Pages

Sunday, April 03, 2011

मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे

मैंने  सब  द्वार खुले रखे  थे अपने घर के,
बंद दर देख के खुशियाँ न कहीं मुड़ जायें.
थक गयी चौखटें सुनसान डगर तकते हुए,
बंद  करती नहीं पलकें कि नज़र आजायें.

          कितना आसान निकल जाना चुरा कर नज़रें,
          तुमको क्या इल्म जो गुज़री है किसी के दिल पर.
          इतना डर था जो ज़माने की नज़र का तुमको,
          मुस्करा कर क्यों  उठाई थी ये नज़रें मुझ पर.

अब न शिकवा,न शिकायत,न कोई गम है,
चन्द  लम्हे ही बहुत  हैं जो तेरे  साथ कटे.
देके  उम्मीद  बदल जाना  कसक देता है,
वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.

47 comments:

  1. अब न शिकवा,न शिकायत,न कोई गम है,
    चन्द लम्हे ही बहुत हैं जो तेरे साथ कटे.
    देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.

    उफ़ ……………कितना दर्द भर आया है आखिरी की पंक्तियों मे…………बेहद मर्मस्पर्शी।

    ReplyDelete
  2. अब न शिकवा,न शिकायत,न कोई गम है,
    चन्द लम्हे ही बहुत हैं जो तेरे साथ कटे.
    देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.
    hrdy ke bhavon ki marmik abhivyakti .bahut sundar ..

    ReplyDelete
  3. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (4-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  4. मैंने सब द्वार खुले रखे थे अपने घर के,
    बंद दर देख के खुशियाँ न कहीं मुड़ जायें.
    थक गयी चौखटें सुनसान डगर तकते हुए,
    बंद करती नहीं पलकें कि नज़र आजायें.

    अच्छी पोस्ट और आपको बधाई

    ReplyDelete
  5. दिन मैं सूरज गायब हो सकता है

    रोशनी नही

    दिल टू सटकता है

    दोस्ती नही

    आप टिप्पणी करना भूल सकते हो

    हम नही

    हम से टॉस कोई भी जीत सकता है

    पर मैच नही

    चक दे इंडिया हम ही जीत गए

    भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ और आपको एवं आपके परिवार को हिंदी नया साल(नवसंवत्सर२०६८ )की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!


    121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया

    ReplyDelete
  6. देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.

    ग़ज़ब की रूमानियत है.

    ReplyDelete
  7. देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.

    ह्रदय के भावों को बड़ी अच्छी तरह से शब्दों में रूपांतरित किया है. शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  8. देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.
    bahut khub kya bat hai badhai

    ReplyDelete
  9. देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.
    bahut khub kaha aapne

    ReplyDelete
  10. इतना डर था जो ज़माने की नज़र का तुमको,
    मुस्करा कर क्यों उठाई थी ये नज़रें मुझ पर.

    दर्द भरी अभिव्यक्ति ..और संवेदनाओं के विभिन्न रूप सुन्दरता से अभिव्यक्त हुए हैं ..आपका आभार

    ReplyDelete
  11. यही कसक तो है जो प्रेम में तीक्ष्णता बनाये रखती है।

    ReplyDelete
  12. बहुत बढ़िया पोस्ट!

    ReplyDelete
  13. "कितना आसान निकल जाना चुरा कर नज़रें,
    तुमको क्या इल्म जो गुज़री है किसी के दिल पर.
    देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे "

    बहुत खूब, कितना दर्द कितनी कसक और उसकी बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति ।
    आभार

    ReplyDelete
  14. सर बहुत सुंदर गीत बधाई |नवसम्वत्सर की शुभकामनाएं |

    ReplyDelete
  15. अब न शिकवा,न शिकायत,न कोई गम है,
    चन्द लम्हे ही बहुत हैं जो तेरे साथ कटे.

    बहुत खूबसूरती से भावों को लिखा है ...अच्छी रचना

    ReplyDelete
  16. इतना डर था जो ज़माने की नज़र का तुमको,
    मुस्करा कर क्यों उठाई थी ये नज़रें मुझ पर.
    अब न शिकवा,न शिकायत,न कोई गम है,
    चन्द लम्हे ही बहुत हैं जो तेरे साथ कटे.

    दर्द और कसक बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति....नवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  17. देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.
    बहुत अच्छी रचना । शुभकामनाएं ।

    ReplyDelete
  18. अब न शिकवा,न शिकायत,न कोई गम है,
    चन्द लम्हे ही बहुत हैं जो तेरे साथ कटे.
    अंतर्मन का दर्द लिए भाव.....बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  19. मैंने सब द्वार खुले रखे थे अपने घर के,
    बंद दर देख के खुशियाँ न कहीं मुड़ जायें

    बेहतरीन , आपकी कविताओ में एक सार्थक बहाव रहता है, हमेशा की तरह सुन्दर बधाई शर्मा जी

    ReplyDelete
  20. बहुत सटीक रचना...

