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Saturday, September 24, 2016

संवेदनहीनता

दफ्न हैं अहसास
मृत हैं संवेदनाएं,
घायल इंसानियत
ले रही अंतिम सांस
सड़क के किनारे,
गुज़र जाता बुत सा आदमी
मौन करीब से.

नहीं है अंतर गरीब या अमीर में
संवेदनहीनता की कसौटी पर.

...©कैलाश शर्मा 

25 comments:

  1. दफ्न हैं अहसास
    ------------------------ कटु सत्य

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  2. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-09-2016) के चर्चा मंच "शिकारी और शिकार" (चर्चा अंक-2476) पर भी होगी!
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बिलकुल अक्षरशः सत्य उकेर दिया आपने अपनी कविता में |

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  4. चिंतनीय स्थिति ! सार्थक सृजन !

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  5. नहीं है अंतर गरीब या अमीर में
    संवेदनहीनता की कसौटी पर.
    ...सच कहा आपने इसमें कोई भेद नहीं नज़र आता आज के समय में

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  6. संवेदनहीनता की पराकाष्ठा हो गयी है । सटीक

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  7. संवेदनहीनता की पराकाष्ठा हो गयी है । सटीक

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  8. दुर्भाग्यपूर्ण..संवेदना ही तो मानव को मानव बनाती है

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  9. आधुनिक मानव की यही पहचान है ।

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  10. ओह....बहुत ही दर्दनाक !
    समाज में बढ़ती संवेदनहीनता अत्यंत चिंता का विषय है ।

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  11. वाकई आजकल संवेदनाएं मर गयी है.

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  12. बहुत ही मार्मिक।
    संवेदना के स्तर अमीर गरीब बराबर। बिल्कुल सत्य।

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  13. बहुत ही मार्मिक।
    संवेदना के स्तर अमीर गरीब बराबर। बिल्कुल सत्य।

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  14. यही है आज के जीवन का अभिशाप .

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  15. नहीं है अंतर गरीब या अमीर में
    संवेदनहीनता की कसौटी पर
    इंसानियत मन से आती है , दिल से आती है , सोच से आती है , किसी के दर्द को महसूस करने से आती है , गरीब अमीर का कोई भेद नही इसमें !! लेकिन हम किधर जा रहे हैं ये सोचना जरुरी हो जाता है ? सार्थक पोस्ट शर्मा जी

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  16. सहमत आपकी बात से ... कोई अंतर नहीं है ... हर कोई आज संवेदनहीन हो रहा है ... जाने क्यों ...

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  17. बहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)

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  18. कड़वा लेकिन सत्य--------------

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