कुछ दर्द अभी तो सहने हैं,
कुछ अश्क़ अभी तो बहने हैं।
मत हार अभी मांगो खुद से,
मरुधर में बोने सपने हैं।
बहने दो नयनों से यमुना,
यादों को ताज़ा रखने हैं।
नींद दूर है इन आंखों से,
कैसे सपने अब सजने हैं।
बहुत बचा कहने को तुम से,
गर सुन पाओ, वह कहने हैं।
कुछ नहीं शिकायत तुमने की,
यह दर्द हमें भी सहने हैं।
हमने मिलकर जो खाब बुने,
अब दफ़्न अकेले करने हैं।
...©कैलाश शर्मा