Pages

Wednesday, May 02, 2018

अनकहे शब्द


फंस जाते जब शब्द 
भावनाओं के अंधड़ में
और रुक जाते कहीं 
जुबां पर आ कर,
ज़िंदगी ले लेती 
एक नया मोड़।

सुनसान पलों में
जब भी झांकता पीछे,
पाता हूँ खड़े 
वे रुके हुए शब्द 
जो भटक रहे हैं
आज़ भी आँधी में,
तलाशते वह मंज़िल
जो खो गयी कहीं पीछे।

...©कैलाश शर्मा

18 comments:

  1. फंस जाते जब शब्द
    भावनाओं के अंधड़ में
    और रुक जाते कहीं
    जुबां पर आ कर,
    ज़िंदगी ले लेती
    एक नया मोड़।
    शुरुआत से ही शानदार !! बेहतरीन अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  2. वाहः
    बहुत खूब

    ReplyDelete
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-05-2018) को "ये क्या कर दिया" (चर्चा अंक-2960) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  4. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०७ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    ReplyDelete
  5. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/05/68.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  6. कुछ ऐसे अनकहे शब्द सही समय के तलाश में अटके रहते हैं ...
    गहरे भावपूर्ण शब्द ...

    ReplyDelete
  7. जुबां पर आ कर,
    ज़िंदगी ले लेती
    एक नया मोड़।
    ..... बेहतरीन लाजवाब अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  8. सुनसान पलों में
    जब भी झांकता पीछे,
    पाता हूँ खड़े
    वे रुके हुए शब्द
    जो भटक रहे हैं
    आज़ भी आँधी में,
    तलाशते वह मंज़िल ....

    वाह ! बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  9. दीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं !!

    ReplyDelete