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Friday, May 25, 2012

मुखौटे

ज़िंदगी की दौड़ में
सबसे आगे रहने की चाह में,
हर रिश्ते
हर संबंधों के सामने 
पहन लिये 
अनगिनत मुखौटे.


आज खड़ा विजय रेखा पर
अनजान अपने ही अस्तित्व से,
ढूंढ रहा हूँ वह चेहरा
जो हो गया है गुम
अनगिनत मुखौटों के बीच.


कैलाश शर्मा 

42 comments:

  1. वाह ...........सहेजने योग्य ..........

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  2. सच कहा जिन्दगी की दौड़ मे कई बार हम खुद को ही भूल जाते हैं...बहुत सुन्दर भाव...आभार

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  3. वाह ...बहुत खूब।

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  4. बहुत ही सुन्दर और रचना ।

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  5. अपना ही अस्तित्व गुम हो जाता है मुखौटों के बीच .....बहुत सुंदर रचना

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  6. सच कह दिय कैलाश जी आज हम सबका यही हाल है ।

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  7. ..अपने को भूलने का कुछ तो खामियाजा होगा !

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  8. आज स्वयं को खोजता, खुद से ही अंजान।
    तृष्णा के बाजार में, तृषित हृदय इनसान॥


    बहुत सुंदर रचना....
    सादर।

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  9. बहुत ही सुन्दर औ रबेहतरीन रचना
    आभार !

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  10. अनजान अपने ही अस्तित्व से,
    ढूंढ रहा हूँ वह चेहरा
    जो हो गया है गुम
    अनगिनत मुखौटों के बीच.
    behtareen rachna !

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  11. बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना......

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  12. वाह...
    बहुत बढ़िया......

    छोटी से रचना...बहुत बड़ी बात......

    सादर.

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  13. आज खड़ा विजय रेखा पर
    अनजान अपने ही अस्तित्व से,
    ढूंढ रहा हूँ वह चेहरा
    जो हो गया है गुम
    अनगिनत मुखौटों के बीच.
    Aisa na jane kitnon ke saath hota hoga!

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  14. sach hai aajkal her insan apni pehchaan khota ja raha hai.....

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  15. मुखौटों पर भी मुखौटे हैं

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  16. वाह! बहुत बढिया रचना है।

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  17. कभी - कभी ऐसा ही महसूस होता है, कौन है हम, कहाँ हैं हम...
    लाजवाब रचना....

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  18. बहुत सुंदर गभीर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,

    MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

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  19. chaah kya kya nahi karva deti.
    par chaah karna bhi to hamaare hi haath men hai.

    utkrasht prastuti ke liye aabhar kailaash ji.

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  20. मुखौटों का चरित्र जीते इंसान खुद मुखौटा हो जाता है ...
    वाकई !

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  21. साहित्य के इस टुकड़े को बहुत सुंदर मुखौटा दिया है आपने..
    आभार !!

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  22. विजय पथ पर खड़ा...पर खुद से ही अनजान...सुंदर रचना !!

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  23. बहुत सुन्दर
    ( अरुन =arunsblog.in)

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  24. सचमुच एक मुकाम पर आकर इंसान खुद से भी अपरिचित रह जाता है पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है...बहुत सुंदर रचना !

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  25. ज़िन्दगी में कब कब न जाने कितने मुखोटे लगाने पड़ते हैं आज मुखोटा जरूरी हो गया है ,जीने के लिए
    भाव पूर्ण सुन्दर रचना ,

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  26. आज खड़ा विजय रेखा पर
    अनजान अपने ही अस्तित्व से,
    ढूंढ रहा हूँ वह चेहरा
    जो हो गया है गुम
    अनगिनत मुखौटों के बीच.

    waah! sach hai, khud dhoondna mushkil sa lagta hai…

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  27. मुखोटो के बीच असली चहेरा ना जाने कहाँ खो गया .......

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  28. Aaj to dim mein Bhi Kai Kai mukhote badal jate hain ... Asal chehra dhoondhna Bahut mushkil ho Gaya hai ...

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  29. मुखौटों के बीच वो मासूम चेहरा कहीं छिप गया है....व्यथा का सरल और सटीक चित्रण
    बेजोड़ रचना
    आभार

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  30. सच है, चेहरा कहीं नहीं है, चारों तरफ मुखौटे ही मुखौटे हैं।

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  31. प्रभावशाली और सशक्त प्रस्तुति । आभार ।

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  32. इन मुखोटो के बीच असली चेरा मिलना जरा मुश्किल है |

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  33. sach, mukhoute bahut pareshaan karte hain

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  34. बहुत सही कहा है आपने...
    कभी कभी दिखावे में हम खुद को भूल ही जाते है..
    शानदार रचना:-)

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