रश्मि प्रभा जी और किशोर खोरेन्द्र जी द्वारा संपादित काव्य-संग्रह 'बालार्क' में शामिल मेरी रचनाओं में से एक रचना
जीवन और मृत्यु का
संघर्ष
देखा है मैंने
खुली आंखों से.
केंसर अस्पताल का
प्रतीक्षालय
आशा निराशा की झलक
शून्य में ताकते
चेहरे,
मृत्यु की उंगली छोड़
ज़िंदगी का हाथ
पकड़ने की कोशिश,
गोल मोल मासूम बच्चा
माँ की गोद में
खेलता खिलखिलाता
अनजान हालात से
अपनी और आस पास की,
पर माँ की आँखें नम
गोद सूनी न हो जाये
इसका था गम.
हाँ मैंने सुनी है
मौत के कदमों की आहट,
रात के सन्नाटे में
हिला देती अंतस को
एक चीख
जिसे दबा देते
नर्स और स्टाफ कुछ
पल में,
पाता सुबह
बराबर के कमरे में
एक नया मरीज़
एक नया चेहरा,
हाँ, कल रात
ज़िंदगी फिर मौत से
हार गयी.
कीमोथेरेपी का ज़हर
जब बहने लगता नस नस
में
अनुभव होता जीते जी
जलने का,
जीने की इच्छा मर
जाती
सुखकर लगती इस दर्द
से मुक्ति
मृत्यु की बाहों
में.
जीवन और मृत्यु की इच्छा
का संघर्ष
हाँ, देखा है मैंने
अपनी आँखों से.
कितना कठिन है देखना
किसी अपने की आँखों
में
दर्द का सैलाब
और जीवन मुक्ति की
चाह,
देना झूठे आश्वासन
करते हुए
निश्चित मृत्यु का
इंतज़ार.
जीवन और मृत्यु
दोनों ही
अवश्यम्भावी
और उनका स्वागत
ग़र आयें सुकून से,
दोनों के बीच का
संघर्ष
देता है असहनीय पीड़ा
जिसे देखा है मैंने
अपनी आँखों से.
आज भी जीवंत हैं
वे पल जीवन के,
कांप जाती है रूह
जब भी गुज़रता
उस सड़क से.
....कैलाश शर्मा