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Thursday, September 02, 2010

कृष्ण को गुहार




कहाँ खो गये हो मुरलीधर,
ढूंढ़ रहे हैं भारतवासी
जय घोषों से गूंजें मंदिर,
पर अंतर में गहन उदासी


नारी की है लाज लुट रही,
नहीं द्रोपदी आज सुरक्षित
मंदिर रोज नए बनते हैं,
पर मानव है छत से वंचित


लाखों के अब मुकुट पहन कर,
विस्मृत किया सुदामा को क्यों?
व्यंजन सहस्त्र सामने हों जब,
कोदो वां याद आये क्यों?


मुक्त करो अपने को भगवन
धनिकों के मायाजालों से
मत तोड़ो विश्वास भक्त का,
मुक्त करो अब जंजालों से


तुमने ही आश्वस्त किया था,
जब भी होगा नाश धर्म का
आऊंगा मैं फिर धरती पर
करने स्थापित राज्य धर्म का


बाहर आओ अब तो भगवन
मंदिर की इन दीवारों से
नहीं बनो रनछोड़ दुबारा,
करो मुक्त अत्याचारों से

2 comments:

  1. आदरणीय कैलाश चंद्र शर्मा जी
    नमस्कार !
    बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने , पढ़ कर आनन्द आया ।


    लाखों के अब मुकुट पहन कर,
    विस्मृत किया सुदामा को क्यों?


    अच्छा उलाहना दिया है ।
    पूरी रचना श्रेष्ठ है , बधाई !

    शुभकामनाओं सहित …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  2. Rajendra ji aapke protsahan ke liye bahut dhanyvad....

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