आसमान छूने की चाहत में
कितने दूर हो जाते हैं
हम ज़मीन से.
रिश्तों की दीवारें
ढह जाती हैं
स्वार्थों की चोट से,
चढ़ जाती है
स्नेह पर
गुरुत्व की परत,
चलते हैं
गढा कर नज़रें
आसमां पर
और कुचलते
स्वप्न और अरमान
अपनों के,
पैरों तले.
लेकिन पाते हैं एक दिन
अपने आप को अकेला
दूर क्षितिज पर,
तरसते
एक कोमल नन्हे हाथ को
जो पोंछ दे आंसू
अकेलेपन के.