Pages

Friday, July 22, 2011

इतने मत दिखलाओ सपने

                  इतने मत दिखलाओ सपने, आँख खुले तो आंसू आयें, 
              अबकी बार लगी गर ठोकर, शायद हम फिर संभल न पायें.


                                      हर  रस्ते ने  था  भटकाया,
                                      हर मंज़िल बेगानी निकली.
                                      हाथ जिसे समझे थे अपना,
                                      मेंहदी वहाँ  परायी निकली.


              सूनापन अब रास आ गया, मत खींचो मुझको महफ़िल में,
                टूट गया दिल अगर दुबारा, टुकड़े टुकड़े बिखर न जायें.


                                     जिसको समझे थे हम अपना,
                                     नज़र बचा कर चले गये वो.
                                     जितने  भी थे  स्वप्न संजोये,
                                     अश्कों में बह गये आज वो.


              अंधियारे से प्यार हो गया, दीपक आँखों में चुभता है,
              नहीं चांदनी का लालच दो, सपने मेरे  भटक न जायें.


                                    अब न चाह किसी मंज़िल की,
                                    चलते  रहना  यही  नियति है.
                                    नहीं  सताता  अब  सूनापन,
                                    चलना जबतक पांवों में गति है.


              ले जाओ अपनी ये यादें, दफ़न कहीं कर दो तुम इनको,
                 नहीं चाहता अब मन मेरा, मुझे कब्र में ये तड़पायें.

55 comments:

  1. सपने तो अक्सर ही टूट जाते है.. फिर भी हम सपना देखना नही छोड़ते है... बहुत खुबसूरत पंक्तिया....

    ReplyDelete
  2. हर रस्ते ने था भटकाया,
    हर मंज़िल बेगानी निकली.
    हाथ जिसे समझे थे अपना,
    मेंहदी वहाँ परायी निकली.
    Bahut,bahut sundar!

    ReplyDelete
  3. हाथ जिसे समझे थे अपना,
    मेंहदी वहाँ परायी निकली.

    वाह सर... एकदम नवीन दृष्टिकोण...
    एक बहुत सुन्दर गीत...
    सादर....

    ReplyDelete
  4. बेहतरीन कविता।

    सादर

    ReplyDelete
  5. सपने मेरे भटक न जायें.

    अपने सपने और अपने अपने
    सबसे बड़े सहारे हैं |

    बढ़ी बढ़िया प्रस्तुति ||

    ReplyDelete
  6. ले जाओ अपनी ये यादें, दफ़न कहीं कर दो तुम इनको,
    नहीं चाहता अब मन मेरा, मुझे कब्र में ये तड़पायें.
    sach men kashih bhari rachna hai....sir

    ReplyDelete
  7. अब न चाह किसी मंज़िल की, चलते रहना यही नियति है नहीं सताता अब सूनापन, चलना जबतक पांवों में गति है.

    बहुत सुन्दर ..संवेदनशील रचना..आभार..

    ReplyDelete
  8. "हर रस्ते ने था भटकाया,
    हर मंज़िल बेगानी निकली.
    हाथ जिसे समझे थे अपना,
    मेंहदी वहाँ परायी निकली."
    just a single word "hats off":)

    ReplyDelete
  9. अंधियारे से प्यार हो गया, दीपक आँखों में चुभता है,
    नहीं चांदनी का लालच दो, सपने मेरे भटक न जायें.
    शसक्त रचना , हृदय की आवाज को सुनती व सुनाती हुयी , भावपूर्ण प्रस्तुति ...
    आभार /

    ReplyDelete
  10. अंधियारे से प्यार हो गया, दीपक आँखों में चुभता है,
    नहीं चांदनी का लालच दो, सपने मेरे भटक न जायें.
    बहुत खूब बधाई

    ReplyDelete
  11. आदरणीय कैलाश जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    आज का गीत मुझे भी कई बरस पीछे ले गया ...

