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Tuesday, December 03, 2013

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (५९वीं कड़ी)

                                    मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश: 
          पंद्रहवां अध्याय 
(पुरुषोत्तम-योग-१५.११-२०

सतत साधना युक्त ही योगी 
स्व स्थित आत्म देख हैं पाते.
मूढ़ विकारी जन आत्मा को 
करके प्रयत्न भी देख न पाते.  (१५.११)

सर्व जगत प्रकाशित करता 
सूरज का वह तेज है मेरा. 
चन्द्र और अग्नि का तेज है 
उसे तेज समझो तुम मेरा.  (१५.१२)

पृथ्वी में स्थित ओज से अपने
सर्व चराचर जग धारण करता.
मैं ही रसमय सोम है बन कर,       
सब औषधियों का पोषण करता.  (१५.१३)

मैं जठराग्नि के स्वरुप में
समस्त देह में स्थित रहता.
प्राण और अपान शक्ति से  
चार अन्न का पाचन करता.  (१५.१४)

समस्त जनों के ह्रदय में स्थित 
स्मृति, ज्ञान व विस्मृति करता.
ज्ञान कराते हैं सब वेद ही मेरा 
मैं कर्ता वेदान्त व वेदों का ज्ञाता.  (१५.१५)

केवल दो ही पुरुष लोक में,
उनको क्षर व अक्षर कहते.
सब प्राणी की संज्ञा क्षर है 
जीवात्मा अक्षर हैं कहते.  (१५.१६)

उत्तम पुरुष भिन्न दोनों से 
उसको है परमात्मा कहते.
निर्विकार रह कर भी ईश्वर 
तीनों लोकों का पोषण करते.  (१५.१७)

क्योंकि मैं क्षर से ऊपर हूँ
व अक्षर से भी उत्तम.
अतः लोक और वेदों में 
जाना जाता मैं पुरुषोत्तम.  (१५.१८)

बुद्धिमान जन हे भारत!
मुझको पुरुषोत्तम रूप जानता.
वह समग्र सर्वज्ञ भाव से 
केवल मेरा ही है अर्चन करता.  (१५.१९)

मैंने गुह्य सम्पूर्ण शास्त्र है
तुमको बता दिया है अर्जुन.
हो जाता कृतकृत्य जान कर
जिसको बुद्धिमान ज्ञानी जन.  (१५.२०)

**पंद्रहवां अध्याय समाप्त**

                .....क्रमशः

....कैलाश शर्मा 

20 comments:

  1. आदरणीय सर , शुद्ध व सरल , सुंदर भाव , बहुत बढ़िया
    नया प्रकाशन -: प्रतिभागी - श्री राजेश कुमार मिश्रा ( आयुर्वेदाचार्य )
    ॥ जै श्री हरि: ॥

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  2. साधना का मार्ग दर्शाती …… क्षर और अक्षर का भेद बताती उत्तम रचना …
    कृतकृत्य हुए पढ़कर।

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  3. बहुत सुंदर उत्कृष्ट अनुवाद ....!
    ==================
    नई पोस्ट-: चुनाव आया...

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  4. संध्याकालीन अभिवादन !
    वासव में गीता अध्यात्म का सही मार्ग है और धर्म के सही ज्ञान का माध्यम भी !! आप का प्रयास है !!

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  5. मुझ पर कर दो जीवन आश्रित,
    पंथ करो ऐसे परिभाषित।

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  6. सुन्दर अनुवाद

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  7. सच में सतत साधना से युक्त मनुष्य ही अपनी आत्मा का दर्शन कर पाते हैं ..... बहुत खूबसूरत रचना ...

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  8. आलोकिक आनंद ... बहुत बहुत शुभकामनायें ...

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  9. समस्त जनों के ह्रदय में स्थित
    स्मृति, ज्ञान व विस्मृति करता.
    ज्ञान कराते हैं सब वेद ही मेरा
    मैं कर्ता वेदान्त व वेदों का ज्ञाता. (१५.१५)

    केवल दो ही पुरुष लोक में,
    उनको क्षर व अक्षर कहते.
    सब प्राणी की संज्ञा क्षर है
    जीवात्मा अक्षर हैं कहते. (१५.१६)
    बहुत सुन्दर अनुवाद,, गीता तो सब धर्मों का सार है,इससे बड़ा कोई ग्रन्थ नहीं.

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  10. अभिव्यक्ति का शिखर छू रही है ये रचना।भाव सार गीता का , शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया !

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  11. इस उत्कृष्ट अनुवाद के लिए बहुत बहुत आभार

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  12. वाह ..
    नमन आपको !!

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  13. उत्कृष्ट अनुवाद...

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