सपने हैं
जीवन,
जीवन एक
सपना,
कौन है सच
कौन है
अपना?
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आंधियां
और तूफ़ान
आये कई
बार आँगन में
पर नहीं
ले जा पाये
उड़ाकर
अपने साथ,
आज भी
बिखरे हैं
आँगन में
पीले पात
बीते पल
की यादों के
तुम्हारे
साथ.
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नफरतों के पौधे उखाड़
कर
लगाता हूँ रोज़ पौधे
प्रेम के
पर नहीं है अनुकूल
मौसम या मिट्टी,
मुरझा जाते पौधे
और फिर उग आतीं
नागफनियाँ नफरतों
की.
शायद सीख लिया है
जीना इंसान ने
नफरतों के साथ.
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करनी होती अपनी मंजिल
स्वयं ही निश्चित
आकलन कर अपनी क्षमता,
बताये रास्ते दूसरों के
नहीं जाते सदैव
इच्छित मंजिल को.
...कैलाश शर्मा