Thursday, June 13, 2013

कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहने दें

सारा जीवन गंवा दिया है
प्रश्नों के उत्तर देने में,
बैठें भूल सभी बंधन को,
कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहने दें.

सूरज पाने की चाहत में,
शीतलता शशि की बिसरायी,
टूटे तारों से अब क्या मांगें,
अब आस यहीं पर थमने दें.

रिश्ते बने कभी ज़ंजीरें,
यादें बनीं कभी अंगारे,
बंद करें मुट्ठी में कुछ पल,
कल को कल पर ही रहने दें.

तप्त धूप में चलते चलते
सूख गयी जीवन की सरिता,
क्यों ढूंढें छाया तरुवर की
अपनी छाया ही साथी बनने दें.

धोखा खाया जब अपनों से
शिकवा गैरों से क्यों कर हो,
ढूंढें खुशियाँ अपने अन्दर,
जीवन अब निर्झर बहने दें. 


.....कैलाश शर्मा 

32 comments:

  1. हर पंक्ति सार्थक संदेश देती हुई .... बहुत सुंदर रचना .... जीवन में उतारने लायक कथ्य

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  2. गहन भाव लिए हुए बहुत सुंदर रचना ...

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  3. धोखा खाया जब अपनों से
    शिकवा गैरों से क्यों कर हो,
    ढूंढें खुशियाँ अपने अन्दर,
    जीवन अब निर्झर बहने दें.
    ..सच जो अपने होते हैं वही करीब होते हैं और ख़ुशी गम धोखा सभी वही देते रहते हैं ..
    जीवन में जो पल ख़ुशी के मिल जायं वही ठीक ..
    बहुत बढ़िया चिंतनशील रचना

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  4. उत्तर के आगे प्रश्नों का अंत नहीं होता .... बेहतर है कुछ अनुत्तरित रहना - प्रश्नकर्ता की संतुष्टि,उत्तर देनेवाले का सुकून :)

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  5. तप्त धूप में चलते चलते
    सूख गयी जीवन की सरिता,
    क्यों ढूंढें छाया तरुवर की
    अपनी छाया ही साथी बनने दें.
    बहुत ही सुंदर एवँ सशक्त रचना ! हर पद अनुपम है !

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  6. बंद करें मुट्ठी में कुछ पल,
    कल को कल पर ही रहने दें.बस इतना ही यदि समझ ले हर इंसान,तो शायद जीना थोड़ा आसान हो जाये सभी के लिए। सार्थक संदेश देती लाजवाब रचना।

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  7. धोखा खाया जब अपनों से
    शिकवा गैरों से क्यों कर हो,
    ढूंढें खुशियाँ अपने अन्दर,
    जीवन अब निर्झर बहने दें.
    ashawadi vichar ....

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  8. तप्त धूप में चलते चलते
    सूख गयी जीवन की सरिता,
    क्यों ढूंढें छाया तरुवर की
    अपनी छाया ही साथी बनने दें.
    .. क्या बात कही है कैलाश जी .. बहुत सुन्दर कविता !

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  9. बाऊ जी, नमस्ते!
    अपने-पराये का भेद मिटा दिया आपने!
    ढ़
    --
    थर्टीन ट्रैवल स्टोरीज़!!!

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  10. कुछ प्रश्न तो परीक्षा में भी ऑप्नशल होते हैं -कोई जवाबदेही नहीं जिनकी !

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  11. बहुत सुन्दर......
    आपका कहा मान लें तो जीवन सफल/सरल हो जाए.....

    सादर
    अनु

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  12. प्रश्न मन में गहराते रहे,
    हम हाथ लहराते रहे,
    हद की धड़कन न सुनी,
    सबका आलाप गाते रहे।

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  13. अपना सब कुछ लुटा के..होश में आये
    आज की नई पीढ़ी के लिए .....??
    बधाई!

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  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (14-06-2013) के "मौसम आयेंगें.... मौसम जायेंगें...." (चर्चा मंचःअंक-1275) पर भी होगी!
    सादर...!
    रविकर जी अभी व्यस्त हैं, इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  15. धोखा खाया जब अपनों से
    शिकवा गैरों से क्यों कर हो,
    ढूंढें खुशियाँ अपने अन्दर,
    जीवन अब निर्झर बहने दें.

    बहुत सुन्दर, बहुत बधाई...

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  16. ढूंढें खुशियाँ अपने अन्दर,
    जीवन अब निर्झर बहने दें.

    सार्थक सम्बोधन!!

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  17. तप्त धूप में चलते चलते
    सूख गयी जीवन की सरिता,
    क्यों ढूंढें छाया तरुवर की
    अपनी छाया ही साथी बनने दें.

    लाजवाब रचना

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  18. सभी पंक्तियाँ अर्थपूर्ण बहुर दुन्दर प्रस्तुति !
    latest post: प्रेम- पहेली
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

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  19. बहुत ही सुन्दर रचना..
    लाजवाब
    :-)

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  20. बड़ी मधुर रचना है भाई जी !
    बधाई !!

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  21. धोखा खाया जब अपनों से
    शिकवा गैरों से क्यों कर हो,
    ढूंढें खुशियाँ अपने अन्दर,
    जीवन अब निर्झर बहने दें.

    बहुत ही सुंदर भाव, जीवन का यही दर्शन सर्वोत्तम हैं, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  22. धोखा खाया जब अपनों से
    शिकवा गैरों से क्यों कर हो,
    ढूंढें खुशियाँ अपने अन्दर,
    जीवन अब निर्झर बहने दें.

    बहुत ही सुंदर भाव, जीवन का यही दर्शन सर्वोत्तम हैं, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  23. आपकी यह सुन्दर रचना शनिवार 15.06.2013 को निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है! कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।

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  24. धोखा खाया जब अपनों से
    शिकवा गैरों से क्यों कर हो,
    ढूंढें खुशियाँ अपने अन्दर,
    जीवन अब निर्झर बहने दें.

    अब हर कदम पर जीवन का सत्य यही रह गया है . इसलिए कुछ भूले रहकर से जिया जा सकता है .

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  25. वाह.......अति सुन्दर ।

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  26. कुछ सवाल अनुतरित्त ही रहते हैं .....और आपकी रचना का भी कोई जवाब नहीं , बहुत सुन्दर

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  27. कुछ प्रश्नों के अनुत्तरित रहने पर ही उनकी सार्थकता रहती है.

    बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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