Pages

Monday, December 13, 2010

इंसानियत की मौत

दुर्घटना में घायल आदमी
पड़ा था बीच सड़क पर
सना अपने ही खून में.
दौड़ती कारें
बचकर निकल गयीं,
स्कूटर से उतर कर लोग
तमाशाइयों की भीड़ में
घुस कर देखते 
और आगे बढ़ जाते.
तड़पता रहा घायल
पर बढ़ा नहीं कोई हाथ
उसे उठाने.


सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
संख्या एक और बढ़ गयी,
लेकिन गिनती नहीं हुई 
उस इंसानियत की 
जो उसके साथ ही मर गयी.

38 comments:

  1. सोंचता ही रह गया इस रचना को पढ़ कर ! इंसानियत ही मर रही है हर जगह हर समय ....
    आपकी रचनाये गहरे निशान छोडती हैं !
    हार्दिक शुभकामनायें

    ReplyDelete
  2. aaj ham kitne samvedanheen ho gaye hain..
    vastav me yah insaniyat ki maut hi to hai..
    bhavpoorn marmik kavita.

    ReplyDelete
  3. बहुत गहरी बात ..लोंग तो गिने जाते हैं पर इंसानियत ???? अच्छी रचना ...

    ReplyDelete
  4. लेकिन गिनती नहीं हुई
    उस इंसानियत की
    जो उसके साथ ही मर गयी.

    हो भी नही सकती क्योंकि आज हर गली चौराहे पर इंसानियत ऐसे ही मर रही है कहाँ तक गिनेगा कोई………………बेहद गहन अभिव्यक्ति कटु सत्य के साथ्।

    ReplyDelete
  5. आदरणीय शर्मा जी,
    आपकी कविता की ये पंक्तियाँ कविता को बहुत उंचाई प्रदान कर रही हैं ,
    सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
    संख्या एक और बढ़ गयी,
    लेकिन गिनती नहीं हुई
    उस इंसानियत की
    जो उसके साथ ही मर गयी.
    आभार,
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    ReplyDelete
  6. इंसानियत ही मर रही है हर जगह हर समय ....
    bikul sahi kaha aapne kailash ji...

    ReplyDelete
  7. लेकिन गिनती नहीं हुई
    उस इंसानियत की
    जो उसके साथ ही मर गयी.
    लेकिन गिनती नहीं हुई
    उस इंसानियत की
    जो उसके साथ ही मर गयी.
    ...संवेदनहीनता की पराकाष्टा को प्रदर्शित करती आपकी यह रचना वर्तमान परिवेश को इंगित कर एक सवेदनशील इंसान के मन से उपजी गहरी मानवीय पीड़ा को व्यक्त करती है .....सच में आज जब ऐसी ख़बरें सुनने को मिलती है तो मन दर्वित हो उठता है .......

    ReplyDelete
  8. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.uchcharan.com/

    ReplyDelete
  9. सर अब तो ये गिनती करनी है कि इंसानियत बची कितने लोगो में है तो ज्यादा आसानी होगी। आपकी रचना दिल को छूती है। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  10. बेहद गहन अभिव्यक्ति कटु सत्य के साथ्।

    ReplyDelete
  11. अब लोग सिर्फ तमाशा देखने आते है /
    मानवीयता शायद मर सी गई है बड़े भाई //

    ReplyDelete
  12. ऐसा सोचना तथा सोच को शब्दों का आवरण पहनना, बहुत खूब कला है आपमें.

    ReplyDelete
  13. पहली बार आई हूँ, आपके ब्लॉग में. कहना जरूर चाहुगी कि मन को बहुत सुकून सा लग रहा है आपकी रचनाओ को पढ़कर.प्रणाम!

    ReplyDelete
  14. सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
    संख्या एक और बढ़ गयी,
    लेकिन गिनती नहीं हुई
    उस इंसानियत की
    जो उसके साथ ही मर गयी.

    सही कहा आपने.यही हालात हैं इस समय तो.

    ReplyDelete
  15. इंसानियत ही मर रही है हर जगह हर समय ....

    ReplyDelete
  16. सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
    संख्या एक और बढ़ गयी,
    लेकिन गिनती नहीं हुई
    उस इंसानियत की
    जो उसके साथ ही मर गयी.

