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Friday, December 16, 2011

एक मुट्ठी धूप

महानगर की चकाचोंध 
और कोलाहल में
सिमट कर रह गया अस्तित्व
कमरे की ठंडी मौन
चार दीवारों में.


आता है याद 
गाँव के घर का आँगन
और गुनगुनी धूप,
न समाप्त होती बातें
खाते हुए भुनी मूंगफली.


ले तो आये थे गाँव से
अपने आप को
और इकठ्ठा कर लीं 
सब सुख सुविधाएं चारों ओर,
पर भूल गये लाना 
रिश्तों की गर्मी 
और एक मुट्ठी धूप 
आँगन की.

कैलाश शर्मा 

51 comments:

  1. पर भूल गये लाना
    रिश्तों की गर्मी
    और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की.
    बहुत बढि़या।

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  2. बहुत ही प्यारी कविता सर बधाई और शुभकामनाएं

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  3. Sach,wo guzare zamaane kitne yaad aate hain!

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  4. पर भूल गये लाना
    रिश्तों की गर्मी
    और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की.

    बहुत खूब सर!
    यही तो हम सब का सच है।

    सादर

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  5. बहुत ही सुन्दर भाव हैं रिश्तो की गर्मी सच में अब नहीं रही|

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  6. पर भूल गये लाना
    रिश्तों की गर्मी
    और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की.
    कितने कम शब्दों में कितना कुछ कह गये आप!!! बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना

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  7. गुनगुनी धूप को तरसती आज की व्यस्त जीवन शैली

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  8. ले तो आये थे गाँव से
    अपने आप को
    और इकठ्ठा कर लीं
    सब सुख सुविधाएं चारों ओर,
    पर भूल गये लाना
    रिश्तों की गर्मी
    और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की.
    वाह, कमाल की पंक्तियाँ हैं !
    आभार !

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  9. एक मुट्ठी धूप और इधर उधर से सूखी लकड़ियाँ जलाना ... मूंगफली की मंडली नहीं भूलती ... सारे भाई बहन , पापा अम्मा ....
    अब तो धूप मुश्किल , रूम हीटर है

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  10. पर भूल गये लाना
    रिश्तों की गर्मी
    और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की………………इसके बाद कहने को क्या बचा? कितनी सहजता से सच कह दिया।

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  11. बहुत सुंदर,अब दोनों की कमी हैं ......

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  12. रिश्तों की गर्मी व एक मुट्‌ठी धूप। वास्तव में शहरों में यह नहीं है। यही कारण है कि ज्यादातर चेहरे पीले नजर आते हैं.

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  13. lagta hai main bhi lana bhul gyi . kya khun..?

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  14. रिश्‍तों की गर्मी तो अब वाकयी में ठण्‍डी पड़ती जा रही है।

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  15. तल्ख़ रिश्तों और बिगडते पर्यावरण का सच....
    बहुत सुन्दरता रचा है सर...
    सादर...

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  16. ले तो आये थे गाँव से
    अपने आप को
    और इकठ्ठा कर लीं
    सब सुख सुविधाएं चारों ओर,
    पर भूल गये लाना
    रिश्तों की गर्मी
    और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की....

    very appealing lines..

    .

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  17. पर भूल गये लाना
    रिश्तों की गर्मी
    और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की.
    ..बहुत सुन्दर आज जीवन में इतना बिखराव आगया है कि एक मुट्ठी घूप और रिश्तो की गर्माहट के लिए तरस गए हैं....

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  18. अब क्या कहूं गांव से मोहल्ले तक वो
    दोस्ती वो झगड़े और वो अपनापन कही नही है।
    सोचता हूं मै कि काश आज से
    कुछ साल पहले पैदा क्यों न हुआ

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  19. I see craving for a simple life in those words..
    really sweet !!

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  20. एक मुट्ठी धूप की कमी निश्चित खलती है...!

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  21. अलमस्त जिंदगी का खूबसूरत फसाना.बेहतरीन.........

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  22. यहं तो धूप और रिश्तों की ऊष्मा दोनों की कमी है...... सुंदर लिखा

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  23. बहुत सुंदर कविता...भूनी मूँगफली हमें भी याद आ गई,वाह!

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  24. पर भूल गये लाना
    रिश्तों की गर्मी
    और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की...
    Very True...

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  25. बहुत ही सुन्दर रचना ... ऐसा लगा हमारी ही बीते दिन की बात हो ...

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  26. bahut si purani yaado ko yaad karwa diya aapki kavita ne........aabhar

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  27. खुले हुये आंगनों के साथ मन का खुलापन भी बीती बात हो गई !

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  28. आता है याद
    गाँव के घर का आँगन
    और गुनगुनी धूप,
    न समाप्त होती बातें
    खाते हुए भुनी मूंगफली.

    सर्द ऋतू के गाँव की याद ताज़ा हो गई, काफी सालों से दक्षिण भारत में रहते रहते सर्दी का
    अहसास ही भूल गया हूँ. मेरे गाँव में भी आइये . http://www.guglwa.com/

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  29. बहुत सुंदर भाव । कंक्रीट के जंगलों की सच्चाई ।

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  30. touching post
    एक मुट्ठी धूप
    आँगन की

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  31. कल 19/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  32. गाँव के माहोल बहुत अच्छा किया है वर्णन और पहुंचा दिया गाँव में बीते पुराने दिनों की यादों में |सुन्दर रचना |बधाई
    आशा

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  33. रिश्तों की गर्मी और मुठ्ठी भर धूप गांवों में ही मिल सकती है।
    एक उत्तम कविता।

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  34. sach kaha aapne shahri maahol me vo baat nahin jo gaav mein hoti hai...bahut achchi rachna..aabhar

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  35. रिश्तों की गमी और एक मुट्ठी धुप ... वाह ! क्या बात है !

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  36. आपने तो अपनी कविता से मेरे मन की बात व दर्द बयान कर दिया, इसके लिये आपका आभार।

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  37. बहुत बहुत सुन्दर कविता...
    दिल को छू गयी.
    सादर.

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  38. सुन्दर भाव समेटे दिल के दर्द को बखूबी शब्दों में पिरोया है! ख़ूबसूरत रचना!

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  39. और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की......wah...bahut sachchi baat.

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  40. पर भूल गये लाना
    रिश्तों की गर्मी
    और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की.

    बहुत खूब सर जी

    दुनिया की चकाचोंध में हकीक़त के मायने बहुत पीछे छुट जाते हैं.

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  41. बहुत सुंदर रचना बढ़िया प्रस्तुति,.....

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

    आफिस में क्लर्क का, व्यापार में संपर्क का.
    जीवन में वर्क का, रेखाओं में कर्क का,
    कवि में बिहारी का, कथा में तिवारी का,
    सभा में दरवारी का,भोजन में तरकारी का.
    महत्व है,...

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  42. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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  43. पर भूल गये लाना
    रिश्तों की गर्मी
    और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की…………ye bhool badi dukhdayee hai...

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  44. पर भूल गये लाना
    रिश्तों की गर्मी
    और एक मुट्ठी धूप
    आँगन की.
    bahut si bahav bhari line hai ye..
    bilkul gaon ki yaad aa gayi kailash ji :)

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  45. waah waah ... bahut sundar.. bahut dino baad aisi kavita padhi ki aatma khush hui.. bahut sundar..

    www.coffeefumes.blogspot.com

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