    ReplyDelete
  21. बस तीन ही अंतरे! एकाध और होता तो मन तृप्‍त होता अभी तो प्‍यासा ही रह गया। बहुत बढिया।

    ReplyDelete
  22. देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.

    दर्द भरी प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति -
    बहुत सुन्दरता से दिल की व्यथा व्यक्त की है ...

    ReplyDelete
  23. देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.

    बहुत खूब कहा है आपने ।

    ReplyDelete
  24. थक गयी चौखटें सुनसान डगर तकते हुए,
    बंद करती नहीं पलकें कि नज़र आजायें
    बहुत खूब,सुन्दर !

    ReplyDelete
  25. देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.

    bahut sunder abhivykti..........

    aabhar.

    ReplyDelete
  26. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  27. जब हम खुद से प्यार करना सीख जाते हैं , तो अकेलापन महसूस नहीं होता ।

    ReplyDelete
  28. बेहतरीन,खूबसूरत. दर्दीले भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति.
    नवसंवत्सर पर आपको हार्दिक शुभ कामनाएँ.
    मेरी नई पोस्ट 'वंदे वाणी विनायकौ' पर आपका स्वागत है.

    ReplyDelete
  29. apney bhaut kuch keh diya apney shabdon mein.

    अंतिम पंक्तियों में खूब कहा आपने :

    अब न शिकवा,न शिकायत,न कोई गम है,
    चन्द लम्हे ही बहुत हैं जो तेरे साथ कटे.
    देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.

    सुन्दर रचना ....

    ReplyDelete
  30. अब न शिकवा,न शिकायत,न कोई गम है,
    चन्द लम्हे ही बहुत हैं जो तेरे साथ कटे.

    बहुत सुन्दर रचना. आभार...

    ReplyDelete
  31. sharma sahab
    sadar pranam
    aapki umda rachana vastav men antarman ko bahut prabhavit karti hai . tipaniyan milati hain ya nahin , main bahut nahi sochata , parantu apki aur sangeeta swarup ki ,aashish ki mujhe alag sukhanubhuti hoti hai . aapki rachna-dharmita men prakhar imandari jhalakati hai ,jo mujhe prabhavit karti hai .mafi chahenge
    apni dhrishtata ke liye. sundar shilp.

    ReplyDelete
  32. अच्छी पोस्ट और आपको बधाई

    Vivek Jain vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  33. अब न शिकवा,न शिकायत,न कोई गम है,
    चन्द लम्हे ही बहुत हैं जो तेरे साथ कटे।

    ये चंद लम्हे ही जीवन भर साथ निभाते हैं।

    ReplyDelete
  34. क्या बात....क्या बात....क्या बात....

    ReplyDelete
  35. दर्द और कसक बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  36. देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.

    वाह क्या बात है ... बहुत ही सुन्दर रचना ... मन के भाव आपने बड़े सुन्दर तरीके से पेश किये हैं ...

    ReplyDelete
  37. कैलाश चन्द्र शर्मा जी नमस्ते!
    पहली बार आपके ब्लॉग पे आया. आपके सारे पोस्ट पढ़े बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपका!!

    देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे.
    बहुत ही सुन्दर रचना ..

    ReplyDelete
  38. इस चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हमारा नव संवत्सर शुरू होता है इस नव संवत्सर पर आप सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं

    ReplyDelete
  39. Really expectation always hurt you... behad khubsurat kavita :)

    ReplyDelete
  40. कसक को खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है आपने.

    ReplyDelete
  41. Dil me utarti hui khubsurat rachana..aah!

    ReplyDelete
  42. ह्रदय के भावों को बड़ी अच्छी तरह से शब्दों में अभिव्यक्त किया है शुभकामनाएँ.......

    ReplyDelete
  43. देके उम्मीद बदल जाना कसक देता है,
    वर्ना मुश्किल नहीं जो उम्र अकेले ही कटे. aapki abhivyakti saral shabdon me par badi shashkt hoti hai...dil ko gahre tak choo lene vali...

    ReplyDelete
  44. कितना आसान निकल जाना चुरा कर नज़रें,
    तुमको क्या इल्म जो गुज़री है किसी के दिल पर.
    इतना डर था जो ज़माने की नज़र का तुमको,
    मुस्करा कर क्यों उठाई थी ये नज़रें मुझ पर.

    हर पंक्ति बहुत ही दमदार जैसे किसी को दोषी करार कर रही हो ? बहुत ही खूबसरत अंदाज़ |

    ReplyDelete
  45. मक्खनी रचना है जिसमें स्मृति की बूंदें टपकती हैं और फिसलकर कहीं खो जाती हैं.

    ReplyDelete