Pages

Sunday, September 13, 2015

इश्क़ को ज़ब से बहाने आ गए

इश्क़ को ज़ब से बहाने गए,
दर्द भी अब आज़माने गए।

दर्द की रफ़्तार कुछ धीमी हुई,
और भी गम आज़माने गए।

कौन कहता है अकेला हूँ यहाँ,
याद भी हैं साथ देने गए।

रात भर थे साथ में आंसू मिरे,
सामने तेरे छुपाने गए।

हाथ में जब हाथ था आने लगा,
बीच में फिर से ज़माने गए

            (अगज़ल/अभिव्यक्ति)


....©कैलाश शर्मा
 

25 comments:

  1. वाह ... बहुत ही लाजवाब कमाल के शेरों से सजी गज़ल ...

    ReplyDelete
  2. ज़माने का काम ही है बीच में आ जाना अच्छे शेरो से सजी गज़ल

    ReplyDelete
  3. खूबसूरत ग़ज़ल।

    ReplyDelete
  4. खूबसूरत ग़ज़ल।

    ReplyDelete
  5. वाह ! हर शेर लाजवाब ! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल !

    ReplyDelete
  6. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, खुशहाल वैवाहिक जीवन का रहस्य - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  7. अच्छी गजल कही शर्मा जी बधाई

    ReplyDelete
  8. अच्छी गजल ........ शर्मा जी

    राज चौहान
    आपका मेरे ब्लॉग पर इंतजार है.
    अज्ञेय जी की रचना... मैं सन्नाटा बुनता हूँ :)
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

    ReplyDelete

  9. कौन कहता है अकेला हूँ यहाँ,
    याद भी हैं साथ देने आ गए।

    रात भर थे साथ में आंसू मिरे,
    सामने तेरे छुपाने आ गए
    पहली बार शायद आपकी गजल पढ़ रहा हूँ और यकीन मानिए अच्छी बन पड़ी है आदरणीय शर्मा जी !!

    ReplyDelete
  10. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

    ReplyDelete
  11. कौन कहता है अकेला हूँ यहाँ,
    याद भी हैं साथ देने आ गए।

    Bahut Umda

    ReplyDelete
  12. उत्कृष्ट प्रस्तुति

    ReplyDelete
  13. बस यही कहूंगा......वाह...वाह...वाह.....बहुत बहुत बधाई......

    ReplyDelete
  14. ''इश्क को जब बहाने आ गए.., दर्द को वह अजमाने आ गए'' बेहद उम्दा रचना की प्रस्तुति।

    ReplyDelete