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Thursday, February 20, 2014

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (१७वां अध्याय)

                                  मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश: 
         सत्रहवाँ अध्याय 
(श्रद्धात्रयविभाग-योग-१७.१-१३

अर्जुन :
शास्त्रविहित विधि न मान कर
केवल श्रद्धायुक्त यज्ञ हैं करते.
सत्व, रज या तामसिक है होती 
उनकी निष्ठा को क्या कहते?  (१७.१)

श्री भगवान :
स्वभाव जनित देहधारी मैं
श्रद्धा तीन प्रकार की होती.
उसे सुनो आगे तुम अर्जुन 
सत् रज और तामसिक होती.  (१७.२)

समस्त प्राणियों की श्रद्धा 
अपने मन अनुरूप है होती.
श्रद्धा के अनुसार है प्राणी 
वैसा वह जैसी श्रद्धा है होती.  (१७.३)

सात्विक जन देवों को पूजते,
राक्षस यक्ष राजसिक भजते.
तामसिकप्रवृति के जो जन हैं
प्रेत भूतगणों का पूजन करते.  (१७.४)

शास्त्रोक्त विधि न मानकर 
घोर तपस्या जो जन करते.
अहंकार, दम्भ से भर कर 
काम राग बल से तप करते.  (१७.५)

पंचभूत व मेरे स्वरुप को 
स्थित शरीर में कष्ट हैं देते.
ऐसे अविवेकी मनुजों को 
असुर वृत्ति वाला हैं कहते.  (१७.६) 

भोजन तीन प्रकार का होता
जो मनुजों को प्रिय लगता.
तीन तरह तप यज्ञ दान भी 
भेद मैं इनके तुमको कहता.  (१७.७)

आयु सत्व आरोग्य का कारक 
रसयुक्त सुख प्रीत बढाता.
स्थिर स्निग्ध व रुचिकर हो 
भोजन वह सात्विक प्रिय होता.  (१७.८)

कटु खट्टा नमकीन व तीखा 
रूखा गर्म जलन जो करता.
दुःख शोक रोग का कारक 
भोज राजस को प्रिय लगता.  (१७.९)

बासी रसहीन दुर्गन्धयुक्त 
न ठीक पका जो भोजन होता.
जूठा व अपवित्र है भोजन 
तामस जन को है प्रिय होता.  (१७.१०)

शास्त्रोक्त विधि पालन कर
जो अनुष्ठान यज्ञ का होता.
फल इच्छा रहित जो करते  
यज्ञ है वह सात्विक होता.  (१७.११)

फल इच्छा से हे अर्जुन!
दम्भ प्रदर्शन यज्ञ हैं करते.
ऐसा यज्ञ है जो भी करता 
उसे राजसी यज्ञ हैं कहते.  (१७.१२)

विधिविहीन व मंत्रहीन जो
अन्न दान आदि न करते.
दक्षिणा श्रद्धा हीन यज्ञ को 
शास्त्र यज्ञ तामसिक कहते.  (१७.१३)

            ....क्रमशः
....कैलाश शर्मा 

Thursday, February 13, 2014

कैसा, किसका प्रेम दिवस है?

जीवन सीमित जब रोटी तक,
स्वप्न नहीं आँखों में कल का,    
चौराहे पर खड़ा हो बचपन,
पूछो उनसे क्या प्रेम दिवस है.

नहीं मिला जो काम अगर तो,
न मिल पाये बच्चों को रोटी,
नहीं जो बिक पाये गुलाब गर,
भूखे पेट क्या प्रेम दिवस है।

चुम्बन, आलिंगन, गुलाब क्या,
नहीं अभाव का जीवन समझे,
जिस दिन दो रोटी  मिल जायें 
उनको वह दिन प्रेम दिवस है।

सिर पर बोझ उठाये फिरता,
घर घर झाड़ू पोंछा जो करती,
थकी थकी हर शाम है आती,
कैसा, किसका प्रेम दिवस है?

प्रेम नहीं अभिव्यक्ति शब्द में,
प्रेम है बस मन की अनुभूति,
अंतस में जब प्यार बसा हो,
समझो हर दिन प्रेम दिवस है।


....कैलाश शर्मा 

Friday, February 07, 2014

सूनापन

गुम हो गये हैं शब्द
जीवन के कोलाहल में,
बैठे हैं मौन
तकते एक दूजे को,
कहने को बहुत कुछ
एक दूसरे की नज़रों में
पर नहीं चाहते तोड़ना
मौन अहसासों का,
छुपाते एक दूसरे से 
दर्द अंतस का,
अश्क़ आँखों के,
भय अकेलेपन के भविष्य का।

अहसास होने या न होने का
हो जाता और भी गहन
एक दूजे के मन में
जीवन के सूनेपन में।

....कैलाश शर्मा