मत ढूंढो पगडंडियां
बनायी औरों की
सुखद यात्रा को,
बनाओ अपनी पगडंडी
और चुनो अपनी
एक नयी मंज़िल.
बनायी औरों की
सुखद यात्रा को,
बनाओ अपनी पगडंडी
और चुनो अपनी
एक नयी मंज़िल.
जरूरी तो नहीं सही हो
हर भीड़ वाली राह,
क्यूँ बनते हो हिस्सा
किसी काफ़िले का,
मत चलो किसी के पीछे
थाम कर हाथ उसकी सोच का,
जागृत करो अपनी सोच
अपना आत्म-चिंतन,
समेटो अपनी बांहों में
स्व-अर्जित अनुभव
बनाओ स्वयं अपनी पगडंडी
अपनी मंज़िल को,
खड़े हो धरा पर
अपने पैरों पर अविजित।
मत चलो किसी के पीछे
थाम कर हाथ उसकी सोच का,
जागृत करो अपनी सोच
अपना आत्म-चिंतन,
समेटो अपनी बांहों में
स्व-अर्जित अनुभव
बनाओ स्वयं अपनी पगडंडी
अपनी मंज़िल को,
खड़े हो धरा पर
अपने पैरों पर अविजित।
...कैलाश शर्मा