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Friday, September 21, 2012

मन कहता सब कुछ छोड़ चलें

मन कहता सब कुछ छोड़ चलें,
अनजान डगर पर जा निकलें.

रिश्तों की जितनी गांठें हैं 
उनको सुलझाना रहने दें.
कंधों पर क्यों है बोझ रखें,
उसको कुछ हल्का होने दें.

मोड़ मिले आगे या पथरीली राहें,
इस भूलभुलैया से आगे निकलें.

जो चाहा, वह पाया कब है,
चाहों को राह न मिल पायी.
ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
पर नहीं चांदनी खिल पायी.

विस्मृत कर आकांक्षाएं सब की,
कुछ पल तो आज स्वयं को रखलें.

अश्कों को जमा बर्फ़ करदें,
नयनों को कुछ आराम मिले.
स्मृतियां सब छोड़ चलें पीछे 
होठों को कुछ मुस्कान मिले.

विस्मृत कर, क्या है खोया पाया,
जो कुछ मुट्ठी में वो लेकर निकलें.

कैलाश शर्मा 

29 comments:

  1. विस्मृत कर, क्या है खोया पाया,
    जो कुछ मुट्ठी में वो लेकर निकलें.

    सुन्दर मन के भाव ..शांत से ..
    shubhkamnayen ...!!

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  2. रिश्तों की जितनी गांठें हैं
    उनको सुलझाना रहने दें.
    कंधों पर क्यों है बोझ रखें,
    उसको कुछ हल्का होने दें.

    मोड़ मिले आगे या पथरीली राहें,
    इस भूलभुलैया से आगे निकलें.
    ..बहुत सुन्दर आध्यात्मक पुट लिए प्रेरक प्रस्तुति

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  3. जो चाहा, वह पाया कब है,
    चाहों को राह न मिल पायी.
    ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
    पर नहीं चांदनी खिल पायी...दोराहे,चौराहे,विराम पर यही मनःस्थिति होती है

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  4. सर बहुत ही सुन्दर भावों को शब्दों में पिरोया है आपने. बहुत-२ बधाई

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  5. अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... आभार

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  6. जो चाहा, वह पाया कब है,
    चाहों को राह न मिल पायी.
    ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
    पर नहीं चांदनी खिल पायी.,,,उत्कृष्ट पंक्तियों के बधाई कैलाश जी,,,,,

    RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का

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  7. बहुत ही उम्दा भाव |

    सादर |

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  8. बहुत सुन्दर
    सकारत्मक भाव लिए रचना

    रिश्तों की जितनी गांठें हैं
    उनको सुलझाना रहने दें.
    कंधों पर क्यों है बोझ रखें,
    उसको कुछ हल्का होने दें.
    बहेतरीन है
    हार्दिक बधाई

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  9. हां कभी कभी जी करता है यूँ ही...सब छोड़ निकल जाने का..
    मगर ये "सब" हमें कहाँ छोडता है....

    बेहतरीन रचना..
    सादर
    अनु

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (22-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  11. कुछ वक्त के लिए दुनियादारी से दूर
    होकर मन को शांति अवश्य
    देनी चाहिए .....
    मन की बाते सहज.सरल भाव में....
    बेहतरीन रचना ...
    :-)

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  12. विस्मृत कर, क्या है खोया पाया,
    जो कुछ मुट्ठी में वो लेकर निकलें.
    आ इस एक पल को तो जी लें .बढ़िया प्रस्तुति .भाव अर्थ ओर व्यंजना देखते ही बनती है .

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  13. जो चाहा, वह पाया कब है,
    चाहों को राह न मिल पायी.
    ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
    पर नहीं चांदनी खिल पायी....बहुत सुन्दर भाव सुन्दर प्रस्तुति..

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  14. अश्कों को जमा बर्फ़ करदें,
    नयनों को कुछ आराम मिले.
    स्मृतियां सब छोड़ चलें पीछे
    होठों को कुछ मुस्कान मिले.

    इस उम्र तक आते आते जो भाव मन मेँ आते हैं उनका सटीक और सुंदर चित्रण ... बहुत अच्छी लगी रचना ।

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  15. विस्मृत कर आकांक्षाएं सब की,
    कुछ पल तो आज स्वयं को रखलें.

    मन के भावों का सुंदर शाब्दिक चित्रण ....

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  16. बहुत सुंदर !
    पर मुट्ठी ही तो जेब में चली जाती है
    खाली हवा लेकर फिर बाहर आ जाती है !

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  17. लेकिन मन है की फिर भी नहीं मानता ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  18. विस्मृत कर, क्या है खोया पाया,
    जो कुछ मुट्ठी में वो लेकर निकलें.

    Fabulous lines Kailash. Very thoughtful..

    you write n inspire.

    regards
    sniel

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  19. वाह...बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट।

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  20. जीवन के बीच बीच में आवारगी कर लेनी चाहिये।

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  21. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
    प्रवीण जी की आवारगी भी गौरव किये जाने योग्य है.

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  22. मन की चंचलता लिए हुए सुन्दर रचना

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    1. waah satik sarthak chitran .........bahut acchi lagi abhivyakti badhai

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  23. विस्मृत कर, क्या है खोया पाया,
    जो कुछ मुट्ठी में वो लेकर निकलें.

    बहुत सुंदर ! जीवन बोध को प्रस्तुत करती पंक्तियाँ..

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  24. जो चाहा, वह पाया कब है,
    चाहों को राह न मिल पायी.
    ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
    पर नहीं चांदनी खिल पायी.
    साच कहा | सबका वही हाल है |
    सुंदर रचना |
    मेरी नई पोस्ट:-
    मेरा काव्य-पिटारा:पढ़ना था मुझे

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  25. जो चाहा, वह पाया कब है,
    चाहों को राह न मिल पायी.
    ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
    पर नहीं चांदनी खिल पायी.

    जीने कि सही राह दिखाती बहुत सुंदर रचना.

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  26. जो चाहा, वह पाया कब है,
    चाहों को राह न मिल पायी.
    ख़्वाबों में चाँद उगा लेकिन
    पर नहीं चांदनी खिल पायी.

    वाह !!!! कैलाश जी, जीवन का सार लिख गये इन पंक्तियों में.

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  27. सुन्दर भावपूर्ण, संदेशप्रद रचना के लिय आभार ।

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  28. बहुत सुन्दर मन की अभिव्यक्ति..

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