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Tuesday, April 02, 2013

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (४८वीं कड़ी)


मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश: 

        ग्यारहवाँ अध्याय 
(विश्वरूपदर्शन-योग-११.४७-५५


श्री भगवान:
तुम पर प्रसन्न होकर के अर्जुन 
यह परमोत्तम रूप दिखाया.
तेजोमय, अनंत, विश्वरूप यह,
इससे पहले न कभी दिखाया.  (११.४७)

न वेदाध्यन स्वाध्याय यज्ञ से, 
न कर्मकांड दान व तपश्चर्या से.
नहीं कोई भी यह देख सका है 
अतिरिक्त तुम्हारे मृत्युलोक से.  (११.४८) 

मेरा घोर रूप देख कर अर्जुन
किंकर्तव्यविमूढ़ हो न घबराओ.
फिर से मेरा पहला रूप देख कर 
भय को त्याग प्रसन्न हो जाओ.  (११.४९)

संजय: 
यह कहकर अर्जुन से राजन,
सौम्य रूप कृष्ण दिखलाया.
देने सांत्वना डरे अर्जुन को 
सौम्य रूप उसको दिखलाया.  (११.५०)

अर्जुन:
देख सौम्य मानुषी रूप को
भगवन मैं प्रसन्न हो गया.
स्वाभाविक स्थिति में अब मैं 
मेरा मन है शान्त हो गया.  (११.५१)

श्री भगवान:
मेरा विश्वरूप है जो देखा 
बहुत कठिन देखना इसका.
करते देव भी हैं आकांक्षा
दर्शन के इस विश्वरूप का.  (११.५२)

जैसा रूप है देखा तुमने 
वैसा कोई देख न पाता.
न वेदों न तप न दान से 
नहीं यज्ञ से देख है पाता.  (११.५३)

केवल अनन्यभक्ति के द्वारा,
विश्वरूप में जान है सकता.
अर्जुन जान तत्व यह मुझमें 
अभिन्न रूप प्रवेश कर सकता.  (११.५४)

करता कर्म निमित्त मेरे ही,
मुझे परम पुरुषार्थ मानता.
वैर भाव आसक्ति रहित जो
मेरा भक्त मुझे है पाता.  (११.५५)

**ग्यारहवां अध्याय समाप्त**

                   .......क्रमशः

कैलाश शर्मा 

21 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन सार्थक श्रीमद्भगवद्गीता का पद्यानुवाद,आभार आदरणीय.

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  2. सरल और सहज अनुवाद .... बहुत सुंदर

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  3. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

    सादर

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  4. बहुत सरल, सहज और रोचक अनुवाद!
    धन्यवाद सर!
    ~सादर!!!

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  5. सुन्दर, सरल और सहज पद्यानुवाद ....आभार

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  6. आनन्द तो सौम्य और सुन्दर रुप में ही है।

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  7. केवल अनन्यभक्ति के द्वारा,
    विश्वरूप में जान है सकता.
    अर्जुन जान तत्व यह मुझमें
    अभिन्न रूप प्रवेश कर सकता. (११.५४)

    geeta jaise granth ka kavyatmk anuvad ati mahtvpoorn va sangrhneey lg rha hai .......apko sadar badhai sir .

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  8. सरल सहज और रोचक अनुवाद!बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति .आभार

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  9. जैसा रूप है देखा तुमने
    वैसा कोई देख न पाता.
    न वेदों न तप न दान से
    नहीं यज्ञ से देख है पाता. ..

    कृष्ण के इस विराट रूप को आपने शब्दों से लिखा है ... सहज धारा सी बह रही है ...

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  10. सुंदर ज्ञान ! कृष्ण को नमन...आभार!

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  11. कृष्ण के विश्वरूप का सुन्दर चित्रण. बहुत सुन्दर और सरल अनुवाद. बधाई और शुभकामनाएँ.

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  12. मैं तो आपकी पुस्‍तक में पढ़ ही रहा हूँ ये महत्‍वपूर्ण पद्य।

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  13. सहज अनुवाद .... बधाई

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  14. टीसती प्रस्तुति ...पर एफ्फेक्टिव
    जैसा रूप है देखा तुमने
    वैसा कोई देख न पाता.
    न वेदों न तप न दान से
    नहीं यज्ञ से देख है पाता. ..
    ...सहज ..सरल भाषा ....बहुत सुन्दर !!!!

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  15. सुंदर सहज और ज्ञानवर्धक. अनुपम प्रयास.

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  16. सुन्दर प्रस्तुति

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  17. Happy to see this Amazing,Interesting,simple presentation on an important verse..its beautiful on Pdyanuwad..please do write more works connected with the same subject which can be helpful to readers for an easy read.Bhagwad Gita has always been an inspirational book for me.Congrats&Best of luck Kailash Sharmaji.GOD's blessings is with you.GOD<3U

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