प्रकाश स्तम्भ
नहीं एक मंज़िल,
सिर्फ़ एक संबल
दिग्भ्रमित नौका को,
दिखाता केवल राह
लेना होता निर्णय
चलाना होता चप्पू
स्वयं अपने हाथों से।
नहीं एक मंज़िल,
सिर्फ़ एक संबल
दिग्भ्रमित नौका को,
दिखाता केवल राह
लेना होता निर्णय
चलाना होता चप्पू
स्वयं अपने हाथों से।
आसान है सौंप देना
नाव लहरों के सहारे
शायद पहुंचे किसी तट पर
न हो जो इच्छित मंज़िल
या डूब जाए बीच धारा में,
केवल प्रकाश स्तम्भ
या पतवार नौका में
कब है पहुंचाती
नाव लहरों के सहारे
शायद पहुंचे किसी तट पर
न हो जो इच्छित मंज़िल
या डूब जाए बीच धारा में,
केवल प्रकाश स्तम्भ
या पतवार नौका में
कब है पहुंचाती
इच्छित मंज़िल को,
करनी होती स्थिर
दृष्टि प्रकाश स्तम्भ पर,
चलाने होते पतवार अपने हाथों से
रोकने को बहने से नाव
लहरों के साथ।
करनी होती स्थिर
दृष्टि प्रकाश स्तम्भ पर,
चलाने होते पतवार अपने हाथों से
रोकने को बहने से नाव
लहरों के साथ।
....©कैलाश शर्मा