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Wednesday, August 07, 2013

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (५५वीं कड़ी)

                         
                                   मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश: 
               

       चौदहवां  अध्याय 
(गुणत्रयविभाग-योग-१४.१-८)

जो सब ज्ञानों में है उत्तम 
परम ज्ञान वह फिर बतलाता.
जिसे जानकर के मुनिजन है
परमसिद्धि को प्राप्त है करता.  (१४.१)

उसी ज्ञान का आश्रय लेकर 
मेरे स्वरुप को प्राप्त हैं होते.
न वे सृष्टि में जन्म हैं लेते 
और प्रलय में नष्ट न होते.  (१४.२)

महद् ब्रह्म  योनि है मेरी,
गर्भाधान मैं उसमें करता.
हे भारत! उसके ही द्वारा 
प्राणी सब उत्पन्न हूँ करता.  (१४.३)

सभी चराचर योनि में अर्जुन 
जो कुछ भी उत्पन्न है होता.
उनकी योनि महद् ब्रह्म है,
बीज प्रदायक पिता मैं होता.  (१४.४)

सत रज तम तीनों ही ये गुण
प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं.
ये ही अव्यय आत्मा को अर्जुन
बाँधे शरीर से रखे हुए हैं.  (१४.५)

सत् गुण निर्मल होने के कारण 
दोष मुक्त, प्रकाशमय होता.
सुख व ज्ञान की आसक्ति से 
सत् गुण उनके साथ है रहता.  (१४.६)

राग स्वरुप रजोगुण होता
तृष्णा आसक्ति है पैदा करता.
कर्मों में आसक्ति जगाकर 
वह प्राणी को बंधन में रखता.  (१४.७)

अज्ञानजनित होता है तमोगुण,
मोह पाश में सबको है बांधता.
आलस्य, प्रमाद और निद्रा से 
हे भारत! उन्हें बाँध कर रखता.  (१४.८)

                     .....क्रमशः

.....कैलाश शर्मा 

18 comments:

  1. बहुत ही सुंदर, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. तमोगुण का नाश हो, प्राणि का विकास हो। विचारणीय कथन।

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  3. सुंदर अनुवाद!
    आभार....

    ~सादर!!!

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  4. बहुत सुन्दर, गुण में बँधे प्रकृति के ज़ोर।

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  5. बहुत सुन्दर .....बहुत खूब ..

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  6. सुंदर पद्यानुवाद, आभार!

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  7. सत, रज और तमोगुण की व्याख्या करता सुंदर अनुवाद..आभार!

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  8. संग्रहनीय निःशब्द करते

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  9. सुन्दर अनुवाद

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  10. बहुत सुंदर अनुवाद !!

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  11. Hameshakee tarah...behad sundar!

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  12. बहुत सुंदर अनुवाद कैलाश जी आभार।

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  13. सत रज तम तीनों ही ये गुण
    प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं.
    ये ही अव्यय आत्मा को अर्जुन
    बाँधे शरीर से रखे हुए हैं. ...

    गुण और ये शरीर प्राकृति में ही तो मिल जाने हैं ... जरूरी है इस ज्ञान गंगा को पी लेने की ...

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  14. गीता का संदेश समझ में आने वाली भाषा में मिले तो लोगों का भला भी होगा.

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  15. स्वंत्रता-दिवस की कोटि कोटि वधाइयां !आज के इस भ्कुतिकवादी युग में इस की बहुत आवश्यकता है | साधुवाद !!

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