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Friday, September 13, 2013

परीक्षा


कितना कठिन है
प्रतिदिन सामना करना
एक नयी परीक्षा का,
बिना किसी पूर्व सूचना
विषय या पाठ्यक्रम के.

निरंतर देते परीक्षाएं
थक गया तन व मन,
नहीं चाहता  देना
कोई और परीक्षा
पर नहीं कोई उपाय 
बचने का इससे.

स्वीकार  है अपनी नियति
नहीं शिकायत किसी परीक्षा से
और न ही कोई आकांक्षा
किसी अपेक्षित परिणाम की,
केवल है इंतज़ार
उस अंतिम परीक्षा का  
मिलेगी जब मुक्ति
सब परीक्षाओं से.

लेकिन अनिश्चित सदैव की तरह 
दिन उस अंतिम परीक्षा का भी.

.....कैलाश शर्मा 

34 comments:

  1. वाह क्‍या मर्म संजोया है आपने इस कविता में। अन्तिम परीक्षा जब मिलेगी मुक्ति परीक्षाओं से लेकिन अनिश्चित है यह भी। सुन्‍दर।

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  2. जीवन में है नित्य परीक्षा

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  3. आपके जिंदगी में वो पल कभी न आए
    सादर

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  4. सहमत हूँ आपके विचारों से और एक रचना बन पड़ी -

    छोड़ इन झमेलों को
    ये मेरे -तेरे रूपी वेलों को ।
    हे प्रभु मुझे ले चलो
    बस मुझे विश्राम दो ॥

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  5. bahut sundar likha ...sach hain har pal pariksha hi to hain ...namste bhaiya

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  6. शायद ये अनिश्चितता ही सही है...दिन निश्चित हो जाए तो जीने का रोमांच ही न ख़तम हो जाए....

    बढ़िया भाव...
    सादर
    अनु

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  7. जब तक जीवन है नित नई परीक्षाओं से गुजरना ही पड़ेगा,,,
    सुंदर सृजन ! बेहतरीन प्रस्तुति,

    RECENT POST : बिखरे स्वर.

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  8. परीक्षा या परिणाम .......??? ...सुन्दर सृजन

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  9. नैराश्य पूर्ण भाव लिए यथार्थ को कहती अभिव्यक्ति

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!बढ़िया भाव...

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  11. यह ज़िंदगी की परीक्षा इतनी नहीं आसान
    एक आग का दरिया है और डूब क जानना है...ज़रा बिगड़ दिया हमने ग़ालिब का यह शेर माफी चाहते है :)
    लेकिन सच तो यही है। सुंदर भाव अभिव्यक्ति ...

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  12. जीवन के सत्य और एक इंसान की विवशता की कहानी कहती सी बहुत ही सारगर्भित रचना ! अति सुंदर !

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  13. सार्थक अभिव्यक्ति

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  14. अनिश्चित दिन उस प्रतीक्षा का !
    इसलिए कह गए श्रीकृष्ण बस कर्म पर ही तुम्हारा वश है !
    श्रेष्ठ चिंतन !

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  15. बहुत ही सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुती,धन्यबाद।

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  16. सच है अब रोज-रोज के संघर्ष और परीक्षाओं से मन उक्‍ताने लगा है। बहुत अच्‍छी कविता।

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  17. सुन्दर. परीक्षाएं तो निरंतर चलती रहती हैं

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  18. ये तो जीवन का खेल है ... सांसों की आँख मिचौली जो चलती रहेगी उम्र भर ...
    कभी न खत्म होने वाली परीक्षा उसके दरबार पे जा के ही खत्म होती है ... भाव मय रचना ...

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  19. gahan abhivyakti.. bohat sundar likha hai dada

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  20. अंतिम परीक्षा भी अंतिम नहीं है..एक नया दौर अगले ही क्षण शुरू हो जाता है..

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  21. ये सारी परीक्षाएं सिलेबस के बाहर की हैं...और हमेशा हमें चाक-चौबंद रखतीं हैं...

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  22. shayad jeenay ka maza hai in parichaon say....sundar rachna

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  23. बहुत ही गहन भाव के साथ अभिव्यक्ति ...

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  24. लेकिन अनिश्चित सदैव की तरह
    दिन उस अंतिम परीक्षा का भी.
    Kitna sach kaha hai!Us antim dintak har roz hame na jane kitne imtehanon se guzarna padta hai!

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  25. true..
    everyday a new test
    new enemy and new opponent.

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  26. मर्म को झंकृत करता कविता का मर्म..

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  27. मुक्ति प्रभु की शरण में जाने से मिलेगी इंतज़ार करने से

    नहीं मन बुद्धि उसके अर्पण कर दो।

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  28. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लागर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शनिवार हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल :007 http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर ..

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