    अब न चाह किसी मंज़िल की,
    चलते रहना यही नियति है
    नहीं सताता अब सूनापन,
    चलना जब तक पांवों में गति है


    ले जाओ अपनी ये यादें, दफ़न कहीं कर दो तुम इनको,
    नहीं चाहता अब मन मेरा, मुझे कब्र में ये तड़पायें

    किशोर मन की भावुकताएं पूरे गीत में शब्दों के साथ चहलकदमी करती नज़र आती हैं ...
    पूरी लय - ताल के साथ सुंदर सुरुचिपूर्ण शिल्प के लिए आभार !
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  12. ले जाओ अपनी ये यादें, दफ़न कहीं कर दो तुम इनको,
    नहीं चाहता अब मन मेरा, मुझे कब्र में ये तड़पायें.

    कमाल की अभिव्यक्ति की है आपने.
    लगता है दिल को ही निचोड़ कर रख दिया है.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार है.

    ReplyDelete
  13. ले जाओ अपनी ये यादें, दफ़न कहीं कर दो तुम इनको,
    नहीं चाहता अब मन मेरा, मुझे कब्र में ये तड़पायें.

    वाह। क्या खुब कहा है।

    ReplyDelete
  14. हर रस्ते ने था भटकाया,
    हर मंज़िल बेगानी निकली.
    हाथ जिसे समझे थे अपना,
    मेंहदी वहाँ परायी निकली.

    वाह ! इसके आगे शब्द ही नहीं हैं.

    ReplyDelete
  15. बहुत सुंदर गीत! भवनाप्रद।

    ReplyDelete
  16. हर रस्ते ने था भटकाया,
    हर मंज़िल बेगानी निकली.
    हाथ जिसे समझे थे अपना,
    मेंहदी वहाँ परायी निकली.

    बहुत खूब! बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

    ReplyDelete
  17. अंधियारे से प्यार हो गया, दीपक आँखों में चुभता है,
    नहीं चांदनी का लालच दो, सपने मेरे भटक न जायें.


    बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ बेहतरीन लेखन के लिए बढ़ायी

    ReplyDelete
  18. पूरा गीत ज़बरदस्त है.आप को गीत में महारथ हासिल है.

    ReplyDelete
  19. भावमय करती शब्‍द रचना ...आभार ।

    ReplyDelete
  20. अब न चाह किसी मंज़िल की,
    चलते रहना यही नियति है.
    नहीं सताता अब सूनापन,
    चलना जबतक पांवों में गति है.

    वाह.....बहुत खूबसूरत

    ReplyDelete
  21. क्या गीत है शर्मा जी, वाह वाह वाह

    अंधियारे से प्यार हो गया, दीपक आँखों में चुभता है,
    नहीं चांदनी का लालच दो, सपने मेरे भटक न जायें.

    दिल से बधाई - डिरेक्ट्ली :)))))

    ReplyDelete
  22. अब न चाह किसी मंज़िल की, चलते रहना यही नियति है नहीं सताता अब सूनापन, चलना जब तक पांवों में गति है.

    आशा और निराशा का एक साथ वहन करती अद्भुत कविता !

    ReplyDelete
  23. खूबसूरत कविता... मेहँदी का पराया होना अच्छा प्रयोग है...

    ReplyDelete
  24. अपेक्षाओं को उपेक्षा मिली है।

    ReplyDelete
  25. आदरणीय अग्रज शर्मा जी बहुत ही सुंदर कविता बधाई ब्लॉग पर आकर उत्साह वर्धन करने के लिए आभार |

    ReplyDelete
  26. मन को छूटी भावपूर्ण रचना |अच्छी प्रस्तुति
    बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  27. ले जाओ अपनी ये यादें, दफ़न कहीं कर दो तुम इनको,
    नहीं चाहता अब मन मेरा, मुझे कब्र में ये तड़पायें.

    bahut bhaav-vibhor kar gayi ye panktiyan.

    samvedansheel rachna.

    ReplyDelete
  28. BAHUT HI SANVEDANSHIL GEET LIKH HAI SIR....
    JAI HIND JAI BHARAT........

