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Tuesday, April 18, 2017

क्षणिकाएं

    (1)
चहरे पर जीवन के
उलझी पगडंडियां
उलझा कर रख देतीं
जीवन के हर पल को,
जीवन की संध्या में
झुर्रियों की गहराई में
ढूँढता हूँ वह पल
जो छोड़ गये निशानी
बन कर पगडंडी चहरे पर।

    (2)
होता नहीं विस्मृत
छोड़ा था हाथ
ज़िंदगी के
जिस मोड़ पर।
ठहरा है यादों का कारवां
आज भी उसी मोड़ पर,
शायद देने को साथ
मेरे प्रायश्चित में
थम गया है वक़्त भी
उसी मोड़ पर।


    (3)

आसान कहाँ हटा देना
तस्वीर दीवार से
पुराने कैलेंडर की तरह,
टांग देते नयी तस्वीर
पुरानी ज़गह पर,
लेकिन रह जाती
खाली जगह तस्वीर के पीछे
दिलाने याद उम्र भर।

...©कैलाश शर्मा