Pages

Sunday, December 30, 2012

कब तक रहोगे मौन?

हे कृष्ण !
कब तक रहोगे मौन,
आज मैं दामिनी
आगयी स्वयं
अपने प्रश्नों का उत्तर मांगने.

द्रोपदी की पुकार
सुनकर आये तुरंत
और बचाई उसकी लाज,
शायद वह आपकी
सखी थी,
वर्ना क्यों नहीं सुनी
मेरी चीख और पुकार
जब कर रही थी मैं संघर्ष
उन वहशियों से.
कहो क्यों न लगाऊं
आरोप भेद भाव का?

चारों और बढ़ रहा है
अत्याचार, व्यभिचार,
त्रस्त कर रहा मानस को
बढ़ता भ्रष्टाचार,
नहीं सुरक्षित नारी
घर में या बाहर,
रोज होते बलात्कार.

तुम्हीं ने कहा था गीता में
जब जब होगा धर्म का नाश
मैं लूँगा अवतार 
अधर्म विनाश हेतु.

हे कृष्ण !
दो मुझे उत्तर
कौन सा धर्म है बचा
धरती पर?
कौन सा बचा है
अधर्म होने को?
क्यों न कहूँ
तुम्हारे आश्वासन भी
नहीं रहे अलग
धरती के नेताओं से.

क्या है तुम्हारा मापदंड
अधर्म के आंकलन का?
कितनी और दामिनियों का दर्द
चाहिये आप की तराज़ू को
झुकाने के लिए
अन्याय का पलड़ा?

कैलाश शर्मा 

29 comments:

  1. ...अब हम शिकायत भी ईश्वर से ही कर सकते हैं :-(

    ReplyDelete
  2. ab kaliyug aa gaya hai ab samy hai har damini ko swayam krushn banane ka

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हाँ..हमें कृष्ण का इंतजार नहीं करना है, स्वयं ही मुकाबला करना इस व्यवस्था का..

      Delete
  3. bhagvan avshy aaayenge ab samay aa gaya hain ......

    ReplyDelete
    Replies
    1. इंतजार है उनके आने का..

      Delete
  4. तुम्हारे लिए मैं सबकी रगों में बहने लगा हूँ ....
    तुम्हारे लिए एक नहीं कई कृष्ण आज खड़े हैं ....
    मैं न मौन था न हूँ
    मैं यलगार हूँ - विरोध का बीज हूँ

    ReplyDelete
  5. घर से मुझे यही संस्कार मिले कि इश्वर पर भरोसा, आस्था रखनी चाहिए, लेकिन आज के इस दुनिया में जो कुछ हो रहा है, पता नहीं क्यूँ, ये आस्था डगमगा रही है, ये विश्वास खोता जा रहा है ..

    ReplyDelete
    Replies
    1. सच कहा है मधुरेश..अब यह आस्था डगमगाने लगी है..

      Delete
  6. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  7. Sir, Nice to have come across your profile.
    liked your poems very much

    ReplyDelete
  8. ये सवाल श्रीकृष्ण को निरुत्तर कर देगा मेरा यही विश्वास है. लेकिन जैसे कहा गया है "अति सर्वत्र वर्जयेत".....अब हद पार करने लगा है ये वहशीपन. और भारतवर्ष में असुरो का राज कभी नहीं रहा है.अब इनकी उलटी गिनती का वक़्त आ गया है. सुन्दर भाव.

    ReplyDelete
  9. कहाँ हो कृष्ण , सवाल हम सबका है !!

    ReplyDelete
  10. pata nhi..hm kya the, kya hain aur kya honge abhi.................

    hey krishna kahan gayi teri geeta..yada yada hi dharmasya............

    ReplyDelete

  11. हर नज़र न्‍याय की उम्‍मीद में ...
    सार्थकता लिये सशक्‍त लेखन
    सादर

    ReplyDelete
  12. AAJ KE IS YUG ME KHUD HI DURGA BANNA HOGA OR SAMNA KARNA HOGA IN RAKSHSO KA.
    KEHTE HAI BHAGWAN BHI UNKI HELP KARTA HO JO KHUD KI HELP KARTE HAI.


    अपना आशीष दीजिये मेरी नयी पोस्ट

    मिली नई राह !!

    ReplyDelete
  13. सार्थक पोस्ट
    नया साल जाते जाते एक टीस दे गया

    ReplyDelete
  14. कितनी और दामिनियों का दर्द
    चाहिये आप की तराज़ू को
    झुकाने के लिए
    अब तो सुन लो ...बेबसों की पुकार ~

    ReplyDelete
  15. लोक अपनी सत्ता को पहचानेगा .व्यर्थ न जायेगी यह शहादत यह जंग जीवन की मौत के संग ,मौत के निजाम के संग .श्रृद्धांजलि निर्भया .हाँ !प्रलय बाकी है .इस रचना का वजन तब से अब और भी

    बढ़ गया है दिनानुदिन बढ़ेगा .

    कब तक रहोगे मौन?
    हे कृष्ण !
    कब तक रहोगे मौन,
    आज मैं दामिनी
    आगयी स्वयं
    अपने प्रश्नों का उत्तर मांगने.
    टूटेगा यह मौन ,जल्दी टूटेगा .

    ReplyDelete
  16. प्रतीक्षा है सूर्योदय की... नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ....

    ReplyDelete
  17. दिन तीन सौ पैसठ साल के,
    यों ऐसे निकल गए,
    मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
    ज्यों कहीं फिसल गए।
    कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
    कुछ आकुल,विकल गए।
    दिन तीन सौ पैसठ साल के,
    यों ऐसे निकल गए।।
    शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
    इस उम्मीद और आशा के साथ कि

    ऐसा होवे नए साल में,
    मिले न काला कहीं दाल में,
    जंगलराज ख़त्म हो जाए,
    गद्हे न घूमें शेर खाल में।

    दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
    प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
    बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
    ऐसा होवे नए साल में।

    Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.

    May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!

    ReplyDelete
  18. शानदार........झकझोरती पोस्ट.........हैट्स ऑफ इसके लिए।

    ReplyDelete
  19. क्या है तुम्हारा मापदंड
    अधर्म के आंकलन का?
    कितनी और दामिनियों का दर्द
    चाहिये आप की तराजू को
    झुकाने के लिए
    अन्याय का पलड़ा?

    इस आक्रोश को अनसुना नहीं कर सकेगा कोई।

    नव-वर्ष की अशेष शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  20. ummid hai ki 2012 ke samapti ke sath naya suraj nayi aasha lekar aayegaa.
    nav varsh ji shubh kamnayen;http://kpk-vichar.blogspot.in

    ReplyDelete
  21. दामिनी शब्द ही अपने आप में जवाब है इस बात का कि क्यूँ नहीं आए कृष्ण, दामिनी जैसे अन्य दमिनियों को सार्थक कर दिखाना होगा अपने नाम को कि उनकी गरज मात्र चमक से काँप जाये दूषित मन...

    ReplyDelete
  22. मन खोलो हे कान्हा, रह रह समय बुलाता है।

    ReplyDelete
  23. बहुत ही सुंदर रचना।

    ReplyDelete