    क्या बात है!
    बिल्कुल सही कथन और सही चित्रण कविता के द्वारा

    ReplyDelete
  17. kya kahun ab is par...nishabd hoon

    ReplyDelete
  18. छोटे शहरों में तो अभी इतनी मानवीयता शेष है कि किसी दुर्घटनाग्रस्‍त व्‍यक्ति को अस्‍पताल पहुंचा दे।

    ReplyDelete
  19. aaj bade shahro me vyst aadmee kee ye tatasthta kee mansikta ka sahee chitran kiya hai aapne........
    aabhar.

    ReplyDelete
  20. एक समाज का सच.. मैंने भी इस चेहरे को देखा है ...
    और ये पंक्तियाँ खास लगीं

    सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
    संख्या एक और बढ़ गयी,
    लेकिन गिनती नहीं हुई
    उस इंसानियत की
    जो उसके साथ ही मर गयी.

    उम्दा

    ReplyDelete
  21. रचना अपने निशाँ छोड़ती है .....

    कुछ इसी से मिलती जुलती मेरी एक कविता की अंतिम पंक्तियाँ थी .....

    मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सी
    देखती रही उस भीड़ को
    जिनकी आत्माएं
    कबकी मर चुकी थी ....

    ReplyDelete
  22. संवेदनाएं मर चुकी हैं। मनुष्य मशीनीकृत हो रहे हैं।

    ReplyDelete
  23. इंसानियत रोज हजारों मौत मरती है कोई गिनती नहीं ..मार्मिक रचना.

    ReplyDelete
  24. कविता बहुत ही मार्मिक है,
    इन अंतिम प्रक्तियों को पढ़कर मन व्यथित हो गया-

    सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
    संख्या एक और बढ़ गयी
    लेकिन गिनती नहीं हुई
    उस इंसानियत की
    जो उसके साथ ही मर गयी

    आपकी संवेदनशीलता को नमन।

    ReplyDelete
  25. बहुत ही मार्मिक चित्रण... इंसानियत मर रही है बार-बार, यह धरा रो रही जार-जार, ऐ इंसान कहाँ जा रहा है तू, रुक के ज़रा सोच तो ले एक बार!

    ReplyDelete
  26. एक संवेदनशील पोस्ट संवेदनाहीन समुदाय के नाम

    ReplyDelete
  27. bhaoot hi marmik chitran..... aaj insaniyat har jagah dam tod rahi hai..... sunder prastuti.

    ReplyDelete
  28. पांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं
    प्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
    मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
    दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
    या हादी
    (ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)

    या रहीम
    (ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)

    आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक
    {आप की अमानत आपकी सेवा में}
    इस पुस्तक को पढ़ कर
    पांच लाख से भी जियादा लोग
    फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom

    ReplyDelete
  29. इंसानियत उसके साथ ही मर गयी.....मार्मिक, हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं। अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  30. इंसानियत मरती जा रही है . आभार इस यथार्थ वादी एवं मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए .

    ReplyDelete
  31. durghatnaon mein hui maut ek statistics ban kar rah jati hai aur insaniyat ki maut ka aabhas tak nahi kar paate hum...
    yathartparak rachna!

    ReplyDelete
  32. तड़पता रहा घायल
    पर बढ़ा नहीं कोई हाथ
    उसे उठाने.

    Bahut hi kadwaa sach jise sweekarnaa hoga parantu sweekarne bhr se kyaa hoga. Kuchh karnaa hoga parantu karega kaun? Yadi hami aap ko karna hota to yah naubat hi kyon aati? to kaun karega aur kaise karegaa yahi sochne ka vishay hai... yah durghatana kisi ke saath bhi ho sakti hai parantu hmhridayheen kyon aur kaise ho gaye...?????? Yadi swayan se poochhe to achha rahega.......Mananiy air chantan karne yogya rachna......

    ReplyDelete
  33. आदरणीय शर्मा जी,
    अच्छा लेख प्रेणादायक
    आज के समय में इंसानियत बहुत जारूरी है!
    लेकिन इंसानियत मरती जा रही है

    ReplyDelete
  34. सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
    संख्या एक और बढ़ गयी,
    लेकिन गिनती नहीं हुई
    उस इंसानियत की
    जो उसके साथ ही मर गयी.
    अच्छी रचना

    ReplyDelete
  35. आज लोगों के संवोदनाओं के तार झंकृत नही हो रहे हैं। इंसान केवल जिंदा है पर इंसानियत मर गयी है। अच्छा पोस्ट। णेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।

    ReplyDelete
  36. …बेहद गहन अभिव्यक्ति कटु सत्य के साथ्

    ReplyDelete
  37. Really, heart touching lines sir... thank you for sharing it with us.

    ReplyDelete