Pages

Tuesday, January 27, 2015

मुझको दूर बहुत है चलना

थके क़दम कब तक चल पायें, 
मंज़िल नज़र नहीं आती है,
जीवन का उद्देश्य नहीं बस
केवल मील के पत्थर गिनना।

सफ़र हुआ था शुरू ज़हाँ से
कितने साथ मिले राहों में,
कभी काफ़िला साथ साथ था
अब बस सूनापन राहों में।
कैसे जीवन से हार मान लूँ,   
मुझको दूर बहुत है चलना।

बना सीढियां सदा सभी को,
पर मैं खड़ा उसी सीढ़ी पर।
मुड़ कर नहीं किसी ने देखा,
जो पहुंचा ऊपर सीढ़ी पर।
सूरज ढला मगर मैं क्यों ठहरूँ,
मुझे चाँद के साथ है चलना।

जो कुछ बीत गया जीवन में,
उस पर अश्रु बहा क्या होगा।
क्यों अंधियारे से हो समझौता,
जब प्रभात निश्चय ही होगा।
नहीं काफ़िला, मगर रुकूं क्यों,   
सूनापन लगता जब अपना।

...कैलाश शर्मा 

Sunday, January 11, 2015

आज ये दिन उदास सा गुज़रा

आज ये दिन उदास सा गुज़रा,
एक साया इधर से था गुज़रा।

यूँ तो यह शाम वक़्त से आयी,
क्यूँ है लगता कि दिन नहीं गुज़रा।

रात भर सिल रहा था गम अपने,
उनको पाया था फ़िर सुबह उधरा।

चांदनी खो गयी थी आँखों की,
चांद भी आज ग़मज़दा गुज़रा।

उम्र भर का हिसाब दूँ कैसे, 
एक पल उम्र से लंबा गुज़रा

खो गयी जाने कहाँ लब की हंसी,
आज आँखों में है सन्नाटा पसरा।

          (अगज़ल/अभिव्यक्ति)
...कैलाश शर्मा