश्य नययाभिराम है
    तो मचा कहीं कोहराम है.
    कह लो जीवन या मौत उसे
    वह गति में एक विराम है.
    हर तिमिर के बाद आता है सवेरा
    आएगा आएगा अब उज्ज्वल सबेरा.

    इस विराम की एक विशेषता
    देता है अवसर एक सुनहरा.
    शोधन और परिशोधन का
    परिवर्द्धन और संशोधन का.
    लक्ष्य को फिर से पा जाने का
    नभ में फिर से छा जाने का.

    ReplyDelete
  29. कब तक बात करूँ मैं खुद से,
    मेरा स्वर तुम साथ ले गयी.
    जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी
    वाह ! ! ! बिलकुल अभिनव कल्पना.एकाकी का अद्भुत अतिरेक.
    आपको पढ़ कर सद्यज पंक्तियाँ समर्पित कर रहा हूँ....
    पहले समझा करता था मैं
    एकाकी बस दुःख देती है.
    अब जाना कि कोलाहल में
    एकाकी ही सुख देती है.

    ReplyDelete
  30. दिल की गहराइयों से भावनाएं उभर कर आयी हैं इस कविता में . बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  31. कविता की हर पंक्ति में मानवीय संवेदनाओं से सिक्त भावनाओं का सजीव शब्दांकन है| बधाई| चित्रगुप्त की बही, आँसू से इकरार, सूरज मगर ................. वाली अभिव्यक्तियाँ काफी रोचक हैं| बधाई|

    ReplyDelete
  32. "कब तक बात करूँ मैं खुद से,
    मेरा स्वर तुम साथ ले गयी.
    जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी"

    बहुत बहुत बहुत बहुत ही दर्द भरा गीत है । संवेदनशील और म्रर्मस्पर्शी ।

    ReplyDelete
  33. बहुत सुंदर जी,वाह! वाह! वाह!
    लेकिन कैलाश जी चित्र गुप्त की बही तो मिल गई है.
    पर उसमें आपका नाम कहीं नहीं है.
    उनके पास 'स्वर' रहने पर भी आपकी बातें बहुत अच्छी लग रहीं हैं.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
    मेरे ब्लॉग पर भी अपनी कृपा वृष्टि कीजियेगा.

    ReplyDelete
  34. ekakipan ko khoobsorati se prastute kiya hai....

    ReplyDelete
  35. मन की व्यथा को सामने लाती बेहद सशक्त रचना । वाह...

    ReplyDelete
  36. हृदयस्पर्शी रचना। दर्द कविता में सहजता से बहता है।

    ReplyDelete
  37. इतना दर्द मिला अपनों से,
    दुश्मन से ही प्यार हो गया.
    मुस्कानों ने छला है इतना,
    आँसू से इक़रार हो गया.

    क्या कहना इन पंक्तियों का सच्चाई को सामने लाती हुई ....आपका आभार

    ReplyDelete
  38. कब तक बात करूँ मैं खुद से,
    मेरा स्वर तुम साथ ले गयी.
    जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी.

    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete
  39. रचना के सभी बंद सुन्दर ....

    तनहाई के दर्द का भावपूर्ण चित्रण ..

    ReplyDelete
  40. दुनियां की इस भीड़ भाड़ में,
    कितना आज अकेला पाता.
    रात बिताता इंतज़ार में,
    सूरज मगर अँधेरा लाता.

    सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार

    ReplyDelete
  41. कब तक बात करूँ मैं खुद से,
    मेरा स्वर तुम साथ ले गयी.
    जिंदा हूँ मैं सिर्फ़ इस लिये,
    चित्रगुप्त की बही खो गयी.

    bahut marmik rachna kailash ji ........

    mafi chahungi bahar safar me idhar ke din gujare hain jisse blog se dur rahi .........

    ReplyDelete
  42. intense pain, very beautifully depicted by your words.
    lovely post !!!

    ReplyDelete
  43. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! दर्द बयान करती हुई भावपूर्ण रचना ! आपकी रचना पढ़कर आँखें नम हो गयी! बेहतरीन प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  44. इतना दर्द मिला अपनों से,
    दुश्मन से ही प्यार हो गया.
    मुस्कानों ने छला है इतना,
    आँसू से इक़रार हो गया.

    dhanyavad ji

    ReplyDelete