Kashish - My Poetry
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Wednesday, May 02, 2018
अनकहे शब्द
फंस जाते जब शब्द
भावनाओं के अंधड़ में
और रुक जाते कहीं
जुबां पर आ कर
,
ज़िंदगी ले लेती
एक नया मोड़।
सुनसान पलों में
जब भी झांकता पीछे
,
पाता हूँ खड़े
वे रुके हुए शब्द
जो भटक रहे हैं
आज़ भी आँधी में
,
तलाशते वह मंज़िल
जो खो गयी कहीं पीछे।
...
©कैलाश शर्मा
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