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Thursday, November 24, 2016

समस्याएं अनेक, व्यक्ति केवल एक

समस्याएँ अनेक
उनके रूप अनेक
लेकिन व्यक्ति केवल एक।
नहीं होता स्वतंत्र अस्तित्व
किसी समस्या या दुःख का,
नहीं होती समस्या
कभी सुप्तावस्था में
जब जाग्रत होता 'मैं'
घिर जाता समस्याओं से।

मेरा 'मैं'
देता एक अस्तित्व
मेरे अहम् को
और कर देता आवृत्त
मेरे स्वत्व को।
मैं भुला देता मेरा स्वत्व
और धारण कर लेता रूप
जो सुझाता मेरा 'मैं'
अपने अहम् की पूर्ती को।

नहीं होती कोई सीमा
अहम् जनित इच्छाओं की,
अधिक पाने की दौड़ देती जन्म
ईर्ष्या, घमंड और अवसाद
और घिर जाते दुखों के भ्रमर में।

'मैं' नहीं है स्वतंत्र शरीर या सोच
जब 'मैं' जुड़ जाता
किसी अस्तित्व से
तो हो जाता आवृत्त अहम् से,
जब हो जाता साक्षात्कार
अहम् विहीन स्वत्व से
हो जाते मुक्त दुखों से
और होती प्राप्त परम शांति।


कर्म से नहीं मुक्ति मानव की
लेकिन अहम् रहित कर्म
नहीं है वर्जित 'मैं'.
हे ईश्वर! तुम ही हो कर्ता
मैं केवल एक साधन
और समर्पित सब कर्म तुम्हें
कर देता यह भाव
मुक्त कर्म बंधनों से,
और हो जाता अलोप 'मैं'
और अहम् जनित दुःख।


...©कैलाश शर्मा 

13 comments:

  1. नहीं होती कोई सीमा
    अहम् जनित इच्छाओं की,
    अधिक पाने की दौड़ देती जन्म
    ईर्ष्या, घमंड और अवसाद
    और घिर जाते दुखों के भ्रमर में।
    कुछ समस्याएं तो परिस्थितियों से ही जन्म लेती हैं !! बहुत सार्थक रचना आदरणीय कैलाश शर्मा जी

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... very nice article .... Thanks for sharing this!! :)

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  4. ‘मै’ के रहस्य का संपूर्ण विवेचन....बहुत ही प्रभावशील ।

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  5. बहुत सुन्दर शब्द रचना....

    http://savanxxx.blogspot.in

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  6. सर्वमान्य सत्य तो यही है पर हम न मानने को विवश हैं ।

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  7. सब एक पर ही केन्द्रित हो जाता है।

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  8. गहन भाव युक्त बहुत सुन्दर रचना ... शुभकामनाएं

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  9. बहुत ही अच्‍छी और भावमयी रचना की प्रस्‍तुति। हमें सत्‍य को मान लेना चाहिए। क्‍योंकि सत्‍य को नकारा नहीं जा सकता है।

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