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Wednesday, May 30, 2012

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (११वीं-कड़ी)


द्वितीय अध्याय
(सांख्य योग - २.५७-६३)

शुभ को पाकर न हर्षित हो,
न विषाद अशुभ से होता.
है आसक्ति शून्य सर्वत्र,
वह ही स्थिर बुद्धि है होता.

जैसे कच्छप अंग सभी को 
सब ओरों से है समेटता.
स्थिर बुद्धि इन्द्रियाँ अपनी 
सब विषयों से है समेटता.

विषयों से निवृत्त भले हों,
विषयों से आसक्ति न जाती.
साक्षात्कार आत्मा से जब हो,
विषय राग निवृत्ति हो जाती.

हे कौन्तेय! विवेकी जन हैं
मोक्ष प्राप्ति की कोशिश करते.
पैदा करतीं विक्षोभ इन्द्रियाँ,
मन फिर कब काबू में रहते.

इन्द्रिय पर जो संयम करके,
मन एकाग्र लगाता मुझ में.
बुद्धि प्रतिष्ठित होती उसकी
जो कर लेता उनको वश में.

विषयों का चिंतन करने से
मन विषयों में ही लग जाता.
आसक्ति इच्छा जनती है,
काम क्रोध फ़िर पैदा करता.

क्रोध नष्ट करता विवेक को,
स्मृति जिससे विचलित हो जाती.
स्मृति विभ्रम है बुद्धि विनाशक,
बुद्धिनाश विनाश कारण हो जाती.
                           
                              ......क्रमशः 


कैलाश शर्मा 

17 comments:

  1. क्रोध नष्ट करता विवेक को,
    स्मृति जिससे विचलित हो जाती.
    स्मृति विभ्रम है बुद्धि विनाशक,
    बुद्धिनाश विनाश कारण हो जाती.
    सार्थकता लिए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति... आभार ।

    ReplyDelete
  2. विषयों का चिंतन करने से
    मन विषयों में ही लग जाता.
    आसक्ति इच्छा जनती है,
    काम क्रोध फ़िर पैदा करता.

    बहुत बढ़िया कड़ियाँ चल रहीं हैं एक से बढ़के एक चित्त शामक बनके आती है यह पोस्ट .क्या भाई साहब निवृत्त/निवृत हो सकता है निर्वत्त का (हमें नहीं मालूम कृपया बतलाएं ).बढ़िया प्रस्तुति है -


    ram ram bhai

    बुधवार, 30 मई 2012
    HIV-AIDS का इलाज़ नहीं शादी कर लो कमसिन से

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    कब खिलेंगे फूल कैसे जान लेते हैं पादप ?

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    Replies
    1. आदरणीय भाई साहब, निवृत्त सही शब्द है और निर्वत्त टाइपिंग की गलती के कारण टाइप होगया. ध्यानाकर्षण के लिये आभार.

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  3. स्थिरप्रज्ञ के लक्षणों का सुन्दर वर्णन..

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  4. यह तो बड़ी सुंदर शृंखला चल रही है सर....
    सादर बधाई।

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  5. बहुत सुंदर....

    आपका बहुत आभार....................

    अनु

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  6. कई अनुवाद पढ़े हैं किन्तु आपका प्रयास प्रशंसनीय है...

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  7. क्रोध नष्ट करता विवेक को,
    स्मृति जिससे विचलित हो जाती.
    स्मृति विभ्रम है बुद्धि विनाशक,
    बुद्धिनाश विनाश कारण हो जाती.…………बहुत सुन्दर और प्रवाहमयी व रोचक वर्णन चल रहा है।

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  8. बहुत सुन्दर प्रवाहमयी वर्णन...आभार

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  9. वैसे तो गीता के हर अध्याय का अपना अलग ही महत्व है....परन्तु इस कड़ी में स्थिरप्रज्ञ मुनि के लक्षणों का वर्णन बहुत ही सुन्दर ढंग से किया गया है
    विशेष तौर पर कछुवे का उदाहरण बहुत ही सराहनीय है
    सादर

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  10. शुभ को पाकर न हर्षित हो,
    न विषाद अशुभ से होता.
    है आसक्ति शून्य सर्वत्र,
    वह ही स्थिर बुद्धि है होता.

    सरल और प्रवाहमयी भाषा में स्थित प्रज्ञ के गुणों का चित्रण ! आभार!

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  11. जैसे कच्छप अंग सभी को
    सब ओरों से है समेटता.
    स्थिर बुद्धि इन्द्रियाँ अपनी
    सब विषयों से है समेटता.
    लाज़वाब प्रस्तुति .स्वीकृति आपने जतलाके हमारा शब्द कोष भी पुष्ट किया .शुक्रिया .कृपया यहाँ भी -


    बृहस्पतिवार, 31 मई 2012
    शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?
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    माहिरों ने इस अल्पज्ञात संक्रामक बीमारी को इस छुतहा रोग को जो एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुँच सकता है न्यू एच आई वी एड्स ऑफ़ अमेरिका कह दिया है .
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    उतनी ही खतरनाक होती हैं इलेक्त्रोनिक सिगरेटें
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