Pages

Friday, January 06, 2012

अनंत यात्रा

प्लेटफार्म पर खड़े
इंतजार में सभी,
गंतव्य है एक 
पर गाड़ी अलग अलग.


कन्फर्म्ड टिकट नहीं मिलती
गंतव्य की पहले से,
रखा जाता है सभी को 
अनिश्चित प्रतीक्षा सूची में.
आने पर गाड़ी 
करता है संचालक
टिकट कन्फर्म 
अपने चार्ट के अनुसार.


नहीं अनजान 
इस जगह से,
होता रहा है आना जाना
बार बार अनेक रूप में,
इंतज़ार में उस गाडी के 
जो ले जाए अंतिम गतव्य तक
जहां से आना नहीं पड़ता
वापिस इस स्टेशन पर.


क्यों करें इंतजार गाड़ी का
प्लेटफार्म पर खड़े हो कर.
आओ चलें बाहर 
करें पूरे वे काम
जो रह गये अधूरे
अपनों की चाहत 
पूरा करने की भाग दौड़ में.


पोंछें आंसू उन असहायों के
जो बैठे हैं बाहर,
दे दें कुछ हिस्सा 
अपनी गठरी से,
कुछ तो होगा कम 
भार सफ़र में.


नहीं है डर 
गाड़ी छूटने का,
आखिर जब होगी सीट कन्फर्म
गाड़ी तो नहीं जायेगी 
स्टेशन पर छोड़ कर.
बहुत सजग है गाड़ी का संचालक
सही समय पर 
सही गाड़ी में 
लेकर ही जाता है.

कैलाश शर्मा 

48 comments:

  1. वाह...
    अनछुए से भाव ..
    अच्छी अभिव्यक्ति
    सादर.

    ReplyDelete
  2. bahut sundar abhivyakti... mujhe apni aik kavita Yaad aaati hai ..aik rel gaadi aur ham...
    aapko navvarsh par shubhkaamnayen

    ReplyDelete
  3. कुछ अलग सा......स्वागत है नए का |

    ReplyDelete
  4. पोंछें आंसू उन असहायों के
    जो बैठे हैं बाहर,
    दे दें कुछ हिस्सा
    अपनी गठरी से,
    कुछ तो होगा कम
    भार सफ़र में.
    Kya baat hai...bahut sundar!

    ReplyDelete
  5. पोंछें आंसू उन असहायों के
    जो बैठे हैं बाहर,
    दे दें कुछ हिस्सा
    अपनी गठरी से,
    बहुत ही बढि़या भाव संयोजन ।

    ReplyDelete
  6. वाह...अद्भुत रचना है आपकी...बधाई स्वीकारें

    नीरज

    ReplyDelete
  7. कन्फर्म्ड टिकट नहीं मिलती
    गंतव्य की पहले से,
    रखा जाता है सभी को
    अनिश्चित प्रतीक्षा सूची में.
    आने पर गाड़ी
    करता है संचालक
    टिकट कन्फर्म
    अपने चार्ट के अनुसार... bahut rahasmay hai yah yatra ...kuch bhi pata nahi rahta

    ReplyDelete
  8. sundar abhivyakti hamare andar bhee chaltee hai yatraa aapne bahar bhee samjhaa dee dadhai

    ReplyDelete
  9. बहुत सजग है गाड़ी का संचालक
    सही समय पर
    सही गाड़ी में
    लेकर ही जाता है.

    अत्यंत खूबसूरत सार्थक रचना...
    गाड़ी को आधार बना शास्वत को अभिव्यक्त कर दिया...
    सादर बधाई...

    ReplyDelete
  10. बहुत ही बढ़िया सर!


    सादर

    ReplyDelete
  11. बहुत सार्थक प्रस्तुति, आभार|

    ReplyDelete
  12. बहुत ही बढि़या......

    ReplyDelete
  13. इतनी निराशा क्‍यों, अभी तो बहुत कुछ लिखना है।

    ReplyDelete
  14. बड़ी ही बोधगम्य शैली में गहन तथ्य स्थापित किये हैं।

    ReplyDelete
  15. बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना के लिए बधाई,...
    welcome to new post--जिन्दगीं--

    ReplyDelete
  16. namaskar sharma ji ........bahut hi khoobsurti se aapne safar aur takleef ko bayan kiya hai ....uttam .........abhar

    ReplyDelete
  17. होता रहा है आना जाना
    बार बार अनेक रूप में,
    इंतज़ार में उस गाडी के
    जो ले जाए अंतिम गतव्य तक
    सार्थक रचना...

