मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश:
ग्यारहवाँ अध्याय
(विश्वरूपदर्शन-योग-११.३५-४६)
संजय:
राजन, केशव वचनों को सुनकर
किया प्रणाम था कंपित कर से।
नमस्कार पूर्वक था अर्जुन बोला
भय और हर्ष से रुधित गले से. (११.३५)
अर्जुन:
सुनकर कीर्ति आपकी भगवन
न केवल मैं, यह विश्व है हर्षित.
राक्षस भाग रहे सब भय से,
और सिद्धगण नमित व हर्षित. (११.३६)
क्यों न नमन ये करें आपको,
आप तो ब्रह्मा से महान हैं.
आप ही अक्षर हैं परमेश्वर
सत् व असत् व परे आप हैं. (११.३७)
आदि देव व पुराण पुरुष हैं
परम निधान आप ही जग के.
आप ही ज्ञाता, आप ज्ञेय हैं,
व्याप्त हैं कण कण में जग के. (११.३८)
आप ही अग्नि यम वायु वरुण हैं,
आप प्रजापति, प्रपितामह आप हैं.
सहस्त्र नमस्कार आपको भगवन,
बारंबार आपको प्रभु नमस्कार हैं. (११.३९)
सर्व दिशा से नमन आपको,
सामर्थ्य आपकी प्रभु अनंत है.
व्याप्त किये हैं सर्व जगत को,
आप अतः प्रभु सर्व रूप हैं. (११.४०)
हे कृष्ण यादव मित्र संबोधन
सखा आपको मान मैं बोला.
महिमा से अज्ञान हे भगवन!
मैं यह प्रमाद, प्रेमवश बोला. (११.४१)
हास परिहास या दिनचर्या में
किया हो यदि अपमान आपका.
हे अच्युत! हे अप्रमेय! आपसे
मैं उन सब की क्षमा मांगता. (११.४२)
पिता समस्त चराचर जग के,
पूज्यनीय, गुरुओं के गुरुवर.
नहीं समान तीनों लोकों में,
कैसे संभव अन्य श्रेष्ठतर? (११.४३)
करके प्रणाम दंडवत स्वामी
मैं हूँ आपकी कृपा चाहता.
मेरे अपराध क्षमा कर दीजे
जैसे पिता मित्र प्रिय करता. (११.४४)
कभी किसी ने न जो देखा
रूप देखकर हर्षित मन मेरा.
मुझे वह पहला रूप दिखायें
भय से विचलित है मन मेरा. (११.४५)
मुकुट गदा चक्र से शोभित
रूप मुझे भगवन दिखलायें.
हे विश्वमूर्ते! हे सहस्त्रबाहो!
रूप चतुर्भुज मुझे दिखायें. (११.४६)
..........क्रमशः
पुस्तक को ऑनलाइन ऑर्डर करने के लिए इन लिंक्स का प्रयोग कर सकते हैं :
1) http://www.ebay.in/itm/Shrimadbhagavadgita-Bhav-Padyanuvaad-Kailash-Sharma-/390520652966
2) http://www.infibeam.com/Books/shrimadbhagavadgita-bhav-padyanuvaad-hindi-kailash-sharma/9789381394311.html
कैलाश शर्मा
ग्यारहवाँ अध्याय
(विश्वरूपदर्शन-योग-११.३५-४६)
संजय:
राजन, केशव वचनों को सुनकर
किया प्रणाम था कंपित कर से।
नमस्कार पूर्वक था अर्जुन बोला
भय और हर्ष से रुधित गले से. (११.३५)
अर्जुन:
सुनकर कीर्ति आपकी भगवन
न केवल मैं, यह विश्व है हर्षित.
राक्षस भाग रहे सब भय से,
और सिद्धगण नमित व हर्षित. (११.३६)
क्यों न नमन ये करें आपको,
आप तो ब्रह्मा से महान हैं.
आप ही अक्षर हैं परमेश्वर
सत् व असत् व परे आप हैं. (११.३७)
आदि देव व पुराण पुरुष हैं
परम निधान आप ही जग के.
आप ही ज्ञाता, आप ज्ञेय हैं,
व्याप्त हैं कण कण में जग के. (११.३८)
आप ही अग्नि यम वायु वरुण हैं,
आप प्रजापति, प्रपितामह आप हैं.
सहस्त्र नमस्कार आपको भगवन,
बारंबार आपको प्रभु नमस्कार हैं. (११.३९)
सर्व दिशा से नमन आपको,
सामर्थ्य आपकी प्रभु अनंत है.
व्याप्त किये हैं सर्व जगत को,
आप अतः प्रभु सर्व रूप हैं. (११.४०)
हे कृष्ण यादव मित्र संबोधन
सखा आपको मान मैं बोला.
महिमा से अज्ञान हे भगवन!
मैं यह प्रमाद, प्रेमवश बोला. (११.४१)
हास परिहास या दिनचर्या में
किया हो यदि अपमान आपका.
हे अच्युत! हे अप्रमेय! आपसे
मैं उन सब की क्षमा मांगता. (११.४२)
पिता समस्त चराचर जग के,
पूज्यनीय, गुरुओं के गुरुवर.
नहीं समान तीनों लोकों में,
कैसे संभव अन्य श्रेष्ठतर? (११.४३)
करके प्रणाम दंडवत स्वामी
मैं हूँ आपकी कृपा चाहता.
मेरे अपराध क्षमा कर दीजे
जैसे पिता मित्र प्रिय करता. (११.४४)
कभी किसी ने न जो देखा
रूप देखकर हर्षित मन मेरा.
मुझे वह पहला रूप दिखायें
भय से विचलित है मन मेरा. (११.४५)
मुकुट गदा चक्र से शोभित
रूप मुझे भगवन दिखलायें.
हे विश्वमूर्ते! हे सहस्त्रबाहो!
रूप चतुर्भुज मुझे दिखायें. (११.४६)
..........क्रमशः
पुस्तक को ऑनलाइन ऑर्डर करने के लिए इन लिंक्स का प्रयोग कर सकते हैं :
1) http://www.ebay.in/itm/Shrimadbhagavadgita-Bhav-Padyanuvaad-Kailash-Sharma-/390520652966
2) http://www.infibeam.com/Books/shrimadbhagavadgita-bhav-padyanuvaad-hindi-kailash-sharma/9789381394311.html
कैलाश शर्मा
बहुत ही सुन्दर पदानुभाव,आभार.
ReplyDeleteकभी किसी ने न जो देखा
ReplyDeleteरूप देखकर हर्षित मन मेरा.
मुझे वह पहला रूप दिखायें
भय से विचलित है मन मेरा.
...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
आभार आपका
सादर
मुकुट गदा चक्र से शोभित
ReplyDeleteरूप मुझे भगवन दिखलायें.
हे विश्वमूर्ते! हे सहस्त्रबाहो!
रूप चतुर्भुज मुझे दिखायें...
आ हा .. क्या मधुर काव्य बह रहा है ...
कृष्ण के पूर रूप को साक्षर करती बेहतरीन पंक्तियाँ ...
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
वाह...!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आभार!
बेहतरीन आदरणीय, मुकुट गदा चक्र से शोभित
ReplyDeleteरूप मुझे भगवन दिखलायें.
हे विश्वमूर्ते! हे सहस्त्रबाहो!
रूप चतुर्भुज मुझे दिखायें.
जय श्री कृष्ण...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआध्यात्म को समझना सहज नहीं है,आपकी लेखनी ने
ReplyDeleteइसे सहज बना दिया है
सुंदर सार्थक रचना
बधाई
सचमुच आपके शब्दों ने बहुत सरल बना दिया है इन्हें... सुन्दर प्रस्तुति... आभार
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
मुकुट गदा चक्र से शोभित
ReplyDeleteरूप मुझे भगवन दिखलायें.
हे विश्वमूर्ते! हे सहस्त्रबाहो!
रूप चतुर्भुज मुझे दिखायें...
वाह,,बहुत सुंदर सहज ,समझ में आ जाने वाली (भाव पद्यानुवाद)की प्रस्तुति,,
Recent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
बहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteसुन्दरम्।
ReplyDeleteईश्वर का विश्वरूप देखने के बाद का आनन्द..
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ReplyDeleteसंजय:
राजन, केशव वचनों को सुनकर
किया प्रणाम था कंपित कर से।
नमस्कार पूर्वक था अर्जुन बोला
भय और हर्ष से रुधित गले से.
बहुत आकर्षक प्रस्तुति ( ,रुंधना ,रुंधित ?).शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
रुधित का अर्थ है भरे गले से (choked voice)...जैसे निम्न प्रयोग में :
Deleteतेषां तु पुरुषेन्द्राणां रुदतां रुधित सवनः
परासादाभॊग संरुद्धॊ अन्वरौत्सीत स रॊदसी...
आभार...
शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .
ReplyDeleteसारगर्भित सारतत्व पिरोये गीता का अद्भुत प्रस्तुति .शुक्रिया .
पूजना (पूजनीय ),पूज्य ,पुजापा ,पूज्यनीय प्रयोग में दो दो विशेषण क्यों ?
पूजना (पूजनीय ),पूज्य ,पुजापा ,पूज्यनीय प्रयोग में दो दो विशेषण क्यों?
Delete...आपका तात्पर्य मैं नहीं समझ पाया. मेरे विचार से इन शब्दों में एक ही विशेषण है जैसे पूजनीय = पूज+ अनीय प्रत्यय.
अद्वितीय... बहुत प्रभावशाली. बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteसर्व दिशा से नमन आपको,
ReplyDeleteसामर्थ्य आपकी प्रभु अनंत है.
व्याप्त किये हैं सर्व जगत को,
आप अतः प्रभु सर्व रूप हैं.
अनंत प्रभु को नमन...
बहुत बढिया जी
ReplyDeleteनमस्कार हैं!
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