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Sunday, June 14, 2015

पगडंडी

मत ढूंढो पगडंडियां
बनायी औरों की 
सुखद यात्रा को,
बनाओ अपनी पगडंडी
और चुनो अपनी 
एक नयी मंज़िल.

जरूरी तो नहीं सही हो
हर भीड़ वाली राह,
क्यूँ बनते हो हिस्सा 
किसी काफ़िले का,
मत चलो किसी के पीछे
थाम कर हाथ उसकी सोच का,
जागृत करो अपनी सोच
अपना आत्म-चिंतन,
समेटो अपनी बांहों में
स्व-अर्जित अनुभव
बनाओ स्वयं अपनी पगडंडी
अपनी मंज़िल को,
खड़े हो धरा पर
अपने पैरों पर अविजित।

...कैलाश शर्मा 

Thursday, June 04, 2015

भटकते शब्द

मन से मन का संवाद
कुंवारी साँसों का स्पंदन,
विस्तार स्वप्नों का
आँखों से आँखों तक,
अनछुए स्पर्श की
सनसनाहट रग रग में,
अंतस के अहसासों की
एक चमक नज़रों में,
हो गए सब बेमानी
न व्यक्त होने से केवल शब्दों में।

देखता है खड़ा दूर से
बना अनजान हालात से
चहुँ ओर घूमते शब्दों को
नहीं आ पाए जो कभी हाथ में
और आज खो दिया अर्थ
होने या न होने का

....© कैलाश शर्मा