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Thursday, February 03, 2011

कहाँ पर वसंत है ?

          सरसों के खिले फूल,
          ओढ़े  पीला  दुकूल,
हरियाली नाच रही, आया वसंत है.


          प्रियतम हैं आन मिलें,
          मन के सब द्वार खुलें, 
तनमन में नाच रहा जैसे अनंग है.


          हिरणी सा मन चंचल,
          गिरता सिरसे  आँचल,
बार बार तके द्वार, आया न कन्त है.


          पढती बार बार पाती,
          क्यों न उन्हें याद आती,
क्यों मेरी  राहें  ही, सूनी  अनंत है.


          सरसों का पीलापन,
          चहरे पर आया छन, 
होगये कपोल पीत, कैसा वसंत है.


          कोयल की मधुर कूक,
          उर में बढ़ जाती हूक,
पतझड़ है चहुँ ओर, कहाँ पर वसंत है ?

47 comments:

  1. सरसों का पीलापन,
    चहरे पर आया छन,
    होगये कपोल पीत, कैसा वसंत है.


    कविता का हर शब्द गहरा अर्थ संप्रेषित करता है ...कहाँ है बसंत ..सुंदर

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  2. मन वासंती हो गया ..

    वास्तव में बहुत सुन्दर गीत !

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  3. पढती बार बार पाती,
    क्यों न उन्हें याद आती,
    क्यों मेरी राहें ही, सूनी अनंत है ...

    प्रेम और विरह के रंगों को समेटे सुन्दर रचना है ..

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  4. बहुत ही अच्छा चित्र प्रस्तुत करती कविता.

    सादर

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  5. बहुत ही खुबसुरत रचना। आभार।

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  6. सरसों का पीलापन,
    चहरे पर आया छन,
    होगये कपोल पीत, कैसा वसंत है.
    vasant ka vaasanti varnan

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  7. पढती बार बार पाती,
    क्यों न उन्हें याद आती,
    क्यों मेरी राहें ही, सूनी अनंत है.

    दिल को छूती हैं ये पंक्तियाँ !

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  8. सरसों का पीलापन,
    चहरे पर आया छन,
    हो गये कपोल पीत, कैसा वसंत है।

    बसंत के आगमन पर विविध दृश्यों को आकार देता सुंदर गीत।
    ऐसा सरस गीत बहुत दिनों के बाद पढ़ने को मिला।

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  9. सरसों का पीलापन, चहरे पर आया छन,
    हो गये कपोल पीत, कैसा वसंत है
    आपने तो बसंत को आम आदमी से जोड़ दिया | सुंदर रचना ,बधाई

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  10. जीवन और बसन्त का विरोधाभास दृष्टिगत है।

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  11. peele rang ka bahut sunder barnan kiya hai

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  12. वसंत को आपने शब्दों के वृक्ष से महका दिया /
    वसंत की आपको ढेरो शुब्कामना.........

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  13. जीवन की हालातों ने छीने वासंतिक रंग .... बहुर सुंदर प्रासंगिक रचना

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  14. बहुत ही अच्छी रचना

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  15. बसंत के आगमन पर बहुत ही खुबसुरत रचना। आभार।

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  16. हिरणी सा मन चंचल,
    गिरता सिरसे आँचल,
    बार बार तके द्वार, आया न कन्त है

    बहुतसुन्दर, शब्द रचना ख़ूबसूरत समाविष्ट की है कैलाश जी आपने !

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  17. सारी बातें बिल्कुल सच । फ़िर भी, मन बसंती कर लीजिये, फिर सब बसंती ही लगेगा । बहुत अच्छी रचना ।

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  18. .

    सरसों का पीलापन,
    चहरे पर आया छन,
    होगये कपोल पीत, कैसा वसंत है....

    मन -मयूर वसंतमय हो गया ...

    .

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  19. वसंत के आगमन का संदेश देती मनुहार भरी कृति !

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  20. basant me sab kuchh manbhavan ho jata hai .bahut sundar rachna .

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  21. वसंत के आगमन पर बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।


    मेरे नये ब्‍लाग आत्‍म-चिंतन का अवलोकन कर अवगत करायें .. आभार ।

    http://aatamchintanhamara.blogspot.com/

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  22. बहुत प्यारा गीत लिखा है सर आपने बहुत बहुत बधाई |

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  23. बसंत के स्वागत में सुदंर कविता | आपकी कविता से बसंत के आने की सूचना मिली | आजकल बसंत कविताओं, कहानियों, खबरों में ही मिलता है | मुझे कवि पद्माकर की पंक्तियां याद आती हैं
    "कूलन में, केलिन में, कछारन में, कुंजन में......बगरो बसंत है "
    आभार

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  24. bahut hi sunder geeet. chitra bhi kafi manmohak hai. sunder prastuti.

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  25. कोमल अहसासो को समेटे, दिल की गहराईयों को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.सादर,
    डोरोथी.

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  26. कोयल की मधुर कूक,
    उर में बढ़ जाती हूक,
    पतझड़ है चहुँ ओर, कहाँ पर वसंत है

    सुन्दर रचना !

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  27. priy sharma sahab

    pranam

    man ke antardwand ko badi safayi ke sath paribhashit kar diya hai aapane. varna kalpanaon men jikar aatm-mugdh ,to hote hi rahte hain .sundar rachna,jaisi ham aapse asha rakhate hain
    shukriya .

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  28. वसंत के कोमल खूबसूरत एहसास .

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  29. वसंत की आपको ढेरो शुब्कामना.........

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  30. सुन्दर रचना , आशावान तो हम भी है कि वसंत आयेगा !आपको वसंत पंचमी की शुभकामनाये !

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  31. Vasanti rangon me rangi,kinchit udaas rachana....par hai bahut pyari!

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  32. बसंत के आगमन पर बहुत ही खुबसुरत रचना। आभार।

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  33. वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
    कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  34. आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
    सादर,
    डोरोथी.

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  35. कोयल की मधुर कूक,
    उर में बढ़ जाती हूक,
    पतझड़ है चहुँ ओर, कहाँ पर वसंत है ?

    sahi kaha, parives me basant kho sa gya h.

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  36. कोयल की मधुर कूक,
    उर में बढ़ जाती हूक,
    पतझड़ है चहुँ ओर, कहाँ पर वसंत है ?
    हर बसंत रंग भरा नही होता। अच्छी लगी रचना। बधाई।

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  37. badi hi sundar kavita hai sir....bilkul vasant jaisi.....bohot khoobsurat

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  38. बसंत पर प्यारा गीत , प्यारी अभिव्यक्ति.

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  39. aadarniy sir
    wah!basant ke avsar par likha gaya aapka yah geet to sach me man ko basanti rang me bhigo gaya.
    bahut hi behatreen.
    सरसों का पीलापन,
    चहरे पर आया छन,
    होगये कपोल पीत, कैसा वसंत है.
    dono hi rupon ka behatreen samanjasy---
    poonam

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  40. बस आपकी कविया में आ ही गया है...
    सो मौसम में भी चा जायेगा बसंत...
    और आपके सवाल का जवाब बनकर तो आना ही पड़ेगा...

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  41. पतझड़ है चहुँ ओर, कहाँ पर वसंत है ?

    शर्मा जी, सच में कहाँ वसन्त है?


    पेड़ ही नहीं हैं तो वसन्त क्या कल्पनालोक में होगा। कंक्रीट के बढ़ते जंगलों ने हरे-भरे वनों को निगल लिया है। अब हम कवियों की कविता में वसन्त का अनुभव कर सकते हैं। पद्माकर को पढ़कर हतप्रभ हो सकते हैं कि क्या ऐसा वसन्त कभी रहा होगा....................पर विडम्बना है कि हम उसे वर्तमान नहीं कर सकते।


    आज की एक सार्वभौमिक समस्या को आपने उजागर किया है। इतनी प्रभावोत्पादक कविता लिखने के लिये धन्यवाद, जिसपर टिप्पणी किये बिना रहा नहीं गया।

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