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Tuesday, January 29, 2013

मत बांधो मुझको परिभाषा के बंधन में


मत बांधो मुझको परिभाषा के बंधन में,
मुझको तो बस नारी बन कर जीने दो.

बचपन कब बीता तितली सा,
हर कदम कदम पर पहरा था.
प्रतिपल यह याद दिलाया था,
वह घर मेरा कब अपना था.

सभी उमंगें मन की मन में दबी रहीं,
कह न पायी मुझको मर्ज़ी से जीने दो.

गृहलक्ष्मी का थोथा नाम दिया,
अस्तित्व मगर खूंटी पर टांगा.
बिस्तर और रसोई तक जीवन,
भूली ज़ीवन से मैंने क्या मांगा.

मैंने विस्मृत कर दिया नाम भी अपना था,
अब कुछ पल तो अपने में मुझको जीने दो.

ममता, पति सेवा के बदले,
सीता सावित्री कह बहलाया.
मैं रही सोचती क्यों इनमें,
श्रवण व राम न बन पाया.

निर्दोष अहिल्या ही पत्थर बनने को शापित,
अब हर पत्थर से दुर्गा की मूरत गढ़ने दो.

ममता, प्यार, दया गुण को,
मैं कैसे बिसराऊँ एक साथ.
जब बनते ये शोषण कारण,
अंतस में होता है आर्तनाद.

पीछे चलते चलते कितने युग बीत गये,
अब साथ साथ मुझको भी आगे बढ़ने दो.

रक्तबीज दानव चहुँ ओर खड़े,
शंकर भी मौन समाधि में बैठे.
मुझ को ही बनना होगा दुर्गा,
जब रक्षक ही भक्षक बन बैठे.

अबला बन कर के सहे हैं मैंने ज़न्म कई,
अब सबला बन कर के भी आगे जीने दो.

अस्तित्व उठा कर कन्धों पर,
आगे मुझ को है चलते जाना.
पग में कितने भी घाव मिलें,
उनका ख़ुद मरहम बन जाना. 

अब किसी राह पर पीछे मुड़ कर न देखूँगी,
मेरा भविष्य अब मेरे हाथों में ही रहने दो.

कैलाश शर्मा 

39 comments:

  1. सुन्दर उदगार कैलाश जी

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  2. नारी के मन का उद्गार,बहुत ही सुन्दर भाव।

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  3. बहुत सुन्दर सटीक और सशक्त रचना..आभार..

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  4. Very nice,Impressive presentation kailash ji.

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  5. बेहद सुन्दर रचना ... नारी मन की पुकार...आभार...

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  6. मार्मिक है-
    आभार आदरणीय-

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  7. अब किसी राह पर पीछे मुड़ कर न देखूँगी,
    मेरा भविष्य अब मेरे हाथों में ही रहने दो.

    बहुत ही सुन्दर भावमय लाजबाब रचना ,,,,,बधाई ,कैलाश जी
    recent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,

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  8. अबला बन कर के सहे हैं मैंने ज़न्म कई,
    अब सबला बन कर के भी आगे जीने दो.
    ...सच कहा आपने ...

    ..प्रेरक प्रस्तुति हेतु आभार।।..

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  9. बेहद सशक्त रचना..

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  10. आज की हर नारी के ह्रदयों के शब्दों को उड़ान दी है आपने हार्दिक आभार और बधाई बहुत अच्छा लिखा

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  11. अस्तित्व उठा कर कन्धों पर,
    आगे मुझ को है चलते जाना.
    पग में कितने भी घाव मिलें,
    उनको ख़ुद मरहम बन जाना.

    संकल्प भरी प्रेरणादायी पंक्तियाँ ...
    सादर !

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  12. सुन्दर भावमय अभिव्यक्ति

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  13. बड़े सुन्दर ढंग से व्यक्त किये हैं आपने मन के भाव..

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  14. नारी मन की सार्थक अभिव्यक्ति

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  15. बहुत सुंदर और सटीक भावों से सँजोयी सुंदर रचना

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  16. This comment has been removed by the author.

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  17. बहुत भावपूर्ण और सार्थक रचना |
    आशा

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  18. अच्‍छी रचना, सच है कि स्‍वयं को ही खड़े होना होगा।

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  19. नारी मन के भावों को कहती बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति...

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  20. बहुत सुन्दर भाव पेश किये हैं आपने. बंधन से निकलना ही होगा.

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  21. आपकी यह कविता बहुत ही भावुक तथा विचारवान है। इसमें शब्‍दों की गलतियां अखरती हैं। कृपया इन पर पुनर्विचार करें।


    हर कदमों पर बैठा पहरा था..........के स्‍थान पर......... कदम-कदम पर बैठा पहरा था..करें।
    उनको ख़ुद मरहम बन जाना..........के स्‍थान पर......... उनका खुद मरहम बन जाना..करें।

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  22. लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब हर घर में बेटी को घर के केंद्र में
    रखकर सोचेंगे परिधि में नहीं ! सार्थक रचना ...

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  23. बहुत प्रेरक रचना, शुभकामनाएँ.

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  24. प्रेरणादायक और सुन्दर रचना।

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  26. कुछ सोचने को प्रेरित करती हुई .....बहुत अच्छी रचना , सर !
    ~सादर!!!

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  27. नारी मन के लिए आपने बहुत कुछ सोचा... और बहुत प्रेणादायक लिखा .. सुन्दर.. कैलाश जी धन्यवाद ..

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  28. नारी मन की युग पीड़ा और समाधान ,बदलाव का बिगुल दोनों बजाती है यह रचना .निर्भया को काली, चंडी बन अवतार लेना होगा परकाया प्रवेश भी .बढ़ी युगप्रवर्तक प्रस्तुति .

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  29. निर्दोष अहिल्या ही पत्थर बनने को शापित,
    अब हर पत्थर से दुर्गा की मूरत गढ़ने दो.

    दुर्गा बनके वध करना ही होगा 17 साल पांच महीने वाले जुवेनाइल क्रिमनल का (बाल अपराधी कहना इस ज़ालिम को बालकों का अपमान है ).

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  30. नारी मन की व्यथा लिखी है सादे शब्दों में ... बहुत ही प्रभावी रचना ...

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