    ReplyDelete
  18. तबतक गठरी खोलकर बेसहारों का दर्द बांटना सचमुच सफ़र के भार को हल्का ही करेगा. बहुत गहरी बात कही है आपने..

    ReplyDelete
  19. इंतज़ार में उस गाडी के ,
    जो ले जाए अंतिम गतव्य तक ,
    जहां से आना नहीं पड़ता ,
    वापिस इस स्टेशन पर.... !
    मोक्ष प्राप्ति का सपना ,
    अभी नहीं , अभी समय नहीं ,
    अभी तो बहुत सारे हैं , काम निपटाने ,
    दूसरों के मार्ग-दर्शक हो सकते है , आप.... !!

    ReplyDelete
  20. ये इंतज़ार ..गाडी आने पर धक्का मुक्की में तब्दील भी हो जाता हैं ..फिर भी इंतज़ार हूँ ही बना रहता हैं ...

    सार्थक रचना ...आभार

    ReplyDelete
  21. सुंदर. बेहतरीन रचना.

    ReplyDelete
  22. अच्छी प्रभावी रचना ..

    ReplyDelete
  23. आपका पोस्ट "अनंत य़ात्रा" अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट " तुम्हे प्यार करते-करते कहीं मेरी उम्र न बीत जाए " पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  24. वाह ! रचना में गोपाल दास नीरज की झलक नज़र आ रही है ।
    बेहतरीन ।

    ReplyDelete
  25. बेहद सुन्दर और सशक्त अभिव्यक्ति...सर!

    ReplyDelete
  26. ज़िंदगी का सफर ...सुंदर रचना

    ReplyDelete
  27. वो गाड़ीवाला सब कुछ जानता है।
    मननीय कविता।

    ReplyDelete
  28. "पोंछें आंसू उन असहायों के
    जो बैठे हैं बाहर,
    दे दें कुछ हिस्सा
    अपनी गठरी से,
    कुछ तो होगा कम
    भार सफ़र में."

    अत्यंत सुंदर भाव और प्रस्तुति ! बधाई

    ReplyDelete
  29. कल 09/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  30. पोंछें आंसू उन असहायों के
    जो बैठे हैं बाहर,
    दे दें कुछ हिस्सा
    अपनी गठरी से,
    कुछ तो होगा कम
    भार सफ़र में.

    Vah bahut hi prabhavshali rachana ...badhai

    ReplyDelete
  31. बहुत खूब ... जीवन और मृत्यु के सफर को जोड़ के लिखी बहुत ही भाव पूर्ण रचना ...
    नया साल मुबारक हो ...

    ReplyDelete
  32. बहुत सजग है गाड़ी का संचालक
    सही समय पर
    सही गाड़ी में
    लेकर ही जाता है.....bahut achchi rachna hai...bdhai sweekaren..

    ReplyDelete
  33. बहुत अच्छी रचना.......

    ReplyDelete
  34. सशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....

    ReplyDelete
  35. जी उसकी गाड़ी तो नियत समय पर ही आती है, और अपने साथ नियत यात्री के जरूर ले जाती है। गहन चिंतन।

    ReplyDelete
  36. nice poem sir
    thoda hat ke likhi aapane

    mere blog par bhi aaiyega
    umeed kara hun aapko pasand aayega
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

    ReplyDelete
  37. सही समय पर
    सही गाड़ी में
    लेकर ही जाता है.
    sahi hai ....
    sunder rachna ...

    ReplyDelete
  38. बहुत गहन ... जो आया है उसकी टिकट एक न एक दिन कन्फर्म हो ही जायेगी ..और सबसे बढ़िया बात की गाडी छोड़ कर नहीं जायेगी .. साथ ले जायेगी .. यानि की कभी भी गाडी छूटेगी नहीं ... तो सच ही पूरे कर लिए जाएँ काम ..गाडी का इंतज़ार भला क्यों ?

    ReplyDelete
  39. बहुत सशक्त रचना.. कितनी गहरी बात सहज, सरल शब्दों में..आभार!

    ReplyDelete
  40. वाह ,वाह ,वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
    यह प्लैट्फार्म समुद्र-तल से सबसे अधिक ऊँचाई पर..............

    ReplyDelete
  41. bahut achchu abhivyakti. jivan ka satya saral shabdo me.

    ReplyDelete
  42. बहुत सुंदर सार्थक सटीक प्रस्तुति,बेहतरीन रचना
    welcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--

    ReplyDelete