    ReplyDelete
  29. दिल की गहराईयों को छूने वाली बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  30. आपकी पोस्ट की चर्चा कृपया यहाँ पढे नई पुरानी हलचल मेरा प्रथम प्रयास

    ReplyDelete
  31. अंधियारे से प्यार हो गया, दीपक आँखों में चुभता है,
    नहीं चांदनी का लालच दो, सपने मेरे भटक न जायें।

    मन एकांत में होता है तो सपने बुनने लगता है। यही सपने मन अैर आत्मा के पोषक बनते हैं।
    एक श्रेष्ठ गीत।

    ReplyDelete
  32. गहरी टीस से उपजी रचना है ... एकाकी मन की सोच ...

    ReplyDelete
  33. बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति ........

    ReplyDelete
  34. आदरणीय कैलाश जी
    नमस्कार !
    अब न चाह किसी मंज़िल की, चलते रहना यही नियति है नहीं सताता अब सूनापन, चलना जबतक पांवों में गति है.

    बहुत सुन्दर.....संवेदनशील रचना....आभार..

    ReplyDelete
  35. हर रस्ते ने था भटकाया,
    हर मंज़िल बेगानी निकली.
    हाथ जिसे समझे थे अपना,
    मेंहदी वहाँ परायी निकली.


    भावों से भरे इस सुन्दर गीत के लिए हार्दिक शुभकामनायें...

    ReplyDelete
  36. खुद को देखा है कहीं इन पंक्तियों में मैंने..बेहतरीन रचना कैलाश सर.

    ReplyDelete
  37. bhavbheenee marmik bhavo kee sunder sateek abhivykti .

    ReplyDelete
  38. संवेदनशील ,सुन्दर रचना पढवाने के लिए धन्यवाद .

    ReplyDelete
  39. अब न चाह किसी मंज़िल की,
    चलते रहना यही नियति है.
    नहीं सताता अब सूनापन,
    चलना जबतक पांवों में गति है...
    भावपूर्ण पंक्तियाँ! बहुत ख़ूबसूरत, संवेदनशील एवं मर्मस्पर्शी रचना! बधाई!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/

    ReplyDelete
  40. बहुत ही श्रेष्ठ इसके पहले भी पढ़ी थी लेकिन फोण की घंटियो के चक्कर मे मजा नही आया था अब तफ़सील मे आनंद लिया

    ReplyDelete
  41. तने मत दिखलाओ सपने, आँख खुले तो आंसू आयें,
    अबकी बार लगी गर ठोकर, शायद हम फिर संभल न पायें.

    bahut sundar aur samvedansheel abhivyakti.badhai

    ReplyDelete
  42. हाथ जिसे समझे थे अपना,
    मेंहदी वहाँ परायी निकली.

    dil ka dard jab jab tazaa ho jaata hai to esi panktiyan sajti hain... bahut sunder!

    ReplyDelete
  43. मर्मस्पर्शी रचना!

    ReplyDelete
  44. हर रस्ते ने था भटकाया, हर मंज़िल बेगानी निकली. हाथ जिसे समझे थे अपना, मेंहदी वहाँ परायी निकली..........

    bahut sunder rachna...yu to poori kavita sunder hai per ye panktiyan dil ko chu gayi...
    blog ki duniya mei nayi hoon...mere blog ko apke kadmo ka intezar rahega..

    ReplyDelete
  45. कैलाश जी , बहुत ही संवेदनशील कविता .. मन को झकझोरती हुई कविता .. शब्दों का जादू छाया है ..
    आभार

    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

    ReplyDelete
  46. very poignant.. the pain is reflecting in each line .
    Simply superb writing :)

    ReplyDelete
  47. मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
    एस .एन. शुक्ल

    ReplyDelete
  48. कैलाश जी,
    आप की इस कविता की चंद पंक्तियों को काव्य मंच पेज पर लिंक किया जा रह है |

    ReplyDelete