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Monday, March 14, 2011

यदि चाहो सदैव को प्रिय मैं रुक जाऊं

                          यदि चाहो सदैव को प्रिय मैं रुक जाऊं,
                          तो पहले समय पखेरू को बंदी कर लो.


होता आया है वर्तमान बंदी सदैव,
     शोभित करता वह भूतकाल की कारा है.
               कब तक उठने से रोकोगी इस पर्दे को,
                     जिसने भविष्य का कलुषित रूप निखारा है.

                         यदि चाहो भविष्य का रूप सदां आकर्षक हो,
                         जाती  संध्या  को रुकने  को सहमत कर लो.

है दिवास्वप्न शास्वत बंधन उर का,
     पूर्णत्व मिलन का आस अधूरी रहने में
            कैसे अधरों की मुस्कानें शास्वत मानूं,
                   जीवन आधी सृष्टि का आंसू ढलने में.

                       यदि नेह तुम्हें खिलते गुलाब की डाली से,
                       तो काँटों से बिंधने को कर सक्षम कर लो.

यह प्रेम न परिणित हो अपना कुंठाओं में,
          इसलिए इसे इतना ही सीमित रहने दो.
             वह मंज़िल जो निश्छल उर को शंकित कर दे,
                        उससे अच्छा अविराम डगर पर चलने  दो.

                      नयनों के काजल से कपोल न कलुषित हों,
                      इस लिये अश्रु को रुकने को सहमत कर लो.
             

35 comments:

  1. अच्छी, भावपूर्ण रचना...

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  2. यदि चाहो भविष्य का रूप सदां आकर्षक हो,
    जाती संध्या को रुकने को सहमत कर लो...

    बहुत ही सुन्दर पोस्ट, सुन्दर शब्द संयोजन और भावों से ओतप्रोत.........

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  3. इसी प्रार्थना भर में अश्रु रुके हुये हैं। बहुत ही सुन्दर कविता।

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  4. नयनों के काजल से कपोल न कलुषित हों,
    इस लिये अश्रु को रुकने को सहमत कर लो.


    वाह क्या भाव संजोये हैं…………बहुत सुन्दर रचना।

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  5. यदि चाहो भविष्य का रूप सदां आकर्षक हो,
    जाती संध्या को रुकने को सहमत कर लो.
    क्या खूब पंक्तिया
    बधाई

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  6. शब्दों का उपवन खिला दिया है आपने कैलाश जी,
    क्या खूब है भाव प्रवणता।
    -
    नयनों के काजल से कपोल न कलुषित हों,
    इस लिये अश्रु को रुकने को सहमत कर लो.
    _

    अभिनव प्रयोग!!

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  7. नयनों के काजल से कपोल न कलुषित हों,
    इस लिये अश्रु को रुकने को सहमत कर लो.

    बहुत ही सुन्‍दर ।

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  8. बहुत ही सुन्दर कविता। धन्यवाद|

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  9. सुंदर गीत बहुत बहुत बधाई और होली की शुभकामनाएं |

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  10. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  11. है दिवास्वप्न शास्वत बंधन उर का,
    पूर्णत्व मिलन का आस अधूरी रहने में
    कैसे अधरों की मुस्कानें शास्वत मानूं,
    जीवन आधी सृष्टि का आंसू ढलने में.

    बहुत ही भावासिक्त गीत....

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  12. है दिवास्वप्न शास्वत बंधन उर का,
    पूर्णत्व मिलन का आस अधूरी रहने में
    कैसे अधरों की मुस्कानें शास्वत मानूं,
    जीवन आधी सृष्टि का आंसू ढलने में
    सुंदर .... भावाभिव्यक्ति... अंतर्मन के भाव ..

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  13. अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ
    मेरा लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार लूँ.....
    ...बहुत बढ़िया सर!

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  14. यदि नेह तुम्हें खिलते गुलाब की डाली से,
    तो काँटों से बिंधने को कर सक्षम कर लो....

    वाह!! बहुत खूब ... बेहतरीन रचना कैलाश जी ...

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  15. kamal karte ho kailash babu...

    amazing work...this line is awesome..

    कैसे अधरों की मुस्कानें शास्वत मानूं

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  16. अत्युत्तम रचना.

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  17. कैलाश भाई सुंदर छन्‍द बद्ध प्रस्तुति बरबस मन को मोहित करने में सक्षम है| धाराप्रवाह भावाभिव्यक्ति वो भी सरस और सरल शब्दों के साथ अन्य विशेषता है इस रचना की| बधाई भाई साब|

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  18. सही है यदि फूलों की आकांक्षा है तो काँटों का भी स्वागत करना होगा, सुंदर भावपूर्ण रचना के लिये बधाई !

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  19. है दिवास्वप्न शास्वत बंधन उर का,
    पूर्णत्व मिलन का आस अधूरी रहने में
    कैसे अधरों की मुस्कानें शास्वत मानूं,
    जीवन आधी सृष्टि का आंसू ढलने में.


    यदि नेह तुम्हें खिलते गुलाब की डाली से,
    तो काँटों से बिंधने को कर सक्षम कर लो
    बहुत खूब, सुंदर भावपूर्ण रचना !

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  20. यह प्रेम न परिणित हो अपना कुंठाओं में,
    इसलिए इसे इतना ही सीमित रहने दो.

    वाह क्या भाव है ...

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  21. यदि नेह तुम्हें खिलते गुलाब की डाली से,
    तो काँटों से बिंधने को कर सक्षम कर लो

    लाजवाब अभिव्यक्ति ।

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  22. इतना खूबसूरत कि बार-बार कविता का आनंद लिया.

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  23. बहुत ही खूबसूरत गीत ! आभार.

    होली के पावन पर्व की आपको अग्रिम शुभकामनाएं.

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  24. बेहद सशक्त और भावपूर्ण रचना .
    आभार ...

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  25. यदि नेह तुम्हें खिलते गुलाब की डाली से तो काँटों से बिंधने को कर सक्षम कर लो.
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  26. thanks yaar for this buetiful creation

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  27. सुंदर गीत बहुत बहुत बधाई और होली की शुभकामनाएं |

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  28. कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  29. बेहद खूबसूरत...

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  30. बेहद खुबसुरत और भावपुर्ण रचना। आभार। होली की शुभकामनाएॅ।

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  31. आदरणीय कैलाश जी

    रंग भरा स्नेह भरा अभिवादन !

    यदि चाहो सदैव को प्रिय मैं रुक जाऊं,
    तो पहले समय पखेरू को बंदी कर लो


    बहुत सुंदर और मनभावन है आपकी गीत रचना … पढ़ कर आनन्द आ गया । आपको पढ़ना हमेशा ही मुझे अच्छा लगता है ।

    आपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई !


    ♥ होली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !♥

    होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
    मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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