नौ महिने माता ढोई थी, इर्द गिर्द तेरे जीवन था सोई न गोदी में लेकर , न रोई न कभी थकी थी | पिता बना घोडा गदहा नित, तेरा बोझ उठाये टहला- मात-पिता पर तोहमत रविकर, दो मिनटों के सुख से पैदा - इसीलिए क्या आज भेजता, वृद्धाश्रम बदला लेने को- पत्नी के संग ऐश करेगा, पीढ़ी दर पीढ़ी यह होगा -
माता बोली पुत्र से,होकर के गम्भीर बड़ा किया क्या इसलिए,सही पेट की पीर सही पेट की पीर,नौ माह पेट में रक्खा मौका आया तो हमे,दे रहे हो धोखा माँ के शब्द सुन, पुत्र रह गया दंग गुस्साकर माँ से बोला, नहीं रहना है संग नहीं रहना संग ,अपना किराया बोलो नौ माह का क्या,किराया एक साल का लेलो,,,,
मन फूला फूला फिरे ,जगत में झूंठा नाता रे ,जब तक जीवे माता रोवे ,बहन रोये दस मासा रे ,और तेरह दिन तक तिरिया रोवे ,फेर करे घर वासा रे ----
यही है हकीकत सपूतों की यही है फलसफा पिंड दान करने वाले का ..ये सब कन्या भ्रूण हत्या का नतीजा है -पूत कपूत सुनें हैं लेकिन ,माता हुईं सुमाता रे ... ram ram bhai मंगलवार, 14 अगस्त 2012 क्या है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा की बुनियाद ? http://veerubhai1947.blogspot.com/
सही कहा आज ऐसा ही होरहा है.मार्मिक प्रस्तुति..
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १४/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है|
ReplyDeleteआभार...
DeleteMan ko chhu jane wale bhhav.
ReplyDelete............
कितनी बदल रही है हिन्दी !
भावमय करती प्रस्तुति ...आभार
ReplyDeleteमाँ बाप का मन जो है ... बच्चों से अलग मन तो होना ही है ...
ReplyDeleteबात जोहता रहता है ... पर समय नहीं बदलता ...
बहुत मार्मिक....।
ReplyDeleteनौ महिने माता ढोई थी, इर्द गिर्द तेरे जीवन था
ReplyDeleteसोई न गोदी में लेकर , न रोई न कभी थकी थी |
पिता बना घोडा गदहा नित, तेरा बोझ उठाये टहला-
मात-पिता पर तोहमत रविकर, दो मिनटों के सुख से पैदा -
इसीलिए क्या आज भेजता, वृद्धाश्रम बदला लेने को-
पत्नी के संग ऐश करेगा, पीढ़ी दर पीढ़ी यह होगा -
बहुत सुन्दर रविकर जी .....
Deleteआदरणीय कैलाश जी ये रचना भीतर से भावुक कर गई
ReplyDeleteपता नहीं
ReplyDeleteपर कहीं पर
दिये गये संस्कार
लिये गये संस्कार
के बराबर
हो जाते हैं
और
संस्कार खो जाते हैं !
लाज़वाब! आभार
Deleteउफ़....भावुकता से लबालब
ReplyDeleteबहुत ही भावमय रचना .............आभार
ReplyDelete
ReplyDeleteइस सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
कृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .
माता बोली पुत्र से,होकर के गम्भीर
ReplyDeleteबड़ा किया क्या इसलिए,सही पेट की पीर
सही पेट की पीर,नौ माह पेट में रक्खा
मौका आया तो हमे,दे रहे हो धोखा
माँ के शब्द सुन, पुत्र रह गया दंग
गुस्साकर माँ से बोला, नहीं रहना है संग
नहीं रहना संग ,अपना किराया बोलो
नौ माह का क्या,किराया एक साल का लेलो,,,,
स्वतंत्रता दिवस बहुत२ बधाई,एवं शुभकामनाए,,,,,
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
बहुत सुन्दर...आभार
Delete- दुनिया के यही रंग हैं !
ReplyDeleteवर्तमान की बहुत बड़ी समस्या है जिसका समाधान दूर दूर तक नजर नहीं आता
ReplyDeleteकाफी दुखदायक स्थिति !
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना !
आँखें तकती है..
ReplyDeleteकटु सत्य.... मार्मिक
ReplyDeleteमन फूला फूला फिरे ,जगत में झूंठा नाता रे ,जब तक जीवे माता रोवे ,बहन रोये दस मासा रे ,और तेरह दिन तक तिरिया रोवे ,फेर करे घर वासा रे ----
ReplyDeleteयही है हकीकत सपूतों की यही है फलसफा पिंड दान करने वाले का ..ये सब कन्या भ्रूण हत्या का नतीजा है -पूत कपूत सुनें हैं लेकिन ,माता हुईं सुमाता रे ...
ram ram bhai
मंगलवार, 14 अगस्त 2012
क्या है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा की बुनियाद ?
http://veerubhai1947.blogspot.com/
प्रभावशाली रचना ...शुभकामनाएं जी /
ReplyDeleteऑंखें ठगे जाने पर भी इंतज़ार तो करती ही हैं !
ReplyDeleteयही तो कडवा सत्य है।
ReplyDeleteमार्मिक रचना.....
ReplyDeleteकभी ना खत्म होने वाला इंतजार है इन आँखों में... भावुक करती रचना...
ReplyDeleteआह ! पुत्र कुपुत्र हो ही जाते हैं
ReplyDeleteटूटते संयुक्त परिवार के इस दौर में वृद्ध माता-पिताओं की अब यही नियति है।
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।
marmik satya...
ReplyDeleteकटु सत्य
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक कविता सर |
ReplyDeleteवाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteamazing...
ReplyDeleteन बदलने वाली नियति..
ReplyDeletebina atishyokti k ujagar hota ek kadva sach.
ReplyDelete