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Saturday, May 16, 2015

साथ आंसुओं का

हर वक़्त है तुम्हारा,
बहने लगते अनवरत
निभाते हैं साथ
दुखों के पल में,

नहीं जाते दूर
छलक जाते हैं
खुशियों के पल में


छलके थे आँखों से 
देखा ज़ब अचानक 
देहरी पर तुमको 
और छुप गए 
तुम्हारी बाहों में,
बरसे हैं फ़िर से ये 
सावन के बादल से 
देख तुम्हें जाते 
आज उसी देहरी से 

जन्म से मृत्यु तक
निरंतर साथ अश्रु का,
जाते खुशियों के साथ
माँ की आँखों में
देख मासूम सूरत
पहली बार गोद में
अपने बच्चे की, 
बरसे थे आँखों से 
छोड़ गया था जब वह
वृद्धाश्रम दरवाज़े पर,
और शायद लगें बहने
किसी के इंतज़ार में 
अंतिम यात्रा के प्रयाण में।

...© कैलाश शर्मा 

25 comments:

  1. मन को छू लेनें वाली कविता।अति सुन्दर शर्मा जी। अति सुन्दर।

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  2. सही है आदरणीय
    ख़ुशी हो या गम
    चाहे कोई भी हो मौसम
    इनका साथ कभी नहीं छूटता

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  3. सुन्‍दर। दिल को लगती पंक्तियां।

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  4. भावपूर्ण अश्रु माला पिरो दी आपने...सादर

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  5. बहुत मार्मिक कविता ! ये पंक्तियाँ तो दिल को छू गई -
    पहली बार गोद में
    अपने बच्चे की,
    बरसे थे आँखों से
    छोड़ गया था जब वह
    वृद्धाश्रम दरवाज़े पर,
    और शायद लगें बहने
    किसी के इंतज़ार में

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  6. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-05-2015) को "धूप छाँव का मेल जिन्दगी" {चर्चा अंक - 1978} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
    ---------------

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  7. दिल को विगलित करती अत्यंत मार्मिक रचना ! बहुत सुन्दर

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  8. दिल छू लिया इन पंक्तयों ने सर

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  9. सादर नमस्ते भैया ..
    बहुत बढ़िया

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  10. दिल को छु गए भाव.......एक दर्द उतरती हुई पंक्तियाँ ।

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  11. आंसुओं की दास्ताँ ..बहुत कोमल अहसास..

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  12. मन को छूते शब्द .. आंसू हर पल, हर लम्हा निकल आते हैं ... ख़ुशी या गम जो भी हो ...
    गहरे एहसास ...

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  13. बेहतरीन मार्मिक मनों भावों को उजागर करती प्रस्तुति

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  14. कैलाश जी, बिलकुल सही बात है . एक आंसू ही है जो इन्सान का साथ कभी नहीं छोड़ते! बढ़िया प्रस्तुति .

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  15. माँ की आँखों में
    देख मासूम सूरत
    पहली बार गोद में
    अपने बच्चे की,
    बरसे थे आँखों से
    छोड़ गया था जब वह
    वृद्धाश्रम दरवाज़े पर,
    और शायद लगें बहने
    किसी के इंतज़ार में
    अंतिम यात्रा के प्रयाण में।

    ​दिल की गहराइयों तक पहुँचते शब्द ! आपकी रचना को मिला लोगों का समर्थन भी इसकी उद्घोषणा करता है आदरणीय शर्मा जी !

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  16. बहुत सुन्दर

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  17. आंसू हमारे जीवन यात्रा के सहभागी होते हैं। हमारी खुशियां भी कही न कहीं आंसुओं के पीछे से ही निकल कर आती हैं।

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  18. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  19. बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी कविता है

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