Kashish - My Poetry
Pages
(Move to ...)
Home
▼
Thursday, June 29, 2017
पतझड़
हरे थे जब पात
अपनों का था साथ
गूँजते थे स्वर
टहनियों पर बने घोंसलों से।
रह गया जब ठूंठ
अपने गये छूट
सपने गये रूठ
,
कितना अपना सा लगता
एक पल का साथी भी
जीवन के सूनेपन में।
...
©कैलाश शर्मा
‹
›
Home
View web version