यादों में जब भी हैं आती बेटियां,
आँखों को नम हैं कर जाती बेटियां।
आती हैं स्वप्न में बन के ज़िंदगी,
दिन होते ही हैं गुम जाती बेटियां।
कहते हैं क्यूँ अमानत हैं और की,
दिल से सुदूर हैं कब जाती बेटियां।
सोचा न था कि होंगे इतने फासले,
हो जाएंगी कब अनजानी बेटियां।
होंगी कुछ तो मज़बूरियां भी उसकी,
माँ बाप से दूर कब जाती बेटियां।
माँ बाप से दूर हों चाहे बेटियां,
लेकिन जगह दुआ में पाती बेटियां।
...©कैलाश